चद्रशेखर सोलंकी/रतलामः सावन माह में भगवान शिव के सभी अद्भुद व चमत्कारी शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा है. आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे अद्भुत स्वरूप के दर्शन और उनके विचित्र मंदिर के दर्शन करवाएंगे, जिनके बारे में जानकार आप भी वहां जरूर जाना चाहेंगे. क्योंकि इस मन्दिर का शिवलिंग केदारनाथ शिवलिंग की तरह है. इस प्राचीन मंदिर के खंभों की ऐसी भूल भुलैया की अच्छे-अच्छे गणित के ज्ञाता इस मंदिर के 64 खम्बों को एक बार मे नहीं गिन पाते हैं.


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सावन में आते हैं देश भर से श्रद्धालु
दरअसल रतलाम के बिलपांक गांव में स्थित विरुपाक्ष महादेव जन-जन की आस्था का केंद्र है. श्रावण मास और शिवरात्रि पर बाबा के दरबार में लाखों श्रद्धालु हर दिन दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. रतलाम से करीब 30 किमी दूर बिलपांक गांव है. मुख्य सड़क से पूर्व की ओर करीब 2 किमी अंदर विरुपाक्ष महादेव का प्राचीन मंदिर है. यहां महाशिवरात्रि पर मेला लगता है तो सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगता है, जिसमें देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं.


यहां के प्रसाद से होता है चमत्कार
वर्षों से मान्यता है कि विरुपाक्ष महादेव के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है. इस मंदिर पर 80 साल से एक चमत्कार महाशिवरात्रि पर होता आ रहा है. मंदिर में महाशिवरात्रि पर 5 दिवसीय हवन होता है. लेकिन इस हवन की आहुतियों के दौरान हवन कुंड के ठीक ऊपर खीर के प्रसाद को बांधकर लटकाया जाता है. इस हवन कि आहुतियों से इस खीर के प्रसाद में भगवान विरुपाक्ष का विशेष आशीर्वाद मिलता है. इस प्रसाद को महाशिवरात्रि के एक दिन बाद वे महिलाएं ग्रहण करती हैं, जिन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो पा रही है. माना जाता है कि इस प्रसाद से संतान की मनोकामना पूर्ण होती है. गोद भरने पर यहां बच्चों को मिठाईयों से भी तौला जाता है.


एक बार में मंदिर के खंभों को गिनना नामुमकिन
वहीं इस मंदिर की एक और खास विशेषता है इसे भी चमत्कार से कम नहीं माना जाता है. इस मंदिर को भूल भुलैया वाला शिव मंदिर भी कहा जाता है, क्योंकि इस मंदिर में लगे खंभों की एक बार में सही गिनती करना किसी के बस की बात नहीं है. इस मंदिर के सभी 64 खंभों पर की गई नक्काशी देखने लायक है. इस प्राचीन विरुपाक्ष महादेव मंदिर के अंदर 64 खंभों का एक मंडप है, जबकि 8 खंभे अंदर गर्भगृह में हैं. यहां लोग आकर कई बार कोशिश कर चुके हैं कि इन 64 खम्बों की गिनती एक बार में कर लें, लेकिन इन खंभों की सही गिनती एक बार मे करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकीन है.


शिल्पशैली में बना है मंदिर
इस मंदिर को लेकर बताया जाता है कि विरुपाक्ष महादेव मंदिर परमार गुर्जर चालुक्य (गुजरात) की सम्मिश्रित शिल्पशैली का अनुपम उदाहरण है. मंदिर का शिल्प सौंदर्य व स्थापत्य उस काल की शिल्पशैली के चरमोत्कर्ष पर होने का परिचय भी देता है. मंदिर में गर्भ गृह, अर्द्ध मंडप, सभा मंडप निर्मित है. सभा मंडप की दीवारों पर विभिन्न वाद्य यंत्रों के साथ नृत्यांगनाओं को आकर्षक मुद्राओं में दर्शाया गया है.


मंदिर में है मौर्यकालीन स्ंतभ
सभा मंडप में स्थापित मौर्यकालीन स्तंभ इस बात का प्रमाण देता है कि यह मंदिर मौर्यकाल में भी अस्तित्व में था. स्तंभ पर हंस व कमल की आकृतियां बनी हुई हैं. मध्य में मुख्य मंदिर के चारों कोनों में चार लघु मंदिर है. पंचायतन शैली के इस मंदिर में बीच मे विरुपाक्ष महादेव का मुख्य मंदिर व चारों कोनों पर गणेशजी, हनुमानजी, राधाकृष्ण व शिवजी का मंदिर है.


मंदिर समिति करती है सारी व्यवस्थाएं
इस मंदिर की बनावट भी कुछ इस तरह की है कि ऊपर से देखने पर यह जलाधारी की तरह दिखाई देता है सावन माह में यहां रोज श्रधालुओं का तांता लगा रहता है. सोमवार को सुबह जल्दी भक्तों की कतार लगना शुरू हो जाती है और पुरे दिन यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है. इस पूरे महीने भक्त भगवान विरुपाक्ष महादेव का आशीर्वाद लेते है. मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए सारी व्यवस्थाएं की जाती है.


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(disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी मंदिर में प्रचलित मान्ताओं पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है.)