प्रमोद सिन्हा/खंडवा: खंडवा में 70 साल का एक बुजुर्ग अपने हौसलों की खेती कर रहा है. इनके पास ना तो बैल है, ना ट्रैक्टर और ना ही बिजली लेकिन फिर भी अपने 12 साल के नाती के साथ जुगाड़ के कृषि यंत्र बनाकर खेती करते हैं. बुजुर्ग का स्वाभिमान इतना कि गांव में खेती के लिए कभी किसी के सामने मदद के लिए हाथ नहीं फैलाते. मात्र 3 एकड़ खेती में अपनी पत्नी और नाती के साथ खेत में ही घर बनाकर रह रहे इस बुजुर्ग की मेहनत को देखकर अन्य किसान भी दंग हैं.


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नया यंत्र बनाया
दरअसल खंडवा के बावडिया काजी गांव में रहने वाले बाबू लाल दुबे. अपनी 3 एकड़ खेती में इन्होंने मक्का और सोयाबीन बीज बोया है. खरपतवार निकालने के लिए इन्होंने खुद ही जुगाड़ का यंत्र बनाया है. सहारा देने के लिए 12 साल का नाती श्री राम इनका मददगार है. नाती गाड़ी खींचता है और नाना खरपतवार निकालते हैं. जो यंत्र इन्होंने बनाया है इसे ग्रामीण क्षेत्रों में कोल्पा कहते हैं.


50 सालों से सीमित संसाधनों से खेती
बुजुर्ग बाबूलाल दुबे बताते है कि यह सब कुछ अपने हौसलों के बल पर करते हैं. पिछले लगभग 50 सालों से वह सीमित संसाधनों में खेती कर जीवन यापन कर रहे हैं. उनका एक बेटा भी था लेकिन 28 साल की उम्र में ही किडनी खराब होने की वजह से उसकी मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद भी इन्होंने हौसला नहीं तोड़ा. अपने नाती को अपने साथ ही रख कर यह अपनी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. बाबूलाल बताते हैं कि उन्होंने मदद के लिए कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया. अच्छे दिनों में भी वह खुश थे. बेटे की बीमारी और इलाज में आर्थिक स्थिति खराब हो गई.


नाती बना बुजुर्ग का सहारा
जब बेटा ही नहीं रहा तो नाती ने उनका साथ दिया. अब नाती के साथ ही दोनों पति-पत्नी खेत में ही मकान बनाकर रह रहे हैं. इस 14 साल के नाती की हिम्मत ही उनके जीने का सहारा बनी हुई है. इस मकान में एक छोटी सी सोलर प्लेट लगा रखी है, जिसमें मोबाइल चार्ज हो जाता है और एक दो घंटे के लिए बल्ब की रोशनी मिल जाती है. इसी में ही वह खुश है. मोबाइल पर समाचार भी सुन लेते हैं और मनोरंजन के लिए रामायण भी देख लेते हैं. इनका कहना है कि खेती को आधुनिक बनाने और बिजली की कमी जरूर खलती है लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि बिजली का बिल भरा जा सके.


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स्वाभिमानी है बाबूलाल
पास ही के गांव मे रहने वाले किसान संघ के नेता सुभाष पटेल बताते हैं कि बाबूलाल शुरू से ही स्वाभिमानी रहे हैं, वह कभी भी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते. जितना है उतने में खुश रहते हैं. जमीन में जितना बोया है उसी में मेहनत करके पैदा करते हैं और अपने जीवन का गुजारा करते हैं. किसान संगठनों से जुड़े नेता भी यही कहते हैं कि सरकार ने किसानों के लिए योजनाएं तो बहुत बनाई है लेकिन वह इतनी जटिल होती है कि छोटे किसानों तक नहीं पहुंच पाती है. जबकि योजनाएं ऐसी होनी चाहिए कि वह आसानी से इस तरह के छोटे किसानों का सहारा बन सकें.


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