नई दिल्ली: 'रहना है तेरे दिल में', 'रंग दे बसंती', 'थ्री ईडियट्स', 'तनु वेड्स मनु' जैसी हिंदी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुके आर. माधवन ने अब एक निर्देशक के रूप में अपनी नई पारी की शुरुआत फिल्म रॉकेट्री से की हैं. उनके डायरेक्शन में बनी फिल्म ''रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट'' (Rocketry: The Nambi Effect)  फिल्म रिलीज हो चुकी है और सिनेमा लवर्स को काफी पसंद भी आ रही है. 


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यह फिल्म भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन (Nambi Narayanan) की बॉयोपिक है, जिन्हें देश से गद्दारी करने के झूठे आरोपों में फंसाया गया था. नंबी नारायणन की कहानी देश के हर नागरिक को जाननी चाहिए ताकि वे समझ सकें कि कैसे एक निर्दोष देशभक्त को राजनीतिक साजिश में फंसाकर देश का गद्दार घोषित कर दिया जाता है. 


साल 1994 में रची गई थी इसरो जासूसी कांड की साजिश
सबसे पहले अक्टूबर 1994 को मालदीव की एक महिला मरियम राशिदा को तिरुवनंतपुरम से गिरफ्तार किया गया. राशिदा को इसरो के स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन की ड्राइंग पाकिस्तान को बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद केरल पुलिस ने साल 1994 में तिरुवनंतपुरम में इसरो के टॉप साइंटिस्ट और क्रायोजनिक इंजन प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर नंबी नारायणन समेत दो अन्य वैज्ञानिकों डी शशिकुमारन और डेप्युटी डायरेक्टर के चंद्रशेखर को अरेस्ट किया. 


इसके अलावा रूसी स्पेस एजेंसी के एक भारतीय प्रतिनिधि एसके शर्मा, लेबर कॉन्ट्रैक्टर और राशिदा की दोस्त फौजिया हसन को भी गिरफ्तार किया गया था. इन सभी पर इसरो के स्वदेशी क्रायोजनिक रॉकेट इंजन से जुड़ी खुफिया जानकारी पाकिस्तान समेत दूसरे देशों को बेचने के आरोप लगे. इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने तब क्रायोजनिक इंजन प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर रहे नंबी नारायणन से पूछताछ शुरू की. उन्होंने इन आरोपों का खंडन किया और इसे अपने खिलाफ साजिश बताया.


नंबी नारायण को बिना सबूतों के गद्दार घोषित किया गया
तब यह मामला अखबारों की सुर्खियों में रहा. बिना जांचे-परखे पुलिस की थ्योरी पर भरोसा करते हुए  मीडिया ने भी नंबी नारायणन को देश का गद्दार बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा. गिरफ्तारी के समय नंबी नारायणन रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन बनाने के बेहद करीब पहुंच चुके थे. उन पर लगे आरोपों और उनकी गिरफ्तारी ने देश के रॉकेट और क्रायोजेनिक इंजन प्रोग्राम को कई दशक पीछे धकेल दिया था. 


दिसंबर 1994 में मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. सीबीआई ने अपनी जांच में इंटेलिजेंस ब्यूरो और केरल पुलिस के आरोप सही नहीं पाए.


अप्रैल 1996: सीबीआई ने चीफ जूडिशल मजिस्ट्रेट की अदालत में फाइल एक रिपोर्ट में बताया कि पूरा मामला फर्जी है और लगाए गए आरोपों के पक्ष में कोई सबूत नहीं है.


सीबीआई ने अपनी जांच में नंबी नारायणन को निर्दोष पाया
सीबीआई जांच में यह बात सामने आई कि भारत के स्पेस प्रोग्राम को डैमेज करने की नीयत से नंबी नारायणन को झूठे केस में फंसाया गया था. जांच में इस बात के संकेत मिले कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के इशारे पर केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने नंबी नारायणन को साजिश का शिकार बनाया. यह सारी कवायद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने की नीयत से हो रही थी. यह वह दौर था जब भारत अपने स्पेस प्रोग्राम के लिए अमेरिका समेत अन्य देशों पर निर्भर था. करोड़ों-अरबों रुपये किराए पर स्पेस टेक्नोलॉजी इन देशों से आयात किया करता था. 


स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत के आत्मनिर्भर होने से अमेरिका को कारोबारी नुकसान होने का डर था. एसआईटी के जिस अधिकारी सीबी मैथ्यूज ने नंबी के खिलाफ जांच की थी, उसे केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने बाद में राज्य का डीजीपी बना दिया. सीबीआई जांच में सीबी मैथ्यूज के अलावा तब के एसपी केके जोशुआ और एस विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आई. माना जाता है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इसके लिए केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार में शामिल बड़े नेताओं और अफसरों को मोटी रकम मुहैया कराई थी. असल में देश से गद्दारी नंबी नारायणन नहीं, ये लोग कर रहे थे. 


मई 1996: कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और इस केस में गिरफ्तार सभी आरोपियों को रिहा कर दिया. 


मई 1998: इसके बाद केरल की तत्कालीन सीपीएम सरकार ने मामले की फिर से जांच का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा इस मामले की फिर से जांच के आदेश को खारिज कर दिया.


साल 1999: नंबी नारायणन ने मुआवजे के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की. 2001 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केरल सरकार को उन्हें क्षतिपूर्ति का आदेश दिया, लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी.


अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट में नंबी नारायणन की याचिका पर उन पुलिस अधिकारियों पर सुनवाई शुरू हुई जिन्होंने वैज्ञानिक को गलत तरीके से केस में फंसाया था. नारायणन ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसमें कहा गया था कि पूर्व डीजीपी और पुलिस के दो सेवानिवृत्त अधीक्षकों केके जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ किसी भी कार्रवाई की जरूरत नहीं है.


साल 1996 में आरोप मुक्त, 24 साल लड़ी सम्मान की लड़ाई
वैसे तो नंबी नारायणन 1996 में ही आरोपमुक्त हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने सम्मान की लड़ाई जारी रखी और 24 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर 2018 को उनके खिलाफ सारे नेगेटिव रिकॉर्ड को हटाकर उनके सम्मान को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया. तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन जजों की पीठ ने केरल सरकार को आदेश दिया कि नंबी नारायणन को उनकी सारी बकाया रकम, मुआवजा और दूसरे लाभ दिए जाएं. 


सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा कि नंबी नारायणन को मुआवजे के साथ बकाया रकम और अन्य दूसरे लाभ केरल सरकार देगी. इसकी रिकवरी उन पुलिस अधिकारियों से की जाएगी जिन्होंने उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाया. साथ ही सभी सरकारी दस्तावेजों में नंबी नारायणन के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नंबी नारायणन को हुए नुकसान की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती है, लेकिन नियमों के तहत उन्हें 75 लाख रुपये का भुगतान किया जाए. सुप्रीम कोर्ट जब यह फैसला सुना रहा था तब नंबी नारायणन वहां मौजूद थे.


नंबी के खिलाफ साजिश न होती तो इसरो 15 साल आगे होता
ऐसा माना जाता है कि नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश नहीं हुई होती तो भारत 15 साल पहले ही स्वेदशी क्रायोजेनिक इंजन बना चुका होता. उस दौर में भारत क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी पाना चाहता था. अमेरिका ने इसे देने से साफ इनकार कर दिया था. रूस से समझौता करने की कोशिश हुई, बातचीत अंतिम चरण में थी, लेकिन अमेरिका के दबाव में रूस मुकर गया.


तब नंबी नारायणन ने भारत सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह अपनी टीम के साथ स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएंगे. वह अपने मिशन को सही दिशा में लेकर चल रहे थे तभी अमेरिका के इशारे पर उनके खिलाफ साजिश की गई. नंबी नारायणन ने अपने साथ हुई साजिश पर 'रेडी टू फायर: हाउ इंडिया एंड आई सर्वाइव्ड द इसरो स्पाई केस' (Ready To Fire: How India and I Survived the ISRO Spy Case) नाम से किताब भी लिखी है.


मोदी सरकार ने नंबी नारायण को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा
देश के इस महान वैज्ञानिक के साथ हुई साजिश के खिलाफ भाजपा को छोड़ किसी भी राजनीतिक दल ने कभी आवाज नहीं उठाई. भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी इस मामले में बहुत पहले से नंबी नारायणन के समर्थन में खुलकर बोलती रही हैं. उन्होंने 2013 में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस साजिश के तमाम पहलुओं को उजागर किया था. साल 2019 में भाजपा सरकार में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया. नंबी नारायणन ने कहा था, ''पद्म भूषण सम्मान से नवाजे जाने की मुझे बहुत खुशी है. मुझे सभी स्वीकार कर रहे हैं. पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुझे निर्दोष बताया. फिर केरल सरकार मेरे पास आई और अब केंद्र ने भी मुझे स्वीकार कर लिया है.''


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