मनीष पुरोहित/मंदसौर: गंभीरतम रोगों में जीवनरक्षक दवाओं को बनाने में काम में आने वाले अफीम के उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाए जाने और अफीम की मादक पदार्थ के रूप में तस्करी पर नकेल कसने की महत्व कांक्षी योजना के तहत अफीम की खेती की नई पद्धति को सीपीएस को प्रायोगिक रूप से भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने लागू किया है. जिसके तहत अब अफीम उत्पाद का क्रय शासकीय केंद्रों पर केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग की निगरानी में कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बीच किया जा रहा है.


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जानिए क्या है सीपीएस पद्धति
Concentrated poppy straw यानी CPS) पद्धति के तहत अफीम की फसल के फल पर चीरा लगाकर उसका दूध एकत्रित नहीं किया जाता है. अफीम के डोडों (फल) को बिना चीरा लगाए सूखने दिया जाता है. जिसे शासकीय खरीद के माध्यम से क्रय कर फार्मास्यूटिकल processors के जरिए उसमें से अल्कलाइड एक्ट्रेक्ट किया(निकाला) जाता हैं. इसमें अफीम उत्पाद में किसी मिलावट की आशंका नहीं रहती उच्च गुणवत्ता वाला उत्पाद प्राप्त होता है, साथ ही पूरी फसल का उत्पाद शासकीय खरीद होने की वजह से इसके तस्करी में दुरुपयोग की आशंका भी कम होती है.


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किसान हुए खुश
किसान भी इस पद्धति से खुश दिखाई दे रहे हैं. इस पद्धति के तहत कृषि करने वाले किसानों को अफीम की ओसत का झंझट नहीं होता है. साथ ही अफीम निकालकर स्टोर करने और उसकी सुरक्षा की समस्या से भी राहत मिलती है. वहीं अफीम के डोडो से खसखस का उत्पादन भी उन्हें मिल जाता है.


हालांकि अभी सभी किसानों को सीपीएस पद्धति अनिवार्य नहीं की गई है. किसान परंपरागत रूप से भी अफीम का उत्पादन भी कर रहे हैं, लेकिन निकट भविष्य में विदेशों की तरह यहां भी सभी किसानों के लिए सीपीएस पद्धति लागू किए जाने की योजना है.


तस्करी पर लगेगी रोक
जिला अफीम अधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि इस पद्धति के तहत बिना चीरा लगाया डोडा हम किसानों से क्रय करते हैं. इसे कंप्रेसर मशीन से कंप्रेस करके फैक्ट्री में भेजा जाता है. इस पद्धति के जरिए बिना मिलावट के उच्च क्वालिटी वाला अल्कलाइड मिलता है और किसानों के लिए भी कम मेहनत वाला है इससे अफीम की तस्करी पर भी रोक लगेगी.