आर. बी. सिंह/टीकमगढ़ः मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित शिवधाम कुंडेश्वर मंदिर में आज सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. यहां बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए सुबह से भक्त पहुंच रहे हैं. आज सावन माह के दूसरे (Sawan Somvar) सोमवार के दिन कुंडेश्वर में सुबह 4 बजे से ही भक्तों का आना शुरू हो गया है. आज सावन सोमवार और प्रदोष व्रत होने से सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. प्रशासन ने श्रद्धालुओं के सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने बाबा का दर्शन पूजन और जलाभिषेक किया.


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आपको बता दें कि बुंदेलखंड के टीकमगढ़ के शिवधाम कुंडेश्वर मंदिर के शिवलिंग की ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में यहां ओखली से स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुए थे और यह शिवलिंग हर साल एक चावल के आकार बराबर बढ़ता है. सावन माह में कुंडेश्वर का विशेष महत्व रहता है. सावन में यहां बुन्देलखण्ड के अलावा देश के अलग-अलग प्रदेशों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस मंदिर के इतिहास को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं इन मान्यताओं के बारे में


द्वापर युग में शोणितपुर नाम के नगर में बाणासुर नाम के महान प्रतापी राजा राज्य करते थे. वे भगवान शंकर के परम भक्त थे. कैलाशपति भूतभावन भोलेनाथ की कृपा से उन्हें महान शक्ति वैभव और यश प्राप्त हुआ था. उनकी एक अत्यंत रूपवती उषा नाम की राजकुमारी थी. वह भी बचपन से शिव पार्वती की आराधना में लीन हुई. उषा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे दर्शन दिए थे. उषा ने वरदान मांगा था कि प्रभू जैसे आपने मुझे दर्शन दिए. वैसे ही आप सारे संसार को दर्शन दें. शिव जी एवमस्तु कहकर अन्तधर्यान हो गए. इसलिए इसे उषा पूजित कुण्डेष्वर भगवान के नाम से जाना जाता है. आज भी जामनेर नदी के उस पार वाणपुर नाम का नगर और टीकमगढ़, बानपुर मार्ग पर बाणाघाट है. वहीं बीरगांव के समीप ऊषा कुंड है. जिस कुंड में स्नान करके ऊषा शिव जी की पूजा करने जाती थी.


इस क्षेत्र में एक किंवदन्ती प्रचलित है कि जिस ऊंची पहाड़ी पर जहां शिवलिंग स्थित है. वहां एक छोटी सी बस्ती थी. एक महिला ओखली में धान कूट रही थी, तभी अचानक उसकी ओखली खून से भर गई. उसे देखकर महिला ओखली पर कूढ़ा रख कर पड़ोस की औरतों को समाचार देने चली गई. पड़ोस के नर नारियों ने आश्चर्य चकित होकर ज्योहि कूड़ा उठाया तो उन्हें उखली में शिवलिंग के दर्शन हुए. सभी ने प्रसन्न होकर कहा कि कूढ़े के नीचे शंकर जी प्रकट हुये हैं.


वहीं इस मंदिर को लेकर कुछ लोगों की मान्यता है कि शंकर जी समीप वर्ती कुण्ड में अवतरित हैं. अतः इनका नाम भगवान कुण्डेश्वर है. सन् 1938 में वीर सिंह जू देव (द्वितीय) ने प्राचीन मंदिर की खुदाई कराई थी. उस समय शिवलिंग 20 फीट ऊंचा निकला और उसका झुकाव कुण्ड की ओर था. इस कारण उसे कुण्ड से प्रकट होने की बात सत्य हो सकती है.


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