MP News: साल 2023 के आखिर में मध्य प्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने वोटर्स को साधना शुरू कर दिया है. यह आपको मध्य प्रदेश की 7 सीटों पर हार-जीत तय करने वाले पसमांदा मुस्लिमों के बारे में बता रहे हैं. इस मुस्लिम कम्यूनिटी का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्रो मोदी भी अपने भाषण में कर चुके हैं.  मोदी ने कहा था, 'पसमांदा मुसलमानों का वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने जीना मुश्किल कर रखा है. उनको तबाह करके रखा है.'


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पसमांदा मुसलमानों को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ-साथ 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अहम मान रही है. आखिर में सवाल उठता है कि पसमांदा मुसलमान कौन है? मध्य प्रदेश की राजनीति में उनका कितना रोल है? यह भी जानना जरूरी है कि पसमांदा मुसलमान मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कितना मायने रखते हैं?


कौन है पसमांदा मुसलमान
पसमांदा मुसलमानों का मतलब ऐसे मुसलमानों से हैं, जो समाज में पिछड़ी जातियों से आते हैं और सामाजिक रूप से पिछड़े हों. एक तरीके से इन्हें दलित मुस्लिम भी कहा जा सकता है. इस वर्ग में मुस्लिमों की कुंजड़े, जुलाहे, धुनिया, कसाई, फकीर, हज्जाम, मेहतर, ग्वाला, धोबी, लोहार, बढ़ई, मनिहार, दर्जी, वन्गुज्जर और तेजी जैसी जातियां आती हैं. इस वर्ग का राजनीति में बहुत कम हस्तक्षेप है. ज्यादातर मुस्लिम नेता अगड़ी जातियों से ही ताल्लुक रखते हैं.


पसमांदा मुसलमान की आबादी
मध्य प्रदेश के संदर्भ में पसमांदा मुसलमानों की बात करें तो प्रदेश के 7 सीटों पर पसमांदा वोट अहम भूमिका निभाते हैं. साथ ही 5 जिलों में भी इनके वोट निर्णायक हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश 6.57 प्रतिशत मुसलमान आबादी है. मोटे तौर पर राज्य में तकरीबन 50 लाख से ज्यादा मुस्लिम हैं. बताया जाता है कि इनमें पसमांदा मुसलमानों की संख्या करीब 60 प्रतिशत है. इस हिसाब से एमपी में करीब 30 लाख से ज्यादा पसमांदा मुसलमान हैं.


 



इन सीटों का बदल सकते हैं खेल
मध्य प्रदेश के 5 जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है, इसमें भोपाल, इंदौर, उज्जैन, देवास और बुरहानपुर शामिल हैं. भोपाल और बुरहानपुर में सबसे ज्यादा 45 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है. इसके अलावा प्रदेश की महीदपुर, धरमपुरी, बुरहानपुर, सिलवानी, श्योपुर, महू और भोपाल उत्तर विधानसभा सीटों पर सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. मुस्लिमों की कुल आबादी में से 60 से 70 प्रतिशत पसमांदा मुसलमानों की है. इस  लिहाज से उन्हें आगागी चुनाव को देखते हुए काफी अहम माना जा रहा है.