राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: रविवार 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी है जो आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है. इस दिन से सभी शुभ कार्यो पर आगामी चार माह के लिए रोक लग जाती है. इस दौरान शादी विवाह के साथ ही अन्य खास आयोजन नहीं हो पाते हैं. मान्यता है इस दिन भगवान विष्णु भगवान शिव को श्रष्टि का भार सौंप योग निंद्रा में चले जाते हैं.


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क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य
विख्यात ज्योतिषाचार्य अमर डिब्बावाला के अनुसार, एकादशी से ही चातुर्मास का प्रारंभ होता है. चार माह तक शुभ कार्यो की रोक देवउठनी एकादशी से हटेगी जब शिव दोबारा विष्णु को श्रष्टि का भार सौंपते हैं और उस दिन को हरी हर मिलन के रूप में जाना जाता है, जिसे विश्व भर में सिर्फ महाकाल की नगरी उज्जैन में ही देखा जाता है.


13 मुहूर्त थे, लेकिन नहीं हो पाएंगे शुभ कार्य
देवशयनी एकादशी से अहभ कार्यो में खास कर शहनाई की गूंज बंद हों जायगी. पंचांग की गणना के अनुसार इस बार जून और जुलाई माह में विवाह के श्रेष्ठ मुहूर्त में 13 मुहूर्त थे, लेकिन देवशयनी शुरू होने के चलते इस महिने का आखिरी मुहूर्त 9 जुलाई शनिवार को नवमी के साथ पूर्ण होगा. 


नवंबर में फिर से शुरू होंगी शादियां
10 जुलाई को देव शयनी एकादशी के साथ ही विवाह की गूंज रुक जाएगी. फिर चातुर्मास के बाद 4 नवम्बर देवउठनी एकादशी के साथ विवाह के मुहूर्त आएंगे. नवम्बर माह में 4, 26, 27, 28 तारीखों के बाद दिसम्बर में 2, 3, 4, 7, 8, 9, 12, 13, 14, 15 को विवाह के शुभ मुर्हुत आएंगे.


चातुर्मास में व्रत विधान
इस बार देवशयनी एकादशी पर गुरु शुक्र के तारे उदित हैं. इस दृष्टि से चातुर्मास का व्रत किया जा सकता है. कुछ ग्रंथकारों ने गुरु शुक्र के अस्त के बाद भी चातुर्मास के व्रत को करने की बात कही है. चातुर्मास में शैव, गणपत्य, शाक्त, वैष्णव सभी को व्रत निवेदन करना चाहिए. इसमें भगवान विष्णु की पूजन का विधान है और चातुर्मास पर्यंत प्रतिदिन भगवान विष्णु का शंख से जलाभिषेक करने का विधान शास्त्र का बताया जाता है.


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