Premanand Ji Maharaj: क्या है प्रेमानंद महाराज का असली नाम, कैसे बन गए संन्यासी? जानिए वृंदावन वाले संत की मर्मस्पर्शी कहानी
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Premanand Ji Maharaj: क्या है प्रेमानंद महाराज का असली नाम, कैसे बन गए संन्यासी? जानिए वृंदावन वाले संत की मर्मस्पर्शी कहानी

Premanand Ji Maharaj Biography: वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज को तो हर कोई जानता है. लेकिन क्या आपको उनका असली नाम पता है. क्या आप जानते हैं कि वे मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं और वृंदावन कैसे पहुंचे थे. 

 

Premanand Ji Maharaj: क्या है प्रेमानंद महाराज का असली नाम, कैसे बन गए संन्यासी? जानिए वृंदावन वाले संत की मर्मस्पर्शी कहानी

Real Name of Premanand Maharaj: राधारानी के परम भक्त प्रेमानंद जी महाराज आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वृंदावन में उनका आश्रम है, जहां उनके दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. देश-दुनिया में उनके लाखों अनुयायी हैं. कठिन से कठिन बात को भी सरल शब्दों में समझा देने वाले प्रेमानंद महाराज के सामने आते ही हर किसी का सिर श्रद्धा से झुक जाता है. लेकिन लोग सोचते हैं कि वे आखिर हैं कौन और कहां के रहने वाले हैं.  उनका असली नाम क्या है. आज हम इन सब रहस्यों से परदा उठाने जा रहे हैं. आइए जानते हैं कि प्रेमानंद महाराज कौन हैं. 

प्रेमानंद महाराज कौन हैं?

जानकारी के मुताबिक प्रेमानंद जी महाराज का मूल नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है. उनके पिता का नाम शंभू पांडे और माता का नाम रामा देवी हैं. उनका जन्म यूपी के कानपुर में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका पूरा परिवार शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृति का रहा है. उनके दादाजी ने भक्तिभाव में संन्यास लिया था. उनके पिता और भाई भी भक्तिभाव में लीन रहते थे और रोजाना भागवतगीता का पाठ किया करते थे. 

अनिरुद्ध पांडे से बन गए आर्यन ब्रह्मचारी 

प्रेमानंद जी महाराज ने अपने एक प्रवचन में बताया कि परिवार में भक्तिभाव का उनके बचपन पर गहरा असर पड़ा. जब वे 5वीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी उन्होंने गीता का पाठ शुरू कर दिया था. इसके साथ ही उनकी रूचि धीरे-धीरे आध्यात्म की ओर होने लगी थी. जब उनकी आयु 13 वर्ष की हुई तो उन्होंने ईश्वर के भक्ति मार्ग पर चलते हुए ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया. इसके बाद वे घर का त्याग कर संन्यास की राह पर चल पड़े. इसके साथ ही उनका नाम अनिरुद्ध पांडे से बदलकर आर्यन ब्रह्मचारी हो गया. 
 
संन्यास का शुरुआती जीवन में झेली कठिनाइयां

प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि उनका संन्यास का शुरुआती जीवन कठिनाइयों में बीता. वे कानपुर वाले अपने घर को त्यागकर वाराणसी में आकर रहने लगे. वे प्रतिदिन 3 बार गंगा स्नान करते और फिर वहीं तुलसी घाट पर बैठकर भगवान शिव मां गंगा का ध्यान-पूजन करते. इसके बाद वे भिक्षा मांगने निकल जाते थे. लेकिन उनका नियम था कि वे भिक्षा मांगने के लिए मंदिर के बाहर केवल 15 मिनट ही बैठते थे. अगर इस अवधि में उन्हें भिक्षा मिल जाती तो वे भोजन कर लेते वरना उस दिन गंगाजल पीकर ही रह जाते थे. ऐसी सख्त जीवनचर्या की वजह से वे कई-कई दिनों तक रात में भूखे पेट सोए. 

वाराणसी से कैसे पहुंचे वृंदावन 

प्रेमानंद महाराज के वाराणसी से वृंदावन आने की कहानी भी बड़ी मर्मस्पर्शी है. बताते हैं कि एक दिन एक अनजान साधु ने उन्हें श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्री चैतन्य लीला और रात में रासलीला देखने का निमंत्रण दिया. शुरू में तो प्रेमानंद महाराज ने इनकार कर दिया लेकिन जब साधु ने बार-बार आग्रह किया तो वे मान गए. जब उन्होंने एक महीने तक ये दोनों लीलाएं देखी तो उन्हें बेहद आनंद आया. 

जब वह आयोजन संपन्न हो गया तो कुछ दिनों बाद आर्यन ब्रह्मचारी यानी प्रेमानंद महाराज को फिर से चैतन्य लीला देखने का मन करने लगा. उन्होंने फिर से उन्हीं साधु को ढूंढा और वैसा ही आयोजन दिखाने का आग्रह किया. तब संत ने कहा कि वह लीला तो एक महीने की ही थी, जो अब संपन्न हो गई. यदि आप रोजाना भगवान कृष्ण की लीला देखना चाहते हैं तो वृंदावन चले जाइए. वहां पर रोजाना ऐसी लीलाएं देखने को मिलेंगी.

राधा रानी-कृष्ण के होकर रह गए

उन साधु की बात से प्रेरणा पाकर आर्यन ब्रह्मचारी वृंदावन आ गए. यहां आकर वे राधा वल्लभ संप्रदाय से जुड़े और फिर इन्हीं के होकर रह गए. इसी के साथ उनका नाम भी बदलकर प्रेमानंद महाराज हो गया. अब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की आराधना में अपना जीवन अर्पित कर दिया है और वे उन्हीं की भक्ति में खोये रहते हैं. साथ ही मानसिक अशांति से जूझ रहे हजारों-लाखों लोगों को सही राह भी बताते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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