शहादत का ये कैसा सम्मान! बिना गार्ड ऑफ ऑनर के जवान को दी अंतिम विदाई
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शहादत का ये कैसा सम्मान! बिना गार्ड ऑफ ऑनर के जवान को दी अंतिम विदाई

मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के मावता गांव के वीर सपूत लोकेश कुमावत जो महज 22 साल मणिपुर के इंफाल में शहीद हो गए. अब तक बताया जा रहा है कि नक्सलियों से मुठभेड़ में गोली लगने से वे शहादत को प्राप्त हुए. 

शहीद जवान

कुलदीप नागेश्वर पवार/नई दिल्ली: देश की सीमाओं की सुरक्षा और राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए आए दिन कितने ही मां भारती के लाल अपने प्राणों का बलिदान कर देते है. बिना किसी स्वार्थ व अपने परिवार की चिंता किए अपने देश के लिए स्वयं को राष्ट्राय स्वाहा के ध्येय के साथ समर्पित कर देने वाले एक जवान की शहादत के साथ उसका पूरा परिवार शहीद होता है. राष्ट्र वंदना की भावना एक जवान व उसके परिवार के भीतर कितनी उच्च कोटि की होती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी-कभी तो इन शहीद जवानों के पार्थिव शरीर भी इनके परिवारों को देखना नसीब नहीं होते लेकिन बावजूद इसके राष्ट्र भूमि पर बलिदान की ये परंपरा वर्षों से अनवरत जारी है और दिन-प्रतिदिन इसकी लताएं फल-फूल रही है.

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आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखाएंगे हम?
वहीं विडंबना है कि कुछ तकनीकि त्रुटियों के चलते कभी इन जवानों को शहीद के तौर पर स्वीकार करने में भी सिस्टम मौन नजर आता है. और उनकी शहादत को सम्मान दिलाने के लिए उसके परिवार व समाज को संघर्ष करना पड़ता है, कहीं-कहीं तो शहीद जवानों की शहादत पर घोषणाएं तो तमाम प्रकार की कर दी जाती है लेकिन बाद में उनके परिवारों की सुध लेना भी कोई जरुरी नहीं समझता. आज इस विषय पर बात इसलिए जरुरी है क्योंकि हाल ही में मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के मावता गांव में घटे एक घटनाक्रम ने हमारे सामने फिर कई सवाल खड़े कर दिए है जैसे कि हम देश की आने वाली पीढ़ियों इस तरह से क्या संदेश देना चाहते है? देशभक्ति का कौन-सा नया मॉडल हम तैयार कर रहे है? शहादत के रुप में सर्वोच्च बलिदान को सर्वोच्च सम्मान देने की दिशा में हम क्या प्रयास कर रहे है?

वतन पर खुद को न्यौछावर कर गया रतलाम का लाल
मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के मावता गांव के वीर सपूत लोकेश कुमावत जो महज 22 साल मणिपुर के इंफाल में शहीद हो गए. अब तक बताया जा रहा है कि नक्सलियों से मुठभेड़ में गोली लगने से वे शहादत को प्राप्त हुए. मावता के इस वीर सपूत का 2019 में सेना भर्ती में चयन हुआ और एक साल की ट्रेनिंग के बाद अपनी पहली पोस्टिंग में ही इस जवान से देश सेवा के मार्ग पर खुद को न्यौछावर कर समर्पण वो मुकाम हासिल कर लिया जिसके लिए हर सैनिक लालायित रहता है.

जवान की मौत के कारण पर अधिकारियों ने साधी चुप्पी
जैसे ही जवान लोकेश कुमावत की शहादत की खबर उनके पैतृक गांव पहुंचते ही गांव का माहौल गमगीन हो गया. शहीद का पार्थिव शरीर गुरुवार को गांव लाया गया. आज सैन्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई. ग्रामीणों ने वीर सपूत के अंतिम विदाई में 10 क्विंटल फूल व 2 क्विंटल गुलाल से पुष्पवर्षा की. इस बीच ग्रामीणों को जहां एक ओर अपने बेटे की शहादत पर गर्व था तो वही दूसरी ओर अधिकारियों की जवान लोकेश कुमावत को शहीद मानने और उनकी मौत के स्पष्ट कारण बताने की चुप्पी को लेकर रोष भी था. लेकिन बावजूद इसके गांव के लाल की शहादत को पूरे सम्मान के साथ नम आंखों के साथ विदाई दी गई, मलाल रह गया तो इस बात का कि मां भारती के इस लाल को बिना गार्ड ऑफ ऑनर के अंतिम विदाई दी गई!

राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर शहीद को अर्पित की श्रद्धांजलि
जवान लोकेश कुमावत की शहादत कैसे हुई इसे लेकर सेना या प्रशासन की ओर से कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. वहीं मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने ट्वीट कर रतलाम के ग्राम मावता के वीर सपूत लोकेश कुमावत के शहीद होने पर गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रदेश की मुखिया सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी ट्वीट कर  जवान की शहादत पर श्रृद्धा सुमन अर्पित किए. 

जिसे माथा चूमकर भेजा,वहीं तिरंगे में लिपट कर लौटा
आपको बता दें शहीद लोकेश कुमावत के परिवार में उसके पिता और माता रेखा बाई सहित छोटा भाई विशाल है. विशाल के पिता और भाई खेती का काम करते हैं. काका रामेश्वर भी सेना में हैं. शहीद जवान लोकेश कुमावत का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जब कुछ दिनों पहले लोकेश घर छुट्टी पर आए थे, बाद में जब वह फिर ड्यूटी पर लौट रहे थे उस दौरान उनकी चचेरी बहन और मां रेखा बाई उन्हें तिलक लगाकर विदा किया था. लेकिन उस समय किसी ने ये कल्पना भी नहीं की थी कि आज मां अपने जिस लाल के माथे को चूम रहीं है. वह इस तरह एक दिन तिरंगे में लिपट कर घर लौटेगा.

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शिवराज सरकार क्या दिखाएगी संवेदनशीलता?
आज कितने ही शहीद जवानों के परिजनों को जानकारी के अभाव में या सिस्टम की शिथिलता के चलते जरुरी सुविधाएं और वो सर्वोच्च सम्मान नहीं मिल पाता जिसके वो हकदार है. कुछ मामलों में तो देखने में भी आया है कि शहीद के परिजन इसलिए भी कोई प्रयास नहीं कर पाते क्योंकि इस सारी प्रक्रिया की उन्हें कोई जानकारी नहीं होती, दूसरा ये प्रक्रियाएं अंग्रेजी में पूरी होती है जो एक कृषक, मजदूर वर्ग के लिए समझ पाना मुश्किल होता है. अब देखना होगा जब शहीद लोकेश कुमावत की शहादत पर जब संशय बना हुआ है, उस बीच उनके परिवार को वो सम्मान और सुविधाएं मिल पाएगी या नहीं ? प्रदेश सरकार अपने शहीद बेटे के प्रति कितनी संवेदनशीलता दिखाती है.

लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर हो कार्यवाही
रतलाम में शहीद की अंतिम विदाई में हुई लापरवाही को लेकर देश भर में शहीद जवानों व उनके परिवारजनों के लिए कार्य करने वाले शहीद समरसता मिशन के संस्थापक मोहन नारायण का कहना है कि - "शहीदों के सम्मान में किसी भी प्रकार की कोई कोताही बर्दाश्त के बाहर है. ये भारत के देशभक्त नौजवानों एवं जनमानस की भावनाओं का अपमान तो है ही व्यवस्था के लिये भी चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है शासन और प्रशासन को इसका संज्ञान लेना चाहिए इसकी जांच कर हुए लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की भूल की पुनरावृत्ति न हो। मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि शहीदों की अंतिम विदाई में कोई कमी न रहे ऐसी गाईडलाइन जल्द जारी की जाए. सर्वोच्च बलिदान को सर्वोच्च सम्मान यह सुनिश्चित किया जाए."

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