नई दिल्ली: कहते हैं भारतीय रेलवे देश की जीवन रेखा है. पिछले लॉकडाउन में भारतीय रेलवे के बंद होने से पैदा हुई भयावहता को खुली आंखों से देखा हैं. खैर, वैसे भारतीय रेल और उससे जुडी कई बातें लोगों के लिए चर्चा का विषय बन जाती हैं. गौरतलब है कि हाल ही में इंदौर के पातालपानी स्टेशन का नाम भी बदला जा रहा है. इस स्टेशन का नाम बदलकर टंट्या मामा रेलवे स्टेशन (Tantya Mama Railway Station) किया जा रहा है. लेकिन नाम बदलने से ज्यादा चर्चा इस रेलवे स्टेशन की रहस्यमयी बातों को लेकर है. 


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भारत में ऐसे कई रेलवे स्पॉट हैं जो विज्ञान के इस युग में भी रहस्यमयी बने हुए हैं. दरअसल आज टंट्या मामा का जन्मदिवस (Tantya Mama Balidan Diwas) हैं. वहीं जब अंग्रेजों ने टंट्या भील को फांसी देने के बाद उनका शव पातालपानी के कालाकुंड रेलवे ट्रैक के पास दफना दिया था. कहते हैं कि टंट्या मामा का शरीर तो खत्म हो गया, लेकिन आत्मा अमर हो गई.


मप्र का पातालपानी रेलवे स्टेशन
दरअसल अंग्रेजों से लड़ने वाले टंट्या भील (Tantia Bhil) के मंदिर को सलामी देने के लिए ट्रेन दो मिनट के लिए यहां रोक दी जाती है. कहा जाता है कि सलामी के बाद ही ट्रेन में सवार यात्री सही सलामत अपनी मंजिल तक पहुंच पाते हैं. यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि अगर ट्रेन रुककर सलामी नहीं देती तो वह दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है या फिर गहरी खाई में गिर जाती है. कई लोग तो इस बात को भी मानते है कि अगर ट्रेन नहीं रोकी तो ट्रेन ही बंद हो जाती है. इसी बात को मानते हुए रेलवे ने भी इसे अघोषित नियम मान कर नियम बना लिया है. अब जब भी यहां से कोई रेल गुजरती हैं तो वो रुककर और ट्रेन का हार्न बजाकर ही आगे बढ़ती हैं.


यहां टंट्या मामा भील का मंदिर है
दरअसल पातालपानी और कालाकुंड के बीच यहां पर एक मंदिर है जो अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले मध्यप्रदेश के टंट्या मामा भील का है. अंग्रजों ने इन्हें फांसी देने के बाद उनके शव को पतालपानी के जंगलों में कालाकुंड रेलवे ट्रैक के पास दफना दिया था. स्थानीय लोगों का मानना है कि टंट्या मामा का शरीर जरूर खत्म हो गया था, लेकिन उनकी आत्मा अभी भी इन जंगलों में रहती है. कहा जाता हैं कि उनके शव को यहां दफनाने के बाद रेल हादसे होने लगे थे. ऐसे में स्थानीय लोगों ने यहां टंट्या मामा का मंदिर बनाया.


रेलवे की कुछ और कहानी
हालांकि रेलवे अधिकारी इस कहानी को गलत बताते हैं, उनका कहना है कि यहां से कालाकुंड तक रेल ट्रैक काफी खतरनाक है, इसलिए पातालपानी में ट्रेनों को रोककर ब्रेक चेक किया जाता है. हालांकि यहां मंदिर बना हुआ है तो सर झुकाकर आगे बढ़ते हैं. 


जानिए कौन थे टंट्या मामा भील
इतिहासकारों की मानें तो खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में सन् 1842 के करीब भाऊसिंह के यहां टंट्या का जन्म हुआ. पिता ने टंट्या को लाठी-गोफन व तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया. टंट्या ने धर्नुविद्या में दक्षता हासिल करने के साथ लाठी चलाने में कला भी महारत प्राप्त की. युवावस्था में ही अंग्रेजों के सहयोगी साहूकारों की प्रताडऩा से तंग आकर वह अपने साथियों के साथ जंगल में कूद गए और विद्रोह करने लगे.


पर्यटन सिर्फ सैर-सपाटा और मनोरंजन मात्र ही नहीं, बल्कि स्वयं की खोज की एक अद्भुत यात्रा है


रॉबिनहुड बनने की कहानी  
टंट्या एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहे. वह मालदारों से माल लूटकर वह गरीबों में बांटने लगे. लोगो के सुख-दुःख में सहयोगी बनने लगे. इसके अलावा गरीब कन्याओं की शादी कराना, निर्धन व असहाय लोगो की मदद करने से ''टंट्या मामा'' सबके प्रिय बन गया. जिससे उसकी पूजा होने लगी. बता दें कि रॉबिनहुड विदेश में कुशल तलवारबाज और तीरंदाज था, जो अमीरो से माल लूटकर गरीबों में बांटता था.


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