मंदसौर में ग्रामीण ड्रम के सहारे कर रहे नदी पार, कभी भी हो सकता है हादसा
Mandsaur News: मंदसौर जिले के दमदम आक्याफतु सहित कुछ गांवों के ग्रामीण नदी पार करने के लिए ड्रम और लकड़ी के पटिए की जुगाड़ के सहारे सोमली नदी पार करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का ये जुगाड़ कभी भी हादसे में बदल सकता है.
मनीष पुरोहित/मंदसौर: कहते हैं कि हमारे यहां जुगाड़ों की कमी नहीं है. हम जुगाड़ के सहारे असंभव कार्य को भी संभव बना देते हैं. जुगाड़ का सहारा हमे मजबूरी में लेना पड़ता है. लेकिन कभी-कभी जुगाड़ हमारे जान पर भी खतरा बन जाता है. ऐसे ही एक जुगाड़ का मामला मंदसौर जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूरी पर स्थित दमदम आक्याफतु सहित कुछ गावों से आया है. जहां पर नदी पार करने के लिए ग्रामीणों के शॉर्ट कट विकल्प चुनने के लिए जुगाड़ वाली नाव तैयार की है और रोजाना अपनी जान को जोखिम में डालकर ड्रम और लकड़ी के पटियों से बने जुगाड़ के सहारे सोमली नदी को पार करते हैं.
कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा
सोमली नदी में मगरमच्छ भी पाए जाते हैं, जिसके चलते इस जुगाड़ में जान का जोखिम बना रहता है. ग्रामीणों की मांग पर प्रशासन द्वारा एक साल पहले सर्वे भी किया गया था. लेकिन वैकल्पिक रास्ता मौजूद होने की वजह से पुल बनाने का प्रस्ताव नहीं बन सका. ग्रामीण रोजाना नदी को इसी तरह पार करते रहते हैं. ऐसे मैं यदि जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया जाता है तो कभी भी कोई हादसा हो सकता है.
खाली ड्रम से बनाई जुगाड़ वाली नाव
हालांकि इन गांवों से मंदसौर जाने के लिए सड़क के रास्ते उपलब्ध हैं. लेकिन उसमें कई किलोमीटर (तकरीबन 15 किलोमीटर) ज्यादा लगते हैं. शॉर्टकट के तौर पर ग्रामीण खतरों से भरा यह रास्ता ही चुनते हैं. कई ग्रामीणों के खेत भी नदी के पार हैं. रोजाना खेतों पर आना जाना होता है, जिसके लिए यही जुगाड़ एकमात्र सहारा है. 2014 में स्टॉप डेम बनने के बाद से यहां पानी भरा रहता है. ग्रामीणों ने इस रास्ते को पार करने के लिए चार खाली ड्रम के ऊपर लकड़ी के पटिए बांधकर जुगाड़ वाली नाव बनाई है. नदी के दोनों सिरों को जोड़ती एक रस्सी बांधी गई है, जिसके सहारे यह जुगाड़ चलाकर नदी को पार किया जाता है.
चुनाव के टाइम नेता करते हैं वादा
ग्रामीण विनोद ने बताया कि नदी पार करके मंदसौर जाने में 4 किलोमीटर का ही रास्ता है, जबकि यदि रोड से आते हैं तो 22 किलोमीटर हो जाते हैं. यहां पर पुल बनना चाहिए. ताकि ग्रामीण परेशान ना हो. वहीं गांव की महिला लीलाबाई बताती है कि वे अपनी बकरियों को लेकर रोजाना इसी जुगाड़ के सहारे नदी को पार करती हैं. नदी को पार करना उनकी मजबूरी है. पिछली बार में जुगाड़ की नाव बह गई थी. ग्रामीणों ने पैसे इकठ्ठा करके दोबारा नाव बनाई. चुनाव के टाइम नेता आते हैं समस्या के हल का वादा करते हैं लेकिन वादे पूरे नहीं होते हैं.
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