600 साल पहले चक्की चलाकर विधवा ने बनवाया था यह मंदिर, आज भी नहीं सुलझे कई रहस्य

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के जिले जबलपुर में रहस्यमयी मंदिर है, जिसका निर्माण करीब 600 साल पहले कराया गया था. यह जैन धर्म का यह पूज्य स्थल में से एक है. मंदिर में जिनालयों की सुंदर प्रतिमाएं लगी हुई हैं.

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जैन मंदिर

जबलपुर स्थित पिसनहारी की मढ़िया जैन धर्म का एक प्रसिद्ध मंदिर है. मान्यता है कि यह एक चमत्कारी स्थान और यहां आने वाली सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. 

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कैसे पड़ा नाम

इस मंदिर को करीब 600 साल पहले विधवा महिला ने 30 साल तक अनाज पीसकर इस मंदिर का निर्माण कराया था. तब से इसका नाम पिसनहारी की मढिया पड़ गया.  

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प्रेरणा

पिसनहारी की मढिया जैन धर्म के लोगों के लिए तीर्थ स्थल है. कहा जाता है कि जिस गरीब महिला ने इस मंदिर को बनवाया था उसे जैन संन्यासी का प्रवचन सुनने के बाद मंदिर बनाने के लिए प्रेरणा मिली थी.

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खास बात

मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां कई ऐसे पत्थर हैं वैसे ही रखे हैं, जैसे 600 साल पहले महिला ने मंदिर निर्माण के दौरान रखे थे. उस समय यहां सिर्फ एक मंदिर बनवाया गया था. 

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14 मंदिर

पिसनहारी की मढ़िया नाम का अर्थ ऐसी महिला से है जो हाथों से चक्की में आटा पीसती है. इसलिए मंदिर का नाम उसके नाम पर रखा गया. मंदिर के गेट पर आज भी वह चक्की रखी हुई है. पहले यहां एक मंदिर था बाद में 13 का और निर्माण कराया गया. 

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300 सीढ़ियां

महिला के सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए बाहर की दीवार पर महिला के जीवन की तस्वीर बनाई गई हैं. मुख्य मंदिर में जाने के लिए लगभग 300 सीढ़ियां हैं. सबसे ज्यादा यहां जैन धर्म के लोग आते है. 

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गुरुकुल

100 साल पहले संत गणेश प्रसाद वर्णी महाराज ने ध्यान के लिए गुरुकुल बनवाया था. बच्चों को नई और आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती थी. मढ़िया में सबसे पुरानी मूर्तियां हैं.  मुख्य मंदिर के आसपास अन्य मूर्तियां भी हैं.  

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मूर्तियों की सजावट

जैन धर्म की संस्कृति झलक देते सभी दीवारों पुरानी मूर्तियों को सजाया गया है. पिसनहारी की मढ़िया मंदिर परिसर में जैन साधु वर्णी महाराज और आचार्य बिनोवा भावे यहां पर मिले थे. 

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देश की आजादी

इस मढ़िया में सुभाष चंद्र बोस और वर्णी महाराज का देश को आजाद मंच पर भाषण दिया और प्रेरणादायी सभा की थी. देश आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज को जैन श्रद्धालु ने तीन हजार रुपए कि चादर खरीदकर राशि से फौज कि आर्थिक मदद की थी.

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