क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा? क्यों जलहरी नहीं लांघते, जानिए वजह
शिवलिंग की पूजा करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए. उनकी परिक्रमा कभी भी पूरी नहीं की जाती और न ही जलहरी को लांघा जाता है. ऐसा क्यों करते हैं जानिए
Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि (mahashivratri) का पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी तिथि में शनिवार को मनाया जाएगा. बता दें शिवलिंग (Shivling) को भगवान शंकर का ही रूप माना जाता है तथा धर्मग्रंथों में इनकी पूजा और परिक्रमा के कुछ नियम बताये जाते हैं. जिन नियमों का पालन करके भक्त भगवान शिव को जल्दी प्रसन्न कर सकते हैं. यदि इन नियमों का भक्त उल्लंघन करते हैं तो भगवान शिव नाराज हो जाते हैं और भक्त की मनोकामना पूरी नहीं करते है. सामान्य रूप से भक्त सभी देवी -देवताओं की परिक्रमा पूरी करते है, लेकिन बता दें शिवलिंग की परिक्रमा आधी करनी चाहिए. आइए जानते हैं शिवलिंग की परिक्रमा क्यों पूरी नहीं की जाती
शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है?
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जल को देवता माना जाता है और पानी के पात्र को कभी भी पैर नहीं लगाते है तथा ठोकर लगे पानी को कभी भी पिया नहीं जाता है न ही किसी को पिलाते है. यह पानी पिलाना पाप तुल्य माना जाता है. ऐसे ही जो जल देव प्रतिमा पर चढ़ाया जाता है उसे कभी लांघा नहीं जाता है. बता दें शिवलिंग पर नित्य अभिषेक किया जाता है और जिस जल से देवता का अभिषेक हुआ है उसे पांव न लगे इसलिए प्रणाल के बाद भी चण्डमुख की व्यवस्था मंदिरों में करते हैं. इसलिए शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बायीं ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग तक जाकर फिर पीछे की दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर पूरी कर लेनी चाहिए. ऐसा करने से शिवलिंग की आधी परिक्रमा पूरी हो जाती है.
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जलहरी को क्यों नहीं लांघते
शिवलिंग के जिस स्थान से जल प्रवाहित होता है, उसे जलहरी कहते है. धर्मशास्त्रों के अनुसार शिवलिंग के ऊपरी हिस्से को भगवान शिव और निचले हिस्से को माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है. मान्यता के अनुसार शिवलिंग को ऊर्जा का प्रवाह माना जाता है. इस पर जब जल चढ़ाया जाता है तो ऊर्जा के कुछ अंश जल में मिलकर बहने लगते हैं. इसलिए जलहरी लांघना अशुभ होता है. यदि गलती से जलहरी लांघ लेते हैं तो इससे व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रोग हो सकता है.