राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: 51 शक्तिपीठो में से एक शक्तिपीठ हरिसिद्धि माता का मंदिर (Harsiddhi Mata Temple) है. लेकिन कुछ पुजारियों का दावा है नगरी में एक नहीं दो शक्तिपीठ (Shaktipeeth) है.  हरिसिद्धि में माता सती की दाहिनी कोहनी गिरी तो माता गढ़कालिका ( Maa Gadkalika Mandir) का धाम माता सती के ओष्ठ(होंठ) का अंग गिरने से प्रसिद्ब हुआ है. आज दुर्गा नवमी व श्री राम नवमी पर हम बात माता गढ़कालिका की करेंगे और जानेंगे क्या कुछ रहस्य माता के मंदिर से जुड़े हैं, क्योंकी कहा जाता है माता तंत्र (Tantra Devi ) की देवी भी हैं. जिन्हें छोटी नवरात्र पर कपड़े से बने मुंडमाला अर्पित की जाती है. माता के मंदिर में नींबू को प्रसाद रूप में बांटने की परंपरा है. माता महाकवि कालिदास की इष्ट देवी हैं. साथ ही कहा जाता है सतयुग में हनुमान ने महान भीषण रूप धारण किया था तब देवी डरकर भागीं थी.


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जानिए पूरी कहानी
दरअसल धार्मिक नगरी उज्जैन में माता हरसिद्धि के धाम के बाद दूसरा शक्तिपीठ गढ़कालिका मंदिर को माना गया है. पुजारियों का दावा है कहते हैं पुराणों में उल्लेख है शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर सती के ओष्ट (होंठ) गिरे थे, इसलिए इस जगह को भी शक्तिपीठ के समकक्ष ही माना जाता है. लिंग पुराण में कथा है कि जिस समय रामचंद्रजी युद्ध में विजयी होकर अयोध्या जा रहे थे, वे रुद्रसागर तट के निकट ठहरे थे. इसी रात्रि को भगवती कालिका भक्ष्य की शोध में निकली हुईं इधर आ पहुंचीं और हनुमान को पकड़ने का प्रयत्न किया, परंतु हनुमान ने महान भीषण रूप धारण कर लिया. तब देवी डरकर भागीं. उस समय अंश गालित होकर पड़ गया, जो अंश पड़ा रह गया, वही स्थान कालिका के नाम से विख्यात है.


हर्षवर्धन ने करवाया था मंदिर का जीर्णोद्वार
मंदिर के बाहर लगे शासकीय बोर्ड पर अंकित है कि शुंग काल ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी, गुप्त काल चौथी शताब्दी, परमार काल दसवीं से बारहवीं शताब्दी की प्रतिमाएं एवं नीव इस मंदिर के स्थान पर प्राप्त हुई है. कहा जाता है सम्राट हर्षवर्धन ने सातवीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. परमार राज्य काल 10 वीं शताब्दी में करवाए गए. जीर्णोद्धार के अवशेष भी मिले हैं. बीसवीं शताब्दी में परंपरागत पुजारी से सिद्ध नाथ जी महाराज ने विक्रम संवत 2001 (1944) में जीर्णोद्वार करवाया था.


कपड़े के नरमुंड का चढ़ावा
गढ़कालिका मंदिर में नवरात्र के बाद दशमी पर कपड़े के बनाए गए नरमुंड चढ़ाए जाते हैं. प्रसाद के रूप में दशहरे के दिन नींबू बांटा जाता है. इस मंदिर में तांत्रिक क्रिया के लिए कई तांत्रिक मंदिर में आते हैं. इन नौ दिनों में मां कालिका अपने भक्तों को अलग-अलग रूप में दर्शन देती हैं. तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कम ही लोग जानते है. माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की बताई जाती है. चैत्र की नवरात्रि में रोजाना तांत्रिकों का मेला इस मंदिर में दिखाई देता है. यहां खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात, आसाम, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के तांत्रिक मंदिर में तंत्र क्रिया करने आते हैं.


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