रायपुर: सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को छत्तीसगढ़ के लाखों सरकारी कंपनियों के कर्मचारियों के लिए झटका माना जा रहा है. इस फैसले से सरकारी कंपनियों का आरक्षण प्रभावित हो सकता है. 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का एक आदेश दिया है. जिसका मतलब है कि अगले आदेश तक न ही किसी को पदोन्नति दी जा सकती है और न किसी को पदावनत किया जा सकता है.


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दरअसल, छत्तीसगढ़ की एक बिजली कंपनी में कार्यकरत कर्मचारी निरंजन कुमार ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के सामने स्पेशल लीव पिटीशन लगाकर बिलासपुर उच्च न्यायालय के फरवरी 2019 में दिए फैसले को चुनौती दी थी. जिसमें उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ पदोन्नति नियम की धारा पांच को निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के सामने यह मामला रखते हुए याचिकाकर्ता के वकीलों ने कहा था, इसकी वजह से उनकी पदोन्नति को रिवर्ट होने का खतरा पैदा हो गया है.


पहले से चल रहे मामलों पर नहीं होगा असर
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से बिलासपुर उच्च न्यायालय में लंबित अक्टूबर 2019 के नए नियम 5 पर चुनौती की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि उच्च न्यायालय ने रिवर्ट कराने के लिए लगाई गई अवमानना याचिका पर 17 फरवरी को ही फैसला सुरक्षित रख लिया है. 


इन पदोन्नतियों पर बना हुआ है रिवर्ट होने का खतरा
इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ में वर्ष1997 के बाद से रोस्टर प्वाइंट पर हुई पदोन्नतियों के रिवर्ट होने का खतरा अभी भी बना हुआ है. क्योंकि प्रदेश की बघेल सरकार पिछले नियमों 1997 और 2003 के आधार पर हुई कार्रवाई को नियम 14 की तर्ज पर संरक्षित करने का प्रयास कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 


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वहीं, 04 फरवरी 2019 को आए उच्च न्यायालय के फैसले से पदोन्नति में आरक्षण नियम 2003 की कंडिका 5 को खारिज किया गया था. जिसे अब चुनौती देने का कोई मतलब नहीं होगा, क्योंकि राज्यपाल अक्टूबर 2019 में नयी धारा 5 अधिसूचित कर चुके हैं. 


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