भोपाल: मध्य प्रदेश में बिजली का संकट गहरा सकता है, क्योंकि सरकार के आदेश पर बिजली कंपनियों ने गरीबों और किसानों को करोड़ों रुपए की सब्सिडी तो दे दी, लेकिन अब सरकार से कंपनियों को पैसा नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में पहले से लगभग 50 हजार करोड़ के घाटे में चल रही बिजली कंपनियों पर हजारों करोड़ रुपए की सब्सिडी का अतिरिक्त भार आ गया है. बिजली कंपनियां जिनसे बिजली और कोयला खरीद रही हैं, उनका भुगतान नहीं कर पा रही हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि यदि हालात जल्द नहीं सुधरे तो प्रदेश में बिजली संकट गहराना तय है.


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गौरतलब है कि 2015 में सरकार गरीब और किसानों को लगभग 200 करोड़ रुपए की सब्सिडी देती थी, जो कि अब बढ़कर 20 हजार करोड़ रुपए हो गई है. इसमें घरेलू गरीब उपभोक्ताओं को 5000 करोड़ और कृषि उपभोक्ताओं को 15000 करोड़ की सब्सिडी शामिल है. यानि इन पांच सालों में सब्सिडी की राशि 100 गुना बढ़ी है.


ऐसे हर साल बढ़ी सब्सिडी


2015-16 में 200 करोड़
2016-17 में 300 करोड़
2017-18 में 600 करोड़
2018-19 में 1000 करोड़
2019-20 में 7600 करोड़
2020-21 में 20,000 करोड़


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बिजली उत्पादन कंपनियों का इतना रुपया बकाया
एनटीपीसी- 3500 करोड़
पीजीसीएल- 400 करोड़
एमपी जेनको - 6500 करोड़
सोलर एंड विंड एनर्जी -1500 करोड़
निजी पॉवर प्लांट -1000 करोड़


घाटे से उबरने के लिए बिजली कंपनियों ने किया ये काम
लगातार घाटे में जा रही बिजली वितरण कंपनियों ने अब बकायादारों से बिजली की वसूली में सख्ती दिखाना शुरु कर दी है. इसके लिए कुर्की करने का अभियान शुरु किया गया है. इसमें किसानों के ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल तक जब्त की जा रही हैं. इस अभियान के चलते बिजली वितरण कंपनियों ने दिसंबर में 200 और जनवरी में 170 करोड़ रुपए की अधिक वसूली की है. बिजली कंपनी हर माह औसत 1800 रुपए वसूलती थी, अब बिजली कंपनी ने 2000 करोड़ का टारगेट फिक्स किया है.


कांग्रेस ने साधा सरकार पर निशाना
बिजली कंपनियों के घाटे को लेकर बीजेपी नेता हितेश बाजपेयी का कहना है कि कोरोना के चलते  सरकार के कलेक्शन में कमी आई, जिसके कारण सब्सिडी का पैसा बिजली कंपनियों को नहीं मिल सका. आर्थिक स्थितियां ठीक होते ही बिजली कंपनियों को सब्सिडी का पैसे का भुगतान किया जाएगा. इस मामले को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर निशान साधा है. कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने कहा कि भुगतान नहीं होने से बिजली कंपनियां दाम बढ़ाने को मजबूर हैं.


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