Mahashivratri Upay: महाशिवरात्रि में इस विधि से किया शिव तांडव स्त्रोत, भोलेनाथ पूरा कर देंगे हर काम
इस साल भगवान शिव के उपासना का महापर्व यानी महाशिवरात्रि 18 फरवरी (mahashivaratri) को है. महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्मांड के अधिपति भगवान शिव की 4 पहरों में विशेष पूजा (worship) अर्चना की जाती है.
MahaShivratri Puja Vidhi 2023: इस साल भगवान शिव के उपासना का महापर्व यानी महाशिवरात्रि 18 फरवरी (mahashivaratri) को है. महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्मांड के अधिपति भगवान शिव की 4 पहरों में विशेष पूजा (worship) अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव (lord shiva) की पूजा करते हुए विधि-विधान से पूजा करता है, भगवान भोले उसकी सभी मनोकामनाएं (wishes) पूरी कर देते हैं. भगवान शिव की पूजा आराधना में शिव तांडव स्त्रोत के पाठ का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिव तांडव स्त्रोत (shiv tandav stotram) का पाठ कर देता है, उसके जीवन में धन-समृद्धि, यश कीर्ति, सुख सौभाग्य की प्राप्ति होने लगती है.
शिव तांडव स्त्रोत के फायदे-
जो मनुष्य महाशिवरात्रि के दिन शिव तांडव स्तोत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति करता है, उस साधक को साथ ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है. शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती है. इतना ही नहीं जो लोग यह पाठ नियमति करते हैं उनका चेहरा तेजमय होता है, आत्मबल मजबूत होता है. शिवतांडव स्त्रोत के पाठ से वाणी की सिद्धि की जाती है. ऐसी मान्यता है कि शिव तांडव स्त्रोत के पाठ से हर कार्यों में सफलता मिल जाती है.
शिव तांडव स्तोत्र की विधि
महाशिवरात्रि के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव को जल अर्पित करें. साथ ही शिव जी को प्रणाम करें और धूप, दीप और नैवेद्य से उनका पूजन करें. इसके बाद शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करें. यदि शिव तांडव स्त्रोत का पाठ नृत्य के साथ करते हैं तो ये बहुत ऊर्जावान और शक्तिशाली माना गया है. लेकिन ध्यान रहे शिवतांडव स्त्रोत का नृत्य के साथ सिर्फ पुरुष ही करें.
।। अथ शिव तांडव स्तुति ।।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि॥
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभाकदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम॥
नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः॥
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुह्रद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम्॥
पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥
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