Pitra paksha 2022: एमपी की वो जगह जहां प्रभु राम से लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने किया था पितरों का तर्पण!
Gayakotha Teerth Ujjain: आज से 16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो गई है. (pitru paksha 2022 start) इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. ऐसे में आज हम आपको बता रहे ऐतिहासिक नगरी अवंतिका के बारे में जहां मान्यता है कि यहां पर सभी तीर्थों का अंश है और यहां पर प्रभु राम से लेकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध किया था. आइए जानते पितृपक्ष के दौरान यहां होने वाले श्राद्ध के महत्व के बारे में...
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: सप्त पुरियों में से एक धार्मिक नगरी उज्जैन में श्राद पक्ष का अपना अलग महत्व है. उज्जैन में सिद्ध वट, राम घाट, गया कोटा ये तीन प्रमुख स्थान हैं, जहां हर वर्ष श्राद पक्ष के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों, पितरों का श्राद करने उन्हें मोक्ष दिलवाने पहुंचते हैं, श्रद्धालु दूध में काले तिल, पुष्प डाल कर क्षिप्रा नदी, सिद्ध वट पर व गया कोटा तीर्थ पर अर्पित करते है मान्यता है ऐसा करने पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. आपको बता दें कि पितृपक्ष के दौरान क्षद्धालु यहां हजारों की संख्या में पहुंचते हैं और पूर्वजों के मोक्ष हेतु पूजन तर्पण और पिंडदान करते हैं.
प्रभु राम से लेकर कृष्ण ने पितरों का किया था श्राद्ध
बता दें कि विश्व के 7 स्थानों (सप्तपुरियों) में से एक स्थान है महाकाल की नगरी उज्जैन जहां प्रभु राम ने अपने पिता दशरथ के मोक्ष हेतु मां क्षिप्रा नदी किनारे घाट पर तर्पण (पिंड दान)किया था. यही वो स्थान है, जहां माता पार्वती ने अपने हाथों से 4 वट वृक्षों में से एक सिद्ध वट रोपित किया, और यही वो स्थान है जहां श्री कृष्ण ने पितरों के मोक्ष हेतु मोक्ष स्थान की स्थापना की. महाकाल की नगरी के पुजारी राजेश त्रिवेदी ने बताया कि महाकाल की नगरी उज्जैन में विश्व के सभी तीर्थों का अंश है. इसलिए यहां कोई भी मांगलिक अथवा पितरों के श्राद्ध का मोक्ष करने से उसका 10 गुना अधिक फल मिलता है.
भगवान राम ने किया था पिंडदान
दरअसल वैदिक परंपरा के अनुसार पितरों का श्रद्धा से श्राद्ध करना उत्कृष्ट कार्य है, पुत्र का जीवन तभी सार्थक है, जब वह जीवित माता-पिता की सेवा करें और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु-तिथि और पितृपक्ष में उनका विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करें, पुजारी गोपाल कृष्ण के अनुसार धार्मिक नगरी उज्जैन में क्षिप्रा किनारे श्राद पक्ष के महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि वनवास के बाद जब प्रभु राम अयोध्या लौटे तो उन्होंने सरयू किनारे पिता दशरथ का पिण्ड दान किया जिसके बाद वे उज्जैन, मथुरा, गया जी, प्रयागराज, रामेश्वर सहित सप्त पुरियों में पिंड दान कर पिता दशरथ के मोक्ष हेतु प्रार्थना की और उन्हें इंद्र लोक में स्वर्ग की प्राप्ति करवाई. इन सभी जगहों को आज राम घाट के नाम से जाना जाता है.
सिद्ध वट का महत्व
पुजारी राजेश त्रिवेदी जी के अनुसार मान्यता है भारत में चार वटवृक्ष महत्वपूर्ण माने गए हैं, प्रयाग का अक्षयवट, वृंदावन का वंशी वट, गया का बौद्धवट और उज्जैन का सिद्धवट पुजारी जी ने कहा स्कंद पुराण के अनुसार शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिक स्वामी इस वट के नीचे सेनापति नियुक्त हुए और तारकासुर का वध किया, यहां तीन प्रकार की सिद्धि संतति, संपत्ति और सद्गति होती है. तीनों की प्राप्ति के लिए लोग सिद्धवट पर दूध चढ़ाने आते हैं, संद्रति अर्थात पितरों के लिए पिंडदान-तर्पण, संपत्ति अर्थात लक्ष्मी प्राप्ति के लिए रक्षासूत्र बांधने और संतति अर्थात पुत्र प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया (स्वस्विक) बनाने आते हैं, इसी वजह से इसका नाम सिद्धवट पड़ा.
गयाकोठा तीर्थ जिसकी श्री कृष्ण ने की स्थापना
गयाकोठा तीर्थ के मुख्य पुजारी ने महत्व को बताते हुए कहा कि गयाकोठा तीर्थ का स्कन्द पुराण में उल्लेख मिलता है, कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण जब शिक्षा प्राप्त कर लौट रहे थे तो मां अरुंधति ने उनसे कहा कि प्रभु मेरे 7 बच्चे हैं, जिनमें से 6 को गया सुर राक्षस नाम का राक्षस खा गया, 7वां बच्चा उसके पास है, उसे ला दीजिये, श्री कृष्ण ने गया सुर का वध कर 7वें बच्चे को मा अरुंधति को लौटाया, इसी बीच गुरु सांदीपनि ने प्रभु कृष्ण से प्रार्थना की की बच्चों के लिए मोक्ष का स्थान आप यहां बनाइये, जिसके बाद श्री कृष्ण ने बिहार में प्रवाहमान फल्गु नदी से आग्रह कर यहां कुंड में विराजमान होने को कहां सप्त ऋषियों ने संदीपनि के 6 बच्चों को मोक्ष दिलवाया, लेकिन सांदीपनि ने आने वाले समय के लिए मोक्ष स्थान बनाने का आग्रह किया जिसपर श्री कृष्ण ने 16 चरणों को स्थापित 16 तिथियों अनुसार स्थापित किया.
150 वर्ष पुराने कुल के लोगों का नाम पता एक पोथी में है छपा!
शहर में 300 से अधिक पुजारी श्राद पक्ष में व अन्य शुभ कार्यो में पूजन अर्चन करवाते आये हैं, वर्षो पहले से चली आ रही इस पूजन प्रक्रिया के लिए लोगों ने अपने अपने पंडित पिछली कई पीढ़ियों से फिक्स कर रखे हैं, इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि इन पंडितों के पास उनके दादा,परदादा से लेकर पिछली कई पीढ़ियों के नाम का चिट्ठा एक पोथी में लिखा हुआ है. करीब 150 वर्ष पुराना लेखा-जोखा जो पूजन के दौरान काम आता है, खास बात यह कि आज के अत्याधुनिक कंप्यूटर के युग मे भी पोथी से ही इस कार्य को पूरा किया जा रहा है जिसे न्यायालय ने भी स्वीकृति दे रखी है.
ऑनलाइन भी होता है पूजन तर्पण!
माना गया है कि श्राद पक्ष में पतरों का तर्पण व पिंडदान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है, क्योंकि कहा गया है जिसके घर पितृ दोष होता है, उसके काम में अड़चने आती है, ऐसे में हर कोई पितृ मोक्ष के लिए पूजन करवता है, नगर के पुजारी राजेश त्रिवेदी बताते हैं कि ऑनलाइन पूजन हम विदेशों में बैठे लोग, दिल्ली, नोएडा मुम्बई जैसे शहरों में बैठें लोगो का करवाते हैं और उसे विधि विधान के साथ ही सम्पन्न करवाया जाता है, बात दान-दक्षिणा की करें तो ये सब भी ऑनलाइन होता है.
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