MP News: 1200 ईसवी में निर्मित 650 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित मध्य प्रदेश के रायसेन जिले का किला अजेय किलों में से एक है. पहाड़ी की चोटी पर इस किले के निर्माण के बाद रायसेन को इसकी पहचान मिली. यह किला प्राचीन वास्तुकला एवं गुणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है, जो इतनी शताब्दियाँ बीत जाने पर भी शान से खड़ा हुआ है. इस किले पर 1543 में शेरशाह सूरी ने राजा पूरनमल के समय आक्रमण कर कुछ दिन शासन किया था. 1532 में राजा शिलादित्य के समय बहादुर शाह द्वितीय ने आक्रमण किया था. 


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आज भी कहा जाता है कि यहां के राजा के पास पारस पत्थर था, जिसे किसी भी चीज को छू भर देने से वह सोना (GOLD) हो जाती थी. हालांकि, पारस पत्थर को लेकर हालांकि कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिलती है. जब यहां के राजा हार गए तो उन्होंने पारस पत्थर को किले पर ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया. कहा जाता है कि राजा की मौत होने तक उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होंने पारस पत्थर कहां रखा है. तब विजय हुए राजा ने हाथी के पैरों में लोहे की जंजीर बांधकर मदागन में छोड़ा गया लेकिन पारस पत्थर का पता नहीं चल सका. इसके बाद किला वीरान होता चला गया. तरह-तरह की बातें होने लगीं. लोग इस पारस पत्थर को मदागन में ढूंढते रहते हैं.


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पहले किले पर ही रहते थे लोग
यहां पहले बस्ती हुआ करती थी, लेकिन दैनिक उपयोग का सामान लेने नीचे उतारकर जाना होता था तो धीरे धीरे सब लोग नीचे शिफ्ट हो गए और यह किला बीरान होता चला गया. कहा जाता है कि ये पारस पत्थर अब भी किले में मौजूद है और इसकी रखवाली जिन्न करते हैं. जो लोग पारस पत्थर की तलाश में किले में गए उनकी मानसिक हालत खराब हो गई. जी न्यूज कि टीम उवड खाबड़ और घने कटीली झाड़ियों से होती हुए अंदर घने स्थल पर पहुंची तो देखा वहां खजाने कि और पारस पत्थर कि तलाश में बड़े बड़े गड्ढे खोदे हुए हैं.


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किले पर लगा रहता है तांत्रिकों का आना-जाना
किले पर तांत्रिकों और खजाने की खोज में लगे कई लोगों ने जगह जगह बड़े बड़े गड्ढे खोद दिए हैं. उन्हें खजाना या पारस पत्थर मिला या नहीं यह रहस्य बना हुआ है. कहा जाता है कि किले के खजाने का आज तक पता नहीं लग पाया है. इसकी तलाश में आज भी किले में रात में गुनियां (एक तरह से तांत्रिक) की मदद से खुदाई होती है. दिन में जो लोग यहां घूमने आते हैं उन्हें कई जगह तंत्र क्रिया और खोदे गए बड़े-बड़े गड्ढे दिखाई देते हैं.


यहां मौजूद है दुनिया का सबसे पुराना हार्वेस्टिंग सिस्टम
रायसेन किले पर दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है. कहा जाता है कि यहां 35 हजार सैनिक हमेशा तैनात रहते हैं और इस किले की बनावट इस तरह की है कि यहां रशद और पानी की कभी कमी नहीं आती थी. इसलिए यहां पानी के एकत्रीकरण के लिए दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम विकसित किया, जिसमें 12 महीने पानी का संग्रहण रहता हैं. कभी पानी खत्म नहीं होता था. इसी स्थान पर किले की सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान से बुलाई गई तोपे भी सहेज कर रखी गई हैं.


रायसेन से राजकिशोर सोनी की रिपोर्ट


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