Bhind Historical Temple: आज महानवमी है, नवरात्रि पर दुनिया भर के देवी मंदिरों में भक्तों का तांता लगता है, ऐसा ही एक मंदिर एमपी के भिंड जिले में स्थित है, जहां पर माता रानी का दर्शन करने के लिए दूर- दराज से भक्त आते हैं, ये मंदिर भिंड जिला मुख्यालय से 55 किलो मीटर की दूरी पर लहार क्षेत्र के दबोह कस्बे में स्थित है, हर बार की तरह इस बार भी नवरात्रि पर भक्तों का हुजूम माता रानी के दर्शन के लिए उमड़ा. जानिए क्या है मंदिर का इतिहास. 


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इतिहास से जुड़े कई ऐसे देवी शक्ति मंदिर हैं जिनकी शक्ति और चमत्कार का आज भी महत्व है, ऐसी ही दैवीय शक्ति का मंदिर भिंड जिला मुख्यालय से 55 किलो मीटर की दूरी पर लहार क्षेत्र के दबोह कस्बे के समीप रेहकुला देवी का मंदिर है, जिसकी मान्यता और आस्था प्रदेश के अलावा समीपवर्ती प्रांत उत्तरप्रदेश व राजस्थान में है, इतिहासकारों के अनुसार यह आल्हा कालीन ऐतिहासिक शक्ति पीठ रणकौशला देवी का मंदिर है जिसका नाम अपभ्रंश होकर अब रेहकुला देवी के नाम से पुकारा जाने लगा है, यहां पर नव दुर्गा में प्रति दिन हजारों की तादात में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से भक्त पहुंचते हैं. 


समूचे अंचल में आस्था व शक्ति आराधना का केंद्र माने जाने वाला ये देवी मंदिर कई हजार वर्ष पूर्व का निर्मित बताया जाता है, इसका निर्माण चन्देल राजाओं ने कराया था और देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना आल्हा उदल के बड़े भाई सिरसा राज्य के सामन्त वीर मलखान एवं उनकी पतिव्रता पत्नी गजमोतिन ने कराई थी.


वीर मलखान देवी के बहुत बड़े भक्त थे,आज ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना करने से सभी इच्छाएं और कामनाएं पूर्ण होती हैं, मंदिर से एक बेहद आश्चर्यजनक बात जुड़ी है, कहा जाता है कि इस मंदिर में एक अदृश्य शक्ति पूजा करने आती हैं और सर्वप्रथम देवी की पूजा ये शक्ति ही करती हैं.


साथ ही साथ कहा जाता है कि यहां मांगी गई मन्नत पूरी होती है,मशक्ति के उपासकों के लिए देवी का ये मंदिर बहुत महत्व रखता है, रहकोला देवी का मन्दिर हजारवीं शताब्दी का बताया जाता है, इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति पर नजर डाले तो मन्दिर से पूर्व दिशा में करीब 4 किमी दूर पहूज नदी है और इस नदी के किनारे सिरसा रियासत की प्राचीन गढियों के अवशेष भी मिले हैं, बताया जाता है कि सिरसा की गढ़ी की बावड़ी से लेकर रहकोला देवी मंदिर तक भूमिगत सुरंग है और इस सुरंग से ही उस समय वीर मलखान पूजा करने आते थे, वीर मलखान अपनी महारानी गजमोतिन के साथ बावड़ी में स्नान के बाद देवी मन्दिर में पूजा करते थे,स्थानीय लोगो की मान्यता है की आज भी अदृश्य रूप में सबसे पहले मलखान और उनकी पत्नी आज भी पूजा करने पहुंचती हैं.


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