संजय लोहानी/सतनाः शारदीय नवरात्रि शुरू हो गई है. ऐसे में जगह-जगह पर मां शेरावाली के नारे गूंज रहे हैं. इसी क्रम में आज नवरात्र के पहले दिन मां मैहर स्थित मां शारदा के मंदिर में विशेष श्रृंगार और आरती किया गया. मंदिर में देर रात से ही भक्तों का आना शुरू हो गया है. ऐसी मान्यता है कि माता शारदा मां सरस्वती का साक्षात स्वरूप हैं. मां शारदा का यह मंदिर पिरामिड आकार की पहाडी पर स्थित है. यहां पहुंचने के लिए 1052 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है. आइए जानते हैं इस मंदिर के महत्व के बारे में...


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विंध्य पर्वत के श्रेणी में है ये मंदिर
सतना जिले के मैहर में स्थित मां शारदा का मंदिर विंध्य पर्वत की श्रेणियों के बीच त्रिकुट पर्वत पर स्थिति है. ऐसी मान्यता है कि यहां मां शारदा की सबसे पहले पूजा आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी. विध्य के त्रिकुट पर्वक का उलल्लेख पुराणों में भी मिलता है. नवरात्रि के समय में हर दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में श्रद्धालुओं को 1052 सीढ़ी चढ़कर जाना पड़ता है.


मैहर में गिरा था मां सती का हार
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में मां सती का हार गिरा था, जिसकी वजह से इस जगह का नाम माई का हार पड़ गया. लेकिन अपभ्रंश होकर इसका नाम मैहर हो गया. मां सती का हार गिरने की वजह से इस अंग को मैहर के नाम से जाना जाता है.


जानिए किसने की थी मंदिर की खोज
त्रिकुट की पहाड़ी पर स्थित मां शारदा के मंदिर की खोज आल्हा उदल के नायक दो सगे भाई ने की थी. कहा जाता है कि आल्हा और उदल मां शारदा के अनन्य भक्त थें, इन्होंने जंगलों के बीच त्रिकुट पर्वत की चोटी पर इस मंदिर को ढूंढ़ निकाले थें. वर्तमान में यह मंदिर आस्था का केंद्र बन चुका है. अब यहां देश-विदेश के कोने-कोने से मां के दर्शन के लिए आते हैं.


आज भी आल्हा द्वारा की जाती है पूजा
इस मंदिर की खोज के बाद आल्ह उदल ने यहां 12 वर्षों तक कठोर तपस्या कर देवी मां को प्रसन्न किया था. मां ने आल्हा की तपस्या से खुश होकर उन्हें अमरता का वरदान दे दिया. मां शारदा देवी के मंदिर में आल्हा के कुल देवी फूलमती माता का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि यहां आज भी हर दिन ब्रम्ह मुहुर्त में आल्हा खुद आकर मां का पूजा अर्चना करते हैं. मां के मंदिर की तलहटी में आल्हा देव की खड़ाऊ और तलवार आम भक्तों के लिए रखी गई है.


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