अरुण त्रिपाठी/उमरिया: (Pitra paksha 2022) पितृपक्ष का महीना चल रहा है, इस समय पितरों का श्राद्ध व तर्पण किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको बता रहें राम वन गमन के एक प्रमुख स्थल की जहां पर भगवान राम वन गमन के दौरान अपने पिता का श्राद्ध किया था, यह स्थल उमरिया जिले में स्थित है. यह अमरकंटक से निकलने वाली दो प्रमुख नदियों सोनभद्र एवं जोहिला के संगम स्थल पर स्थित है. इसे दशरथ घाट के नाम से जाना जाता है. 


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भगवान राम ने किया था अपने पिता का श्राद्ध
उमरिया जिले में स्थित भगवान श्री राम वन गमन के एक प्रमुख स्थल जिसे दशरथ घाट के नाम से जाना जाता है, जिले के मानपुर नगर से शहडोल की ओर जाने वाले मार्ग स्थित ग्राम केल्हारी में मुख्य मार्ग से तकरीबन 3 किमी दक्षिण दिशा में दो नदियों सोन एवं जोहिला के संगम स्थल पर स्थित है. बताया जाता है कि भगवान राम वन जाते समय इस स्थल पर अपने पिता महाराजा दशरथ का श्राद्ध किया था और यही वजह है कि विंध्य मैकल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी अमरकंटक से निकलने वाली देश की दो प्रसिद्ध नदियों सोनभद्र एवं जोहिला के संगम स्थल को आज भी दशरथ घाट के नाम से जाना जाता है. 


अमावस्या और पूर्णिमा पर आते हैं श्रद्धालु
राम वन गमन के मुख्य स्थलों के शुमार दशरथ घाट में हर अमावस्या एवं पूर्णिमा में आसपास के रहवासी स्नान पूजा पाठ करने आते हैं और बसंत पंचमी के मौके पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है जहां उमारिया शहडोल सहित प्रदेश एवं देश के कई अन्य हिस्सों से श्रद्धालु पंहुचते हैं. इस स्थल की और खास विशेषता है कि यहां भगवान कार्तिकेय का दुर्लभ मंदिर है बता दें भगवान कार्तिकेय के मंदिर दक्षिण भारत में पाए जाते हैं इस इलाके का यह कार्तिकेय जी का इकलौता दुर्लभ मंदिर है.



भगवान राम इसी रास्ते पहुंच थे नासिक पंचवटी
रामचरित मानस के अनुसार भगवान राम जब अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए 14 वर्ष के लिए वनवास के लिए निकले तो एक लंबा समय लगभग 12 वर्ष उन्होंने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ चित्रकूट में बिताया. यहीं भगवान श्री राम को भाई भरत से पिता महाराजा दशरथ की मृत्यु का समाचार मिला.14 वर्ष का वनवास पूरा करने भगवान राम जब चित्रकूट से आगे बढ़े तो सतना जिले के कई स्थलों से होते हुए उमारिया जिले की सीमा पर स्थित सोन नदी के किनारे मार्कंडेय आश्रम पंहुचे और उसके बाद बांधवगढ़ किले में रात्रि विश्राम के बाद जब आगे बढ़ें तो सोन एवं जोहिला नदी के संगम स्थल पंहुचे और संगम स्थल में पिता महाराजा दशरथ का श्राद्ध किया और आगे शहडोल जिले के जैसिंह नगर होते हुए छत्तीसगढ़ से होते हुए नासिक पंचवटी पंहुचे. 



उपेक्षा का शिकार है दशरथ घाट
रामवनगमन के इस प्रमुख स्थल की उपेक्षा और सुविधाओं की कमी की मुख्य वजह राजनीतिक और प्रशासनिक उपेक्षा रही है. यहां आसपास के निवासियों और श्रद्धालुओं के द्वारा कई बार सीएम से लेकर विधायक और मंत्री से दशरथ घाट को विकसित किये जाने की मांग की गई. लेकिन जिम्मेदारों ने लगातार अनसुना कर दिया. वहीं भगवान राम के भक्त लगातार दशरथ घाट की ख्याति के विस्तार देने में जुटे हैं. भक्तों का प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस स्थल की जानकारी पंहुचे और इस स्थल का विकास रामवनगमन के प्रमुख स्थलों के रूप में किया जा सके प्रशासनिक अधिकारी भी दशरथ घाट के विकास का भरोसा दे रहे हैं. बता दें कि मुख्य मार्ग से लगभग 3 किमी श्रद्धालुओं को दशरथ घाट पंहुचने के लिए बीहड़ और जंगल और सड़क विहीन मार्ग का सफर करना पड़ता है.


शिव पुराण में है उल्लेख
भगवान श्री राम के वन गमन के दौरान उमारिया जिले में आगमन और दशरथ घाट में पिता महाराजा दशरथ के श्राद्ध का उल्लेख प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में नहीं मिलता. लेकिन शिव पुराण और स्कन्द पुराण में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है एक ओर जहां भगवान राम के जन्मस्थल अयोध्या में भगवान रामलाल का विशाल मंदिर का निर्माण किया जा रहा है और रामवन गमन पथ के विस्तार की कवायत केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा की जा रही है. ऐसे में उमरिया जिले में स्थित भगवान राम के तीन प्रमुख स्थलों को चिन्हित कर उन्हें विकसित किया जाना आवश्यक है.


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