प्रमोद सिन्हा/खंडवा:  वनांचल में रहने वाला आदिवासी भी अब व्यापारी बन गया है. वह न सिर्फ अपनी उपज का दाम खुद तय कर रहा है, बल्कि बड़े व्यापारियों से मोलभाव भी कर रहा है. पेसा एक्ट लागू होने के बाद अधिकार बढ़े तो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं. तेंदूपत्ता संग्रहण कर अब सीधे और जल्दी मुनाफा भी इनके हिस्से आएगा.


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पेसा एक्ट के तहत आदिवासियों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं. इसका ताजा उदाहरण खंडवा जिले की खालवा तहसील के 4 आदिवासी गांव में देखने को मिल रहा है. यहां के आदिवासी ग्रामीणों ने ग्राम सभा के जरिए अपनी स्वयं की समिति बनाई और बीड़ी व्यापारियों से कॉन्ट्रैक्ट किया. बीड़ी व्यापारी ने फिलहाल इनकी मजदूरी का पैसा समिति के खाते में डाल दिया है जल्दी ही लाभांश का पैसा भी मजदूरों के खाते में आने लगेगा. वन विभाग के अमले ने इसमें सेतु का काम किया. इस पूरी प्रक्रिया में न तो कोई विचोलिया है और ना ही कोई प्रशासनिक अड़ंगा है. 


ग्रामीणों के फैसले से खुले भाग्य
खंडवा जिले के आदिवासी बहुल खालवा विकासखंड के सुदूर ग्राम झारीखेड़ा, सोनपुरा, अंबापाट, ढकोची के ग्रामीणों ने इस बार सामूहिक निर्णय लिया. तेंदूपत्ता का संग्रहण करेंगे और सीधे बड़े व्यापारी को बेचेंगे. इसके लिए समितियों का गठन किया गया. बैंक में खाता खुलवाया और व्यापारियों से सीधा सौदा कर मुनाफा कमाया. पहले वन विभाग के माध्यम से पहले संग्रहण की राशि मिलती थी. फिर बोनस के लिए इंतजार करना पड़ता था. इन समितियों का प्रतिनिधित्व करने वाले आदिवासी कहते हैं कि पेसा एक्ट की वजह से ये मजबूती आई है.


वन विभाग अब सेतु काम कर रहा
पहले मुख्य भूमिका में रहने वाला वन विभाग अब तेंदूपत्ता संग्राहकों और व्यापारियों के बीच सेतु का काम कर रहा है. संग्राहकों की बैठकें लेकर उन्हें तकनीकी पहलुओं की जानकारी दी. खंडवा जिले के खालवा में बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ता होता है. इसलिए यहां के 4 प्रमुख वनग्राम में समितियों का गठन की गया. इससे तेंदूपत्ता का संग्रहण करने वाले आदिवासी खुद व्यापारी की भूमिका में आ गए.