कहानी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सत्ता के तख्तापलट की, एक सी बगावत, एक सी स्क्रिप्ट
महाराष्ट्र में आखिरकार महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई और प्रदेश में बीजेपी और शिंदे गुट की सरकार बन गई. महाराष्ट्र में भी सरकार कुछ वैसी ही गिरी जैसी मध्य प्रदेश में गिरी थी. जानिए कैसे दोनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में वापस आई.
अर्पित पांडे/भोपाल। महाराष्ट्र में 11 दिन तक चली सियासी उठापठक का कल देर शाम अंत हो गया. शिवसेना से बगावत करने वाले नेता एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बने और बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री. महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार गिरने और फिर बीजेपी और शिंदे गुट की सरकार बनने की स्क्रिप्ट बिल्कुल मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिरने और शिवराज सरकार के बनने की तरह रही. महाराष्ट्र के सियासी घटना क्रम को करीब से देखें तो 2 साल पहले बिल्कुल ऐसा ही नजारा मध्य प्रदेश में देखने को मिला था. बस इस बार स्ट्रैटेजी थोड़ी बदली नजर आई, लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सत्ता के तख्तापलट की कहानी की कुछ ऐसी ही कॉमन बातों को समझिए.
शिंदे-सिंधिया की एक जैसी बगावत
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सत्ता के तख्तापलट की सबसे कॉमन बात एकनाथ शिंदे और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत रही. ये दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टियों के नेतृत्व और उनको मिली जिम्मेदारियों से नाराज चल रहे थे, जिसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया, महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिस तरह सिंधिया मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार थे, उसी तरह एकनाथ शिंदे भी महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के दावेदार माने जा रहे थे. लेकिन दोनों ही जगह ऐसा नहीं हुआ. मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम बनाया तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे खुद सीएम बने.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जिस तरह से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का गुट ताकतवर हुआ, उसी तरह महाराष्ट्र में उद्धव सरकार में संजय राऊत और एनसीपी पावरफुल हुई. जिससे शिंदे ने भी सिंधिया की तरह बगावत कर दी. जो आरोप सिंधिया ने लगाए थे लगभग वहीं आरोप शिंदे ने भी अपनी सरकार पर लगाए. ऐसे में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम में एकनाथ शिंदे और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत बिल्कुल एक जैसी ही दिखी.
बीजेपी शासित राज्यों में हुई बागी विधायकों की बाड़ेबंदी
दोनों राज्यों में सरकार के तख्तापलट में बीजेपी ने ऐसी फील्डिंग जमाई, जिसे कोई भी तोड़ नहीं पाया. बीजेपी ने बागी विधायकों की बीजेपी शासित राज्यों में बाड़ेबंदी की वो भी इस तरह से कि विपक्ष पूरी रणनीति को समझ भी नहीं पाया. शिंदे गुट के विधायकों को पहले बीजेपी शासित गुजरात के सूरत और फिर असम के गुवाहाटी में रुकवाया, जबकि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सभी बागी विधायकों को सीधे बेंगलुरु भेजा गया. जहां विधायकों को तब तक बाहर ही नहीं आने दिया गया जब तक फ्लोर टेस्ट की स्थिति न बन जाए. जहां दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
एक दम से टूट गए विधायक
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सत्ताधारी दलों के विधायक एकदम से टूट गए. पहले बात मध्य प्रदेश की करते हैं, मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में पहले इस बात की चर्चा चली की कमलनाथ सरकार को समर्थन कर रहे निर्दलीय और सपा-बसपा के साथ कांग्रेस के कुछ विधायक बगावत करने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस के सभी नेता इन विधायकों को एकजुट करने में लग गए. उधर अचानक से सिंधिया गुट के 22 विधायक भोपाल से सीधे बेंगलुरु पहुंच गए और मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित कांग्रेस के किसी बड़े नेता को खबर तक नहीं लगी. बाद में लाख कोशिशों के बाद कांग्रेस इन विधायकों को वापस लाने में कामयाब नहीं हो पाई.
वहीं बात अगर महाराष्ट्र की जाए तो महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसा ही हुआ. एमएलसी चुनाव की वोटिंग खत्म होने के बाद अचानक से खबर आई कि शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे शिवसेना के 15 और 10 निर्दलीय विधायकों के साथ सूरत पहुंच गए हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पूरा फोकस शिंदे को मनाने पर लगाया और अपने बाकी के विधायकों पर ध्यान ही नहीं दिया, जबकि शिंदे के समर्थन में एक बाद एक पूरे 39 विधायक जुट गए. जैसे ही विधायकों की संख्या 40 के पार हुई तो सभी विधायक महाराष्ट्र से काफी दूर गुवाहाटी पहुंच गए. यानि दोनों राज्यों में बगावत शुरुआत में दिखने में जितनी छोटी थी वह उससे कही बड़ी निकली, जिसे महाराष्ट्र में शिवसेना और मध्य प्रदेश में कांग्रेस समझ ही नहीं पाई.
यह भी बगावत की बड़ी वजह
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया 2018 के विधानसभा चुनाव में लगातार मेहनत कर रहे थे, लेकिन सरकार बनने के बाद पूरी कमान कमलनाथ के हाथों में आ गई. सिंधिया समर्थकों ने कई बार खुलकर इस बात का आरोप लगाया कि सरकार में उनकी सुनवाई नहीं होती. जिससे सिंधिया ने बगावत कर दी. ठीक वैसे ही शिवसेना में नंबर दो का कद रखने वाले एकनाथ शिंदे की भी महाविकास अघाड़ी सरकार में मंत्री होने के बाद भी जम नहीं रही थी. उन्होंने भी कई बार अपनी ही सरकार में अपनी सुनवाई नहीं होने का आरोप लगाया था.
बीजेपी ने पूरे खेल में खुद को पर्दे के पीछे रखा
बीजेपी का आला नेतृत्व अपने चौकाने वाले फैसलों के लिए जाना जाता है. राजनीतिक जानकारों का भी कहना है कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में तख्तापलट के पीछे बीजेपी ने पूरे खेल में खुद को पर्दे के पीछे रखा. शिंदे की बगावत को बीजेपी ने शिवसेना का अंदरूनी मामला बताया तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और सिंधिया के बीच का आपसी विवाद सरकार गिरने की वजह बताया. लेकिन जब सरकार गिरी तो बीजेपी ने असली खेल दिखाया. महाराष्ट्र में किसी को अंदाजा भी नहीं लगा कि बीजेपी शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन करेगी. जबकि मध्य प्रदेश में भी सिंधिया को सरकार में आधी हिस्सेदारी दे दी और उन्हें भी केंद्र में बड़ा मंत्रीपद दिया.
कानूनी दाव पेंच में उलझी सियासत
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बीजेपी कानूनी दाव पेंच भी पहले ही तैयार कर लिए थे, उद्धव और कमलनाथ स्पीकर के जरिए विधायकों को अयोग्य ठहराने में जुटे रहे, लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. जहां सुप्रीम कोर्ट ने दोनों ही राज्यों में फ्लोर टेस्ट का फैसला सुनाया. यानि न दलबदल, न आयोग्य सीधे फ्लोर टेस्ट की स्थिति में आने के चलते मजबूरी में दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और नई सरकार बनने का रास्ता साफ हुआ.
बस महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में दिखा इतना अंतर
हालांकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सत्ता के तख्तापलट में थोड़ा अंतर भी देखने को मिला. सिंधिया के समर्थन में बगावत करने वाले विधायकों को इस्तीफा देना पड़ा. वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना टूट गई जिससे विधायक इस्तीफा देने से बच गए. महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा 11 दिन में खत्म हो गया, जबकि मध्य प्रदेश में यह पूरे 17 दिन तक चला. लेकिन दोनों राज्यों में सरकार के तख्तापलट की स्क्रिप्ट किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं थी. जहां धमाकेदार ओपनिंग से लेकर रोचक क्लाइमेक्स की कहानी देश की राजनीति के इतिहास में एक बड़ी सियासी घटना के तौर पर दर्ज हो गई है.
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