Vijayaraje Scindia Jayanti: श्यामदत्त चतुर्वेदी/नई दिल्ली: आज यानी 12 अक्टूबर को ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म जयंती है. इस मौके पर उन्हें उन्हें देश प्रदेश के कई नेता याद कर रहे हैं. पीएम मोदी से लेकर सीएम शिवराज और कई मंत्रियों ने राजमाता को याद किया. आज उनकी जयंती के अवसर पर हम उनसे जुड़े एक किस्से के बारे में बता रह हैं, जिससे उनका राजधर्म के प्रति निष्ठा और पार्टी के प्रति प्रेम दिखता है.


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दिव्येश्वरी से कैसे बनीं विजयाराजे
12 अक्टूबर 1919 को सागर के राणा परिवार में जन्मीं लेखा दिव्येश्वरी के पिता का नाम महेन्द्रसिंह ठाकुर और माता का नाम विंदेश्वरी देवी था. उनके पिता जालौन के डिप्टी कलैक्टर हुआ करते थे. दिव्येश्वरी को 21 फरवरी 1941 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से शादी बाद विजयाराजे सिंधिया नाम मिला. राजनीति में आते ही वो अपने कार्यों के कारण भारतीय राजनीति में काफी याद किया जाने वाले नेताओं में शामिल हो गईं.


धर्म संकट के बाद भी निभाया राजधर्म
आज हम उनके जयंती पर उनसे जुड़े उस किस्से के बारे में बता रहे हैं, जब उन्होंने अपने बेटे के खिलाफ ही प्रचार किया था. कहानी साल 1984 में हुए आमचुनाव से जुड़ा हुआ है. ग्वालियर से कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को मैदान में उतारा था. वहीं जनसंघ ने अपना प्रत्याशी अलट बिहारी वायजेयी को बनाया. चुनाव दो दिग्गजों के कारण दिलचस्प तो हो गया, लेकिन जनसंघ की संस्थापक राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सामने धर्म संकट आ गया.


कैसा धर्म संकट था?
राजमाता अटल विहारी वाजपेय को अपना धर्म पुत्र मानती थी. वहीं माधवराव सिंधिया उनकी पांच संतानों में अकेले पुत्र थे. अब चुनावों में उनके दोनों बेटे अलग-अलग पार्टियों से एक ही सीट के लिए चुनाव लड़ रहे थे. इसके साथ ही दूसरा धर्म संकट राजमाता के सामने कांग्रेस प्रत्याशी माधवराव सिंधिया और जनसंघ प्रत्याशी अटल बिहारी वायजेपयी को लेकर था आखिर वो किसका प्रचार करें और किसके खिलाफ जाएं.


पार्टी के लिए निभाया राजधर्म
राजनीति में 80 के दशक का समय सिद्धांतों की होती थी. एक तरफ राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बेटे चुनाव लड़ रहे थे, तो दूसरी तरफ अटलजी थे. ऐसे में विजयाराजे सिंधिया ने वाजपेयी को धर्मपुत्र मानकर उनका प्रचार किया था. हालांकि अटलजी 1984 का चुनाव हार गए थे. तब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की राजनीति को लेकर काफी चर्चा हो रही थी और देशभर में उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा के साथ पार्टी प्रेम के चर्चे हो रहे थे और उन्हें सराहा गया था.