भोपाल। मध्य प्रदेश में करीब ढाई साल की देरी के बाद निकाय और पंचायत चुनाव पूरे हो गए. तीन चरणों में पंचायत चुनाव और दो चरणों में निकाय चुनाव संपन्न हुए. लेकिन ये चुनाव ऐसे वक्त में हुए जब 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का वक्त रह गया है. ऐसे में इन चुनावों को 2023 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. यानि चुनाव के नतीजों से ही प्रदेश की सत्ता का फाइनल तय होगा. ऐसे में अब सबकी नजर नतीजों पर टिकी है. 


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कई मायनों में खास रहे यह चुनाव 
एमपी के निकाय और पंचायत चुनाव इस बार कई मायनों में खास रहे. ओबीसी आरक्षण से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के सफर में कई उतार चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन हरी झंडी मिली तो सभी चुनावों में जुट गए. यही वजह रही कि  निकाय चुनाव में एक तरफ बीजेपी और कांग्रेस इस इतर तीसरे दलों ने भी पूरी ताकत लगा दी, तो पंचायत चुनावों में भी बीजेपी-कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों में कांटे की टक्कर दिखी. दोनों चुनावों में जबरदस्त वोटिंग भी हुई. यानि बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं की धड़कने इस बार बढ़ी हुई हैं. क्योंकि इन चुनावों के नतीजें बने बनाए समीकरणों को बिगाड़ सकते हैं और कई नए समीकरणों को जन्म दे सकते हैं. 


शिवराज-कमलनाथ के इर्द-गिर्द रहे पंचायत-निकाय चुनाव
निकाय चुनाव में शिवराज-कमलनाथ ही प्रमुख चेहरे रहे रहे. तो पंचायत चुनाव में भी चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों ने खुद को इन्ही नेताओं का समर्थित प्रत्याशी बताया. यानि इन दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द ही चुनाव रहे. मध्य प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस तरह से निकाय चुनाव में बीजेपी की तरफ से सीएम शिवराज और कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ ने प्रचार किया, उससे यह बात अब स्पष्ट हो गई है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में ये दो चेहरे ही मुख्य रुप से चुनाव में होंगे. भले ही निकाय चुनाव का परिणाम ऊपर नीचे नजर आए. क्योंकि बीजेपी में तमात दिग्गजों के बीच सीएम शिवराज ने जिस तरह से खुद को प्रचार में झोका उससे वह एक बार फिर मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभकर कर सामने आए. तो इसी तरह कमलनाथ भी सरकार गिरने के बाद कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा बने हुए हैं. 


निकाय चुनाव में तीसरे दलों की एंट्री 
मध्य प्रदेश आम तौर पर देश के दो बड़े राष्ट्रीय दल बीजेपी-कांग्रेस की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमने वाला राज्य ही रहा है. तीसरे दलों ने यहां हमेशा अपनी किस्मत आजमाई लेकिन सफलता उतनी नजर नहीं आई. अब तक तीसरे दलों के रूप में मध्य प्रदेश में सपा और बसपा ही सबसे ज्यादा सक्रिए रहे, लेकिन देश की बदलती राजनीति के बीच कुछ राजनीतिक दल तेजी से उभर रहे हैं. जिनमें आम आदमी पार्टी प्रमुख है. ऐसे में आम आदमी पार्टी ने भी इस बार निकाय चुनाव में एंट्री मारी, खुद अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह और मनीष सिसोदिया तक प्रचार में उतरे. तो हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी पार्टी एएमआईएम के प्रत्याशी एमपी के निकाय चुनाव में न केवल उतारे बल्कि उनके लिए प्रचार भी किया. इन दलों का प्रदर्शन चुनाव में जैसा भी रहे लेकिन इनकी एंट्री से मुकाबला रोचक नजर आया है. 


पंचायत चुनाव में बिगड़े समीकरण 
वहीं बात अगर पंचायत चुनाव यानि गांव की सरकार की जाए तो इस बार पंचायत चुनाव बैलेट पेपर से हुए इसलिए तीन चरणों में हुई वोटिंग के बाद नतीजे भी आ गए.  लेकिन पंचायत चुनाव राजनीतिक सिंबल पर नहीं होते ऐसे में नतीजों के बाद बीजेपी और कांग्रेस ने अपने-अपने प्रत्याशियों की जीत का दावा किया है. लेकिन स्थिति आधिकारिक नतीजे 14 और 15 जुलाई को ही स्पष्ट होगी. नतीजों के बाद दोनों दलों में जिस भी पार्टी के प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत होगी उससे इस बात के संकेत मिलेंगे की ग्रामीण अंचल में बीजेपी और कांग्रेस में किस दल की स्थिति मजबूत है. क्योंकि गांव की सरकार से ही प्रदेश की सरकार तय होगी. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस ने जिलों में खुद को मजबूत करने के लिए बिसात बिछानी शुरू कर दी है. 


सेमीफाइनल की बढ़त फाइनल में देगी मजबूती 
निकाय और पंचायत चुनाव की वोटिंग होने के बाद पॉलिटिकल पार्टियों की रस्साकशी शुरू हो गई है.  जिला पंचायत, जनपद पंचायत, नगर पालिका-नगर परिषदों और नगर निगमों में सरकार बनाने के लिए बीजेपी कांग्रेस ने सियासी समीकरण बिठाने शुरू कर दिए हैं. राजनैतिक विश्लेषक मनीष दीक्षित का कहना है कि इस बार एमपी के नगरीय निकाय चुनाव सत्ता के सेमीफाइनल जैसे हैं. जिसने भी यह सेमीफाइनल में बढ़त बनाई उसे 2023 के विधानसभा चुनाव में बड़ा फायदा होगा. अमूमन लोकल बॉडी इलेक्शन विधानसभा चुनाव के बाद होते हैं लेकिन मध्यप्रदेश में संभवत ऐसा पहली बार हो रहा है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मध्य प्रदेश में लोकल बॉडी इलेक्शन हुए हैं दोनों ही पार्टियों ने पूरा दमखम झोंक दिया, क्योंकि यह नतीजे विधानसभा चुनाव के लिए पॉलिटिकल पार्टियों को बढ़ा ऑक्सीजन देंगे. 


2023 में शिवराज वर्सेस कमलनाथ होगा या बदलेगा चेहरा ?
दरअसल, 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव जहां सीएम शिवराज के लिए भी अब तक की सबसे कठिन चुनौती भरा चुनाव माना जा रहा है, तो अपने राजनीतिक जीवन में यह चुनाव कमलनाथ के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. क्योंकि दोनों ही नेताओं की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर है. ऐसे में निकाय चुनाव के जरिए दोनों ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है. अब तक के हिसाब से ये दोनों नेता ही 2023 के प्रमुख चेहरे नजर आ रहे हैं, लेकिन निकाय चुनाव के नतीजें कोई भी बड़ा बदलाव कर सकते हैं. क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अभी से विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुट गया है, ऐसे में अगर इन नतीजों में बड़ा बदलाव दिखा तो 2023 में भी बदलाव हो सकता है. हालांकि यह सब निकाय और पंचायत चुनावों नतीजों के बाद ही देखने को मिल सकता है. 


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