राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: मध्यप्रदेश के धार्मिक नगरी अवंतिका उज्जैनी में एक बार फिर 5 दिनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु देशभर से जुटेंगे. जिसकी तैयारियों का जायजा जिला कलेक्टर, एसपी व आला अधिकारियों ने बुधवार को लिया. दरअसल राजा विक्रमादित्य के शासनकाल से यह परंपरा चल रही है, जिसमें प्रत्येक वर्ष नगरी में वैशाख माह की चिलचिलाती तपती कड़क धूप में श्रद्धालु नंगे पांव 5 दिवसीय पंचकोशी यात्रा के लिए नगरी भगवान बलराम के रूप में विराजमान नागचंद्रेश्वर मंदिर पर एक साथ एकत्रित होते हैं. जहां पर यात्रा के पहले दिन पूजन कर बल(शक्ति) लेकर 118 किलोमीटर चार द्वार पालो के दर्शन करने नगर भम्रण पर भगवन महादेव का आशीर्वाद लेने मनोकामनाएं लिए व मनोकामना पूर्ण होने पर निकलते हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर पर लोग यह मन्नत मांग कर जाते हैं कि यात्रा अच्छे से संपन्न होने पर मिट्टी के घोड़े को अर्पित करेंगे.


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जानिए यात्रा का महत्व


नागचंद्रेश्वर मंदिर के पुजारी अनिमेष शर्मा बताते हैं कि यात्रा के 2 दिन पहले ही श्रद्धालु मंदिर में जुटने लगते हैं. इस बार यात्रा 15 अप्रैल से शुरू होकर 19 अप्रैल तक रहेगी. भगवान नागचंद्रेश्वर से बल लेकर श्रद्धालु उज्जैन नगर के चार द्वार पर शिवरूप में विजमान द्वारपाल श्री पिंग्लेश्वर महादेव, श्री दुर्दुरेश्वर महादेव, श्री कायावरुहणेश्वर महादेव और श्री बिलकेश्वर महादेव के दर्शन करेंगे. नगर की सुख समृद्धि, श्रेष्ठ वर्षा तथा अच्छी खेती की कामना से हजारों ग्रामीण वैशाख मास की तपती दोपहर में पैदल यात्रा करते हुए 118 किलोमीटर से अधिक की इस पदयात्रा में शामिल होते है. 


इस यात्रा में करीब सात पड़ाव होते हैं
यात्रा के दौरान मार्ग में सात पड़ाव रहते हैं, जहां यात्री विश्राम वह भोजन करते हैं. पंचकोशी यात्रा के दौरान खासकर मालवा में दाल बाटी बनाने की परंपरा है. भक्त दाल बाटी का भोग भगवान को लगाकर भोजन करते हैं. इसके अलावा दानदाता समाज सेवक रास्ते भर भक्तों की सेवा करते हैं. जिला प्रशासन पुलिस सुरक्षा व्यवस्था में मुस्तैद रहती है. जगह-जगह खास व्यवस्थाएं की जाती हैं, जिससे भक्तों को किसी भी प्रकार से परेशानी ना आए और उनकी यात्रा संपन्न हो. कई लोग तो लोगों की सेवा में रास्ते भर में उनके पैरों के छालों पर मरहम लगाने का भी काम सेवा भाव से करते हैं.


स्कंद पुराण के अनुसार
पंडित अमर डब्बेवाला बताते है कि राजा विक्रमादित्य ने इस यात्रा को प्रोत्साहित किया था, और तब से ही यह प्रचलन में है. अनंतकाल तक का काशीवास की अपेक्षा वैशाख माह में 5 दिन अवंतीवास का पुण्य फल अधिक बताया गया है. इसी के चलते वैशाख कृष्ण की दशमी पर शिप्रा स्नान व भगवान नागचंद्रेश्वर के पूजन के पश्चात यात्रा शुरू होती है. 118 किलोमीटर से अधिक की परिक्रमा करने के बाद यात्रा करके तीर्थ वास में संपन्न होती है. हालांकि पांच दिवसीय यात्रा के बाद एक दिन छोड़कर एक और खास दिन आता है. इस यात्रा को छोटी पंचकोशी यात्रा कहा जाता है. इस खास दिन जो 5 दिन तक यात्रा नहीं कर सकते वह 1 दिन में ही अपनी यात्रा पूरी कर सकते हैं.


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