राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: धार्मिक नगरी अवंतिका उज्जैनी में एक तरफ होली की धूम (Holi Dhoom) है तो वहीं दूसरी और अंधविश्वास के आगे जिले के दर्जनों ग्रामीण इलाको में आस्था नत्मस्तक दिखाई पड़ी. दरअसल होली पर्व पर उज्जैन (ujjain) ही नहीं मालवा-निमाड़ (Malwa-Nimar) क्षेत्र के कई ग्रामीण इलाकों में सदियों से एक अनूठी परंपरा (unique tradition) का निर्वहन ग्रामीण करते आ रहे हैं. ये परंपरा 'चूल' के नाम से प्रसिद्ध है. जिसमें धधकते अंगारो पर कोई हाथ मे कलश लिए तो कोई बच्चों को लिए मन्नत मांगते हुए तो कोई मन्नत पूरी होने पर चलता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बता दें कि ग्रामीणों में क्या बच्चे, युवा, बुजुर्ग और महिलाएं हर कोई इस अनूठी परंपरा का हिस्सा बन खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं. कोई मंदिरों में मनोकामनेश्वर महादेव के आगे सर झुकाता दिख रहा है तो कोई फाग उत्सव के गीत गाते नजर नजर आ रहा है.


ग्रामीण मानते हैं भगवान का आशीर्वाद
आपको बता दें कि ढोल की थाप पर मुस्कुराते चेहरों को देख कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि इनके पैर जलते होंगे. दावा ये भी है कि आज तक कभी कोई हादसा नहीं हुआ. ग्रामीण इसे भगवान का आशीर्वाद मानते हैं और अपने बच्चों को भी इस परंपरा के बारे में सिखाते हैं. जिससे परंपरा का निर्वहन होता रहे. इस अनूठी परंपरा का निर्वनह उज्जैन जिले के बड़नगर, उन्हेंल, घट्टिया तहसील के ग्रामीण इलाकों में होता है.


जानिए कैसे होता है पूजन
ग्रामीण बताते हैं कि सबसे पहले सभी ग्रामीण भगवान के धाम से पूरे गांव की परिक्रमा कर वापस भगवान के धाम पहुंचते हैं. घर घर से लकड़ी, कंडे, घी एकत्रित किया जाता है, भगवान के धाम के सामने कहीं 11 फुट तो कहीं 21 फुट लंबा गड्डा खोदा जाता है. जिसका पहले पुजारी के माध्यम से पूजन होता है. मंत्रोच्चारण के साथ उसमें लकड़ी डालकर मंदिर के दीपक से अग्नि प्रज्वलित की जाती है. सबसे पहले पुजारी आग पर से निकलते हैं. इसके बाद बारी-बारी से मन्नत पूरी होने वाले और मन्नत मांगने वाले ग्रामीण हाथों में कलश लिए तो कोई अपने बच्चों को लिए उसी आग में से नंगे पैर निकलते हैं.


ये भी पढ़ेंः MP Gold Silver Price: होली हुई हैप्पी! महीने के निचले स्तर पर पहुंचा सोना, चांदी के भाव गिरे; जानें कितनी हो गई कीमत