नई द‍िल्‍ली: भारतीय रेलवे में 14 हजार से ज्‍यादा इंजन हैं जो ट्रेनों को खींचते हैं. रेलवे में 1000 से ज्‍यादा मह‍िला लोको पायलट हैं ज‍िनका काम इंजन चलाना है. लेक‍िन हैरानी की बात है क‍ि इंज‍नों में यूर‍िनल की व्‍यवस्‍था ही नहीं है. अब इस मामले में भारतीय रेलवे कदम उठा रहा है. 


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लोको पायलटों से ले रहे फीडबैक 
इस मामले में रेलवे का कहना है इंजनों में यूर‍िनल स्‍थाप‍ित करने से पहले वह व‍िभाग में मौजूद लोको पायलटों से इस बारे में बात कर रहे हैं और फीडबैक ले रहे हैं. फीडबैक की प्रक्र‍िया जैसे ही पूरी होती है, वैसे ही इस संबंध में आदेश पार‍ित कर द‍िए जाएंंगे.  


इस संबंध में जारी क‍िए हैं ये आदेश 
बता दें क‍ि सभी जोनल रेलवे ने पिछले हफ्ते मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के अनुसार, रेलवे बोर्ड (आरबी) के बाद पायलटों से फीडबैक लेना शुरू कर दिया है. सभी जोनों के मुख्य विद्युत लोकोमोटिव इंजीनियरों (सीईएलई) को आदेश जारी किए हैं. 


पायलट प्रोजेक्‍ट के रूप में 97 इंजनों में लगे हैं यूर‍िनल  
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 25 अप्रैल 2016 को रेलवे बोर्ड को सभी इंजनों में शौचालय और एयर कंडीशनर स्थापित करने का आदेश दिया था जिस पर बोर्ड ने सहमति व्यक्त की थी. NHRC को आश्वस्त करने के लिए भारतीय रेलवे ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 97 इंजनों में वाटर क्लोसेट्स स्थापित किए थे. रेलवे अधिकारियों ने कहा कि फीडबैक प्रक्रिया को पूरा करने के बाद, रेलवे इन 97 वाटर क्लोसेट्स में से एक डिजाइन को अंतिम रूप देगा. 


लोको पायलट के रूप में एक हजार मह‍िलाएं करती हैं काम 
6 साल पहले तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने ‘बायो-टॉयलेट’ से लैस पहले लोकोमोटिव की शुरुआत की थी, लेकिन अब तक सिर्फ 97 इंजनों में ही ‘बायो-टॉयलेट’ लगाए गए हैं. भारतीय रेलवे के पास 14,000 से ज्यादा डीजल इलेक्ट्रिक इंजन हैं और 60,000 से ज्यादा लोको पायलटों में से लगभग 1,000 महिलाएं हैं, जिनमें से ज्यादातर कम दूरी की मालगाड़ियों को चलाती हैं. 


सुव‍िधा के ह‍िसाब से सौंपी जाएगी ड्यूटी   
रेलवे ने एक बयान में कहा कि रेल बजट की घोषणा और लगातार मांग के बाद ‘चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स’ (सीएलडब्ल्यू) द्वारा बनाए जा रहे इलेक्ट्रिक इंजनों में वाटर क्लोसेट (शौचालय) उपलब्ध कराने का फैसला लिया गया. महिला लोको पायलटों को उनकी सुविधा के हिसाब से ड्यूटी सौंपी जाती है.


माहवारी के समय होती है ज्‍यादा परेशानी 
महिला लोको पायलटों का कहना है कि इंजन में यूर‍िनल न होने की वजह से उन्होंने समझौता करना सीख लिया है. सुविधाओं की कमी साफ तौर पर उनके पुरुष सहकर्मियों के लिए भी एक समस्या है, लेकिन महिला ड्राइवरों को माहवारी के दौरान अतिरिक्त मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और इस दौरान ज्यादातर महिला ड्राइवर शौचालय नहीं होने के कारण छुट्टी पर जाना पसंद करती हैं.


इंजन में ब‍िताना होता है काफी समय 
एक लोको पायलट कम से कम 10-12 घंटे चालक के रूप में इंजन में अपना वक्त बिताता है. इस बीच यात्रा के दौरान वे न तो खाना खाते हैं और न ही शौचालय जाते हैं. यह अमानवीय है.  जिन महिलाओं को लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के रूप में भर्ती किया जाता है, वे या तो कार्यालयों में बैठती हैं या मुख्य रूप से शौचालय की कमी के कारण छोटी यात्राओं पर जाती हैं.


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