चंबल की इस सीट पर दिखती है यूपी की सियासी झलक, जातियां तय करती हैं हार-जीत, रोचक हैं समीकरण
Ater Vidhan Sabha Seat: चंबल अंचल की अटेर विधानसभा सीट पर यूपी की सियासी झलक दिखती है, क्योंकि यहां जातियां चुनावी हार जीत तय करती हैं.
Ater Vidhan Sabha Seat: मध्य प्रदेश की राजनीति में चंबल अंचल का भिंड जिला अपने सियासी रसूख के लिए जाना जाता है. जिले की पांच विधानसभा सीटों में शामिल अटेर विधानसभा सीट सूबे की हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है. यूपी से सटी इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस से ज्यादा जातिगत समीकरण मायने रखते हैं, इसलिए इस सीट पर यूपी की सियासी झलक दिखती है. अटेर विधानसभा सीट से विधायक अरविंद भदौरिया शिवराज सरकार में मंत्री हैं, ऐसे में इस बार का चुनाव उनके लिए भी अहम होगा.
अटेर के जातिगत समीकरण
अटेर विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण सबसे अहम भूमिक निभाते हैं, दरअसल, इस पर ब्राह्मण और क्षत्रिय मतदाता सबसे हैं, इसके बाद ओबीसी वोटर्स हैं, ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस हर चुनाव में इन्हीं वर्ग से आने वाले नेताओं को प्रत्याशी बनााते हैं. अटेर में 38 प्रतिशत ब्राह्मण और 32 प्रतिशत क्षत्रिय वोटर्स हैं, जबकि ओबीसी की संख्या 18 प्रतिशत है. ऐसे में 1990 के विधानसभा चुनाव से चार-चार बार ब्राह्मण और चार बार क्षत्रिय विधायक चुने गए हैं.
अटेर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
बात अगर अटेर विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की जाए तो यह सीट 1952 से ही अस्तित्व में हैं, यहां 1952 से 2018 तक यहां कुल 16 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है तो चार बार बीजेपी को जीत मिली है, जबकि एक बार बसपा और एक बार जनता पार्टी के प्रत्याशी ने भी जीत हासिल की है. खास बात यह है अटेर सीट पर कभी किसी एक दल का कोई कब्जा नहीं रहा, यहां कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस जीत हासिल करती रही है.
ऐसा रहा वोटर्स का तानाबाना
अटेर विधानसभा सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 2,11,291 वोटर्स थे, जिनमें पुरुष वोटर्स की संख्या 1,19,182 थी, जबकि महिला वोटर्स की संख्या 92,107 थी. जिनमें से कुल 1,35,433 मतदाताओं ने वोट दिया था.
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इस नेता ने प्लानिंग से लड़ा हर चुनाव
1952 में कांग्रेस के बाबूराम खेरी अटेर विधानसभा सीट से पहले विधायक बने थे, इसके बाद 1957 में हरज्ञान बौहरे अटेर के विधायक बने थे. जनसंघ का खाता 1977 में पहली बार खुला था, तब शिवशंकर समाधिया ने यहां से जीत हासिल की थी. 1985 के चुनावों में कांग्रेस के सत्यदेव कटारे कांग्रेस के कद्दावर नेता बनकर उभरे उन्होंने इस सीट पर कांग्रेस को मजबूत कर दिया. सत्यदेव कटारे चतुराई से यहां चुनाव लड़ते रहे, 1985 में जीत के बाद उन्होंने 1990 का चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन 1993 में चुनाव में उतरे और जीत हासिल की थी. इस दौरान वह दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री भी रहे. 1998 में फिर चुनाव नहीं लड़ा और 2003 में उतकर फिर जीत हासिल की. जबकि 2013 का विधानसभा चुनाव जीतने बाद वह प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष बने थे,
1990 से अटेर सीट के विधायक
मुन्ना सिंह भदौरिया, बीजेपी, 1990
सत्यदेव कटारे, कांग्रेस, 1993
मुन्ना सिंह भदौरिया, बीजेपी, 1998
सत्यदेव कटारे, कांग्रेस, 2003
अरविंद सिंह भदौरिया, बीजेपी, 2008,
सत्यदेव कटारे, कांग्रेस, 2013
अरविंद सिंह भदौरिया, बीजेपी, 2018
ऐसा रहा था 2018 का नतीजा
अटेर विधानसभा सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में 33 से प्रत्याशी मैदान में थे, मुकाबला त्रिकोणीय रहा था, यहां सबसे आखिर तक काउंटिंग चली थी, जहां कड़े मुकाबले में अरविंद भदौरिया ने जीत हासिल की थी. अरविंद भदौरिया को 58,928, हेमंत कटारे को 53,950 वोट और बसपा के संजीव बघेल को 16,585 वोट से जीत मिली थी. इस तरह बीजेपी को इस सीट पर 4,978 वोटों से जीत हासिल हुई थी.
बात अगर वर्तमान परिदृश्य की जाए तो बीजेपी की तरफ से अरविंद भदौरिया प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं, जबकि कांग्रेस की तरफ से भी पूर्व विधायक हेमंत कटारे का नाम सबसे आगे चल रहा है, ऐसे में इस सीट पर इस बार भी मुकाबला दिलचस्प होने की पूरी उम्मीद है.
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