चन्द्रशेखर सोलंकी/रतलामः धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन के लिए (खरमास) पौष का महीना उत्तम माना गया है.  हिन्दू संस्कृति अनुसार हर साल पौष माह की अमावस्या पर दो बड़े अनूठे धार्मिक आयोजन देखने को मिलते हैं. इस दोनों धार्मिक आयोजन की दो बड़ी मान्यताएं हैं. पहला धार्मिक आयोजन है 11 दिवसीय त्रिवेणी का मेला का होता है तो वहीं दूसरा आयोजन जैन समाज का बिबडोद स्थित धार्मिक स्थल मेला लगता है. यहां बड़े-बड़े अमीर मर्सडीज छोड़ बैलगाड़ी से जाते हैं.


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मर्सडीज छोड़ बैलगाड़ी की यात्रा करते हैं श्रद्धालु
पौष माह की अमावस्या पर जैन समाज के बिबडोद स्थित धार्मिक स्थल पर मेला लगता है. यहां की परंपरा भी बड़ी अजब है. शहर से इस धार्मिक स्थल तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बैलगाड़ी से जाते हैं. इस दिन चाहे बड़े धनाढ्य व्यापारी परिवार के पास भले ही मर्सडीज जैसी महंगी गाड़िया क्यों न हो, परंपरा को निभाने वो भी बैलगाड़ी से ही सफर तय करते हैं. बैलगाड़ी में जाने की मान्यता के पीछे भी धार्मिक आस्था जुड़ी है.


जानिए क्या है मान्यता 
बताया जाता है कि जैन समाज के भगवान रिषभदेवजी का प्रतीक चिन्ह बैल है और इसलिए पुराने समय से भगवान के प्रिय बेल के सहारे बैलगाड़ी से जाने की परंपरा का निर्वाह आज भी किया जा रहा है. कच्ची सड़क समय के साथ फोरलेन में तब्दील हो गयी. लेकिन यहां की परंपरा को महंगी गाड़िया होने के बाद भी नहीं रही और आज भी निभाई जा रही है. जैन समाज के श्रद्धालु सभी इस परंपरा का निर्वाह कर बिबडोद धार्मिक स्थल आज यानी पौष अमावस्या  के दिन जाते हैं.


त्रिवेणी मेला
रतलाम में हर साल हिन्दू संस्कृति अनुसार पौष माह की अमावस्या पर 11 दिवसीय त्रिवेणी का मेला लगता है. इस मेले में अमावस्या के दिन गंगाजल यात्रा का आयोजन प्रमुख होता है और मात्र 30 मिनट के इस आयोजन को देखने और शामिल होने आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं. त्रिवेणी कुंड से जल कलश में लेकर भगवान का अभिषेक किया जाता है. बता दें कि अल्प समय में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इस कलश यात्रा में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचती है.


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