Orcha Ram Mandir: सदियों के इंतजार के बाद आखिरकार वो घड़ी आ गई, जब भगवान श्रीराम अयोध्या में 22 जनवरी को विराजेंगे. अयोध्या में श्री राम की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होने जा रही है. प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर  पूरी अयोध्या नगरी को त्रेता युग की थीम से सजाया जा रहा है. वहीं अयोध्या के रामलला के साथ ही ओरछा के राजाराम मंदिर में भी तैयारियां की जा रही है.  हालांकि अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा नाता है. जिस तरह अयोध्या के रग-रग में राम हैं, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं. 


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राम यहां धर्म से परे हैं. हिंदू हों या मुस्लिम, दोनों के ही वे आराध्य हैं. अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवर गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आईं थीं. अयोध्या में भले ही रामलला का जन्म हुआ हो लेकिन उनकी असली सरकार तो निवाड़ी जिले के ओरछा में चलती है. यहां हर आमजन प्रजा होता है, चाहे वह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति क्यों न हो, और यही कारण है कि यहां किसी भी वीवीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता है.


जानिए ओरछा के बारे में...
निवाड़ी जिले के ओरछा का रामराजा मंदिर यह विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर जहां मर्यादा पुरूषोतम राम की पूजा भगवान के रूप में नहीं बल्कि मानव स्वरूप में राजा के रूप में की जाती है. यहां राजाराम मंदिर में नहीं, बल्कि महल में विराजमान है. जहां श्रीराम को एक राजा की तरह चारों पहर सरकारी पुलिस जवानों द्वारा सशस्त्र सलामी दी जाती है. यह परंपरा आज की नहीं बल्कि करीब साढे चार सौ वर्षों से लगातार चली आ रही है. वहीं अगर मंदिर से जुडी अन्य परम्पराओं एवं नियमों की बात करे तो आज भी मंदिर के अंदर वीडियो ग्राफी एवं फोटो खींचने पर सख्त मनाही है.


इस मंदिर की खासियत
इसके अलावा अगर हम मंदिर और मंदिर से जुडी कुछ खासियतों की बात करें तो यहां पर भगवान श्री रामलला धनुषधारी के रूप में नहीं बल्कि ढाल तलवार लिए विराजमान हैं. जबकि देश के अन्य मंदिरों में रामलला की प्रतिमाएं खड़े रूप में देखने को मिलेगी. यहां मंदिर का समय भी आज से नहीं बल्कि पिछले करीब साढ़े 500 वर्षों से निर्धारित है. जिसमें त्रतु परिवर्तन अनुसार साल में दो बार बदलता है. समय अनुसार रामराजा के पट बंद होने के उपरांत किसी भी वीआईपी या वीवीआईपी तक को दर्शन होना नामुमकिन है. इसके लिये दर्शनार्थी को समयानुसार पट खुलने का इंतजार करना पडता है.


ओरछा का इतिहास बड़ा गौरवशाली
देश की दूसरी अयोध्या कहे जाने वाली पर्यटक एवं धार्मिक नगरी ओरछा का इतिहास बहुत प्राचीन और गौरवशाली है. प्रचलित मान्यता के अनुसार 1631 में ओरछा की महारानी गणेश कुंवर पुष्य नक्षत्र में इस मूर्ति को अयोध्या से नंगे पैर चलकर गोद में लेकर ओरछा लायी थी. जानकारी अनुसार ओरछा नरेश मधुकार शाह जू देव कृष्ण भक्त थे जबकि उनकी रानी कुंवर गणेश राम भक्त थी. जनश्रुति के अनुसार एक दिन राजा रानी के बीच अपने-अपने आराध्य की श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया. राजा की चुनौती देने पर रानी कुंवर गणेश ने राजाराम को अयोध्या से ओरछा लाने का संकल्प लिया. इसके बाद रानी अयोध्या पहुंची तथा उन्होंने वहां अपने आराध्य भगवान श्रीराम को पाने कठोर तपस्या की, तपस्या के बावजूद भी जब भगवान राम प्रकट नहीं हुए तब दुःखी रानी ने सरयू नदी में प्राण त्यागने के उद्देश्य से छलाग लगा दी. तत्क्षण राम की बालरूप में सुन्दर मूर्ति रानी की गोद में प्रकट हो गई और रानी ने भगवान श्रीराम से ओरछा चलने का आग्रह किया.


भगवान ने रखी तीन शर्त
राम भी उनकी बात को मान गए, लेकिन उन्होंने अपनी 3 शर्ते रख दी. पहली शर्त में भगवान राम ने कहा कि मैं अयोध्या से ओरछा जाकर जिस जगह बैठूंगा. इस स्थान में फिर नहीं उठूंगा. दूसरी शर्त में कहा कि ओरछा के राजा के रूप में विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी और रामलला की तीसरी शर्त में उन्होंने खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों के साथ ले जाने की थी. 


एक जनश्रुति के अनुसार सतयुग में राजा दशरथ की चाह अधूरी रह गयी थी कि वो राम का राजतिलक करते लेकिन वो चाह वह सतयुग में पूरी नहीं हो सकी. ऐसी मान्यता है कि उस अधूरी चाह को पूरा करने के लिये राजा दशरथ के रूप में ओरछा महाराज मधुकर शाह जू देव एवं माता कौशल्या के रूप में महारानी कुंवर गणेश ने कलयुग में जन्म लिया और सतयुग की अधूरी चाह कलयुग में पूरी हुई. जब भगवान अयोध्या से ओरछा आये तो उनकी तीन शर्तों में ये शर्त भी शामिल थी कि वह वहां के राजा होंगे. उसी शर्त अनुसार भगवान के ओरछा आगमन पर मधुकर शाह जू देव एवं रानी कुंवर गणेश द्वारा भगवान की स्थापना पूरे राजकीय सम्मान के साथ राजा के रूप के राजतिलक कर कर ओरछा में की गई थी.


चारों समय गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है
ओरछा के रामराजा इस मायने में भी अद्वितीय है कि उन्हें प्रतिदिन पुलिस के जवान बाकायदा आज भी चारों पहर गार्ड ऑफ ऑनर पेश करते है. सूर्यास्त के बाद किसी भी वीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर पेश नहीं करने की स्थापित रीति के बावजूद भगवान श्रीराम को सूर्यास्त के बाद भी ओरछा में गार्ड ऑफ ऑनर पेश किया जाता है.


कब बना ओरछा का मंदिर 
महाराजा रूद्र प्रताप सिंह ने रविवार 29 अप्रैल सन् 1531 को ओरछा किले की नींव डाली  और उसके कुछ माह पश्चात 1531 में ही एक चीते से गाय को बचाते समय उनकी मृत्यु हो गई. उसके बाद ओरछा का राज्य उनके ज्येष्ठ पुत्र भारती चन्द्र ने संभाला और 1554 में पुत्रहीन वह स्वर्गवासी हो गये. उसके बाद उनके छोटे भाई मधुकर शाह ने राज्य की बागडोर संभाली और 1554 से 1592 तक मधुकर शाह ओरछा के राजा रहे और इसी काल में ओरछा में राम मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, चतुर्भुज मंदिर आदि का निर्माण हुआ और लगभग 252 वर्ष तक ओरछा राजधानी रही और उसके बाद सन् 1840 में यहां से हटाकर टीकमगढ़ को राजधानी बनाया गया.


कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने अयोध्या से ओरछा आते समय महारानी कुंवर गणेश से यह शर्तानुसार तय कर लिया था कि जहां वे रहेंगे वहां कोई दूसरा राजा न रहेगा. इसलिये ओरछा में भगवान राम की मान्यता रामराजा के रूप है और राम की प्रतिष्ठापना भी ओरछा में मंदिर नहीं महारानी के अपने महल में ही है,


यहां की खास विशेषताएं
- विश्व का एकमात्र स्थान जहां सदियों से भगवान राम की पूजा राजा के रूप में की जाती है.
- विश्व का एक मात्र स्थान जहां भगवान को सरकार की ओर से सशस्त्र सलामी दी जाती है. भगवान को सूर्योदय के पूर्व से सूर्यास्त के बाद भी सलामी दी जा रही है.
- ईश्वरीय सत्ता का अनूठा उदाहरण जहां भगवान श्रीराम के लिये करोड़ों रुपये की लागत से बना भव्य मंदिर बनाया गया, लेकिन भगवान उस मंदिर में विराजमान न होकर महल में विराजे है.
- एक मात्र स्थान है, जहां राम राजा के रूप में राजकाज निपटाने और जनता को दर्शन देने के लिये गर्भगृह से बाहर आते है. जबकि हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा की गई मूर्ति को स्थापित स्थान से हटाया नहीं जाता है.


रिपोर्ट- सत्येंद्र परमार