MP Borewell Incident Betul: श्यामदत्त चतुर्वेदी/नई दिल्ली: बैतूल जिले के मंडावी गांव में 400 फीट गहरे बोरबेल में गिरे मासूम तन्मय साहू की मौत हो गई है. बैतूल से पहले मध्य प्रदेश में छतरपुर, उमरिया दमोह में बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं. हालांकि, छत्तरपुर में बच्ची को बचा लिया गया, लेकिन दमोह,उमरिया और अब बैतूल में बच्चों को तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बचाया जा सका. अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे मामले सामने आते क्यों है? क्या इन्हें लेकर कोई कानून या गाइडलाइन नहीं है? अगर है तो क्या है? इन हादसों से जान के नुकसान के अलावा भी क्या नुकसान होता है और इनसे कैसे बचा जा सकता है.


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जब पहली बार बोरवेल हादसा सुर्खी बना
बोरवेल हादसों की घटना कोई आज की नहीं है. लेकिन पहली बार मीडिया में मामले ने 2006 में तूल पकड़ा. 21 जुलाई साल 2006 में पहली बार इस तरह का मामला सुर्खियों में आया था. 21 जुलाई 2006 को हरियाणा के गुरूग्राम में प्रिंस नाम का बच्चा 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था. 23 जुलाई को भारतीय सेना के जवानों ने उसे बाहर निकाला. इसी घटना के बाद जनहित याचिकाओं का सिलसिला शुरू हुआ था.


क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
कई याचिकाएं दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नलकूप या बोरवेल में गिरने वाले बच्चों को बचाने के लिए 6 अगस्त 2010 में आदेश पारित किया था. जिसमें कुछ गाइडलाइन तय की गई थीं. फैसला तत्कालीन चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने रिट पिटीशन पर सुनाया था. उसी समय से फैसला पूरे देश में लागू है, लेकिन हादसे वैसे ही होते आ रहे हैं.


क्या हैं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन (Supreme Court Guidelines Regarding Barbell Accidents)
- नलकूप की खुदाई से पहले कलेक्टर/ग्राम पंचायत को लिखित सूचना देनी होगी
- खुदाई करने वाली सरकारी, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन होना चाहिए
- नलकूप की खुदाई वाले स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए
- खुदाई के दौरान आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग की जाना चाहिए
- केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट/कॉन्क्रीट का 0.30 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बनाना चाहिए
- बोर के मुहाने को स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसना होगा
- पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखा जाएगा
- नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाएगा
- खुदाई अधूरी छोड़ने पर मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए


हादसों का जिम्मेदार कौन?
बोरवेल खुदाई को लेकर राज्यों में का विभागों के साथ ही हाईकोर्टों के कई निर्देश हैं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियमों को पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी. वे सुनिश्चित करेंगे कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसी के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन हो. गलतियां करने वाले पर कार्रवाई हो.


ये हैं मध्य प्रदेश में हुई घटनाएं
दमोह की घटना-
27 फरवरी 2022 को दमोह के पटेरा ब्लॉक के बरखेड़ा वैस गांव में 3 साल का प्रिंस खेलते-खेलते खेत में बने बोरवेल में गिर गया. करीब 6 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला. बच्चे को गड्ढे से निकालने के बाद सीधे अस्पताल ले जाया गया है, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.


उमरिया की घटना- 24 फरवरी 2022, दिन गुरुवार को 4 साल का बच्चा गौरव बोरवेल में गिर गया. उसे बचाने के लिए तमाम प्रशासनिक संसाधन लगाए गए, लेकिन रेस्क्यू से पहले बच्चे की मौत हो गई. 24 फरवरी को बोरवेल में गिरे बच्चे को 25 फरवरी की सुबह रेस्क्यू किया जा सका.


छतरपुर की घटना- 17 दिसंबर 2021, गुरुवार की दोपहर छतरपुर में नौगांव थाना क्षेत्र के दोनी गांव में एक साल की बच्ची करीब 15 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई. मौके पर राहत बचाव कार्य शुरू किया गया. 9 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बच्ची को बचाया जा सका.


क्यों होती है इस तरह की लापरवाही
- पैसा बचाने के लालच में लोग बोरवेल खुला छोड़ देते हैं
- कई लोगों अगले साल पानी आने पर उसका उपयोग की उम्मीद रहती है
- लोगों को लगता है कि पर इन जगहों पर बच्चों का आना-जाना नहीं होता, इसलिए गंभीर हीं होते
- कई संस्थागत बोरवेल ठेकेदारों द्वारा लापरवाही और पैसे बचाने के लिए खुले छोड़ दिए जाते हैं


संसाधनों का अपव्यय पर समाधान क्या?
बोरवेल या गड्ढे में बच्चे के गिरने से उसको रेस्क्यू करने में तमाम प्रशासनिक संसाधनों का उपयोग होता है. कई मामलों में सेना और SDRF के साथ ही NDRF तक की मदद लेनी पड़ी है. बड़ी-बड़ी मशीनों को काम पर लगाया जाता है. इसमें भारी सरकारी खर्च आता है. सबसे ज्यादा बच्चों के परिजन मानसिक और शारीरिक रूप से भी परेशान होते हैं. ऐसे में नियमों के पालन के अलावा अपनी समझदारी से इन घटनाओं से बचने के लिए प्रयास किए जाना ही बेहतर है.