Uma Sanjhi Mahotsav: बाबा महाकाल की तरह पालकी में निकलीं मां पार्वती, देखिये नगर भ्रमण की मनमोहक तस्वीरें

Uma Sanjhi Mahotsav: बाबा महाकाल की तरह साल में एक बार मंदिर से माता पार्वती नगर का हाल जानने निकलती हैं. देखिये मंदिर से क्षिप्रा के राम घाट तक पालकी में सवार होकर शाही ठाठ बाट के साथ कैसे निकली मां उमा...

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पितर पक्ष में महाकाल मंदिर में 5 से 7 दिवसीय उमा सांझी महोत्सव की धूम रहती है. इस दौरान कई सांस्क्रतिक आयोजन मंदिर में होते हैं. इसी महोत्सव के अंतिम रोज माता पार्वती शहर का हाल जानने के लिए पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं.

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सोमवार को उमा सांझी महोत्सव का अंतिम दिन रहा और मंगलवार को माता पार्वती की सवारी के साथ शिप्रा में संजा ठंडी कर महोत्सव का समापन हुआ. सवारी शाम 4 बजे मंदिर से सांझी विसर्जन हेतु परम्परागत मार्ग से निकली.

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सवारी में जहां पालकी में मां उमा की प्रतिमा रही, वहीं नंदीजी व गरुड़जी के रथ भी साथ रहे. इस दौरान भक्तों में काफी प्रसंन्नता देखने को मिली. पूरे रास्ते में लोगों ने माता के दर्शन कर उनका स्वागात किया.

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सवारी शाम 4 बजे महाकालेश्वर मंदिर से महाकाल घाटी, तोपखाना, दौलतगंज चौराहा, नई-सड़क, कंठाल, सराफा, छत्री चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार, गुदरी चौराहा, बक्शी बाजार, कार्तिक चौक एवं मोढ़ की धर्मशाला, रामानुज कोट होकर क्षिप्रा घाट पंहुची.

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क्षिप्रा घाट में माताजी के जवारे, पूजन सामग्री, संजा आदि नदी में विसर्जन के पश्चात सवारी कहारवाड़ी, बक्शीबाज़ार एवं महाकाल रोड़ होते हुए वापस मंदिर पहुंची.

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पुजारी अर्पित गुरु ने महोत्सव पर अधीक जानकारी देते हुए बताया की श्राद्ध पक्ष में जिस प्रकार युवतियां संजा पर्व मनाती है. उसी प्रकार माता पार्वती ने 5 दिन के लिए उमा सांझी उत्सव के रूप में शिव के लिए ये महोत्सव मनाया था. उसी के चलते मंदिर में भी ये परमपरा का निर्वहन विधि विधान के साथ पूरा किया जाता रहा है.

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अर्पित गुरु ने बताया कि अलग-अलग दिनों में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है. झांकियां सजाई जाती हैं, महोत्सव ग्यारस से शुरू होता है जो अमावास के रोज रात्रि जागरण के पश्चात दूज के दिन खत्म होता है.

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मुख्य पुजारी महेश गुरु बताते है कि उमा सांझी महोत्सव के दौरान बाबा को नौका विहार कराई जाती है. चौपड खेलते हुए व अलग-अलग रूप में बाबा महाकाल की झांकियां सजाई जाती हैं. संझा को पुजारी परिवार हर रोज गोबर की जगह रंगों से बदलता है. हर रोज का अलग अपना महत्व इस दौरान होता है.

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