मनीष पुरोहित/मंदसौर: मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसानो पर दोहरी मार पड़ रही है. पिछली फसल की बाढ़ से बर्बादी के बाद इस फसल में सर्दी का सितम के साथ साथ नीलगाय भी भारी नुकसान पहुंचा रही है. नील गायों से परेशान किसान कड़ाके की सर्दी में अपने खेतों की रखवाली करने का प्रयास कर रहे हैं. इक्का-दुक्का नीलगायों को तो किसान भगा देते हैं. लेकिन, बड़े झुंड के आगे वह भी बेबस नजर आते हैं.


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ऐसा नहीं है कि सरकार ने नीलगायों को भगाने के लिए प्रयास नहीं किए हैं. बोमा पद्धति के तहत कुछ वर्षों पहले 27 नीलगायों को हेलीकॉप्टर की मदद से भी पकड़ा गया था. लेकिन, यह पायलट प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में चला गया. जानकारों के अनुसार, जंगल क्षेत्र में नीलगायों का शिकार करने वाले जानवर अब बहुत ही कम संख्या में बचे हैं. ऐसे में नीलगायों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. इस समय तकरीबन 4000 नीलगाय क्षेत्र में मौजूद हैं जोकि, खेतों में घुसकर फसल चट कर जाती हैं. 


नीलगायों से किसानों की फसलों को बचाने के प्रयासों के नाम पर मोटा बजट हर साल पाने वाला वन विभाग इस मामले पर फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं. किसान श्याम लाल ने बताया कि नीलगायों का झुंड खेतों में घुस जाता है और ना सिर्फ फसल चट करता है बल्कि अपने खुरों के जरिये और खेतों में लोट लगाकर उसे बर्बाद भी करता है. नीलगाय संरक्षित प्राणी है. इसलिए किसान उन्हें किसी भी तरह की चोट नहीं पहुंचा सकता है. 


नीलगायों के फसलों पर हमले से परेशान किसान नीलगाय उर्फ घोड़ा रोज से फसलों की हुई बर्बादी के लिए सरकार से मुआवजे की आस लगाए बैठे हैं. लेकिन, इन सबके बीच फिलहाल किसानों को कोई राहत मिलने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं. किसानों को अपने स्तर पर ही नीलगायों की समस्या से निपटना पड़ रहा है.


नीलगायों से किसानों की परेशानी के चलते कुछ राज्यों में सीमित समय के लिए नीलगायों का शिकार करने की अनुमति कुछ वर्षों पहले जारी की गई थी. हालांकि, मध्य प्रदेश में ऐसी अनुमति अब तक जारी होने की बात सामने नहीं आई है. समय-समय पर नीलगायों की संख्या में कमी के लिए प्रयास करने की मांग भी उठती रही है. नीलगायों की नसबंदी की बात भी सरकारी तंत्र की तरफ से आई थी लेकिन बात हवा हवाई ही रही. ऐसे में खुद को ठगा सा महसूस कर रहा किसान समझ ही नहीं पा रहा है कि वह करे तो क्या करें.