जबलपुरः हर साल 26 जनवरी को देश का गणतंत्र दिवस मनाया जाता है. लोग उत्साह, उमंग और उल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाते हुए एक दूसरे को बधाइयां देते हैं. क्योंकि 26 जनवरी को हमारे देश का संविधान लागू हुआ था. संविधान के निर्माण में पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिनों का समय लगा था. यूं तो संविधान का निर्माण बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने किया था. लेकिन संविधान की जो पुस्तक बनी. उसे बनाने में कई लोगों ने अपना योगदान दिया था. उन्हीं में से एक थे जबलपुर के राम मनोहर सिन्हा. जिन्होंने संविधान के मुख्य पृष्ठ को सजाने और संवारने का काम किया था. 


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इस तरह मिला संविधान का मुख्य पृष्ठ सजाने का काम 
दरअसल, संविधान के निर्माण के लिए देशभर में तैयारियां चल रही थी. ऐसे में इस बात पर चर्चा शुरू हुई कि संविधान का पहला पृष्ठ इतना खास हो इसकी झलक सबसे अलग होनी चाहिए. ऐसे में किसी खास कलाकार की जरुरत थी. जो इस काम को बखूबी कर सके. खास बात यह है कि उस वक्त देश में कला के क्षेत्र में सबसे अच्छा काम शांतिनिकेतन में चल रहा था. जिसकी जिम्मेदारी नंदलाल बोस संभाल रहे थे. ऐसे में संविधान के प्रमुख पृष्ठ को बनाने की जिम्मेदारी नंदलाल बोस को सौंपी गई, जबकि उन्होंने इस काम के लिए अपने सबसे काबिल शिष्य राममनोहर सिन्हा को चुना.


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दिन रात चला संविधान के पहले पृष्ठ को बनाने का काम 
राम मनोहर सिन्हा के जब संविधान के पहले पृष्ठ संवारने का काम मिला तो वे इस काम में पूरी शिद्दत के साथ जुट गए. क्योंकि संविधान का पहला पृष्ठ कुछ ऐसा बनाना था कि जो अपने आप में बेहद अनोखा हो. ऐसे में इस काम के लिए राममनोहर सिन्हा ने दिन-रात काम किया. संविधान के मुख्य पृष्ठ में जिन अलंकरणों को पिरोया गया है, वह हर तहजीब के दिल से निकली देशभक्ति को दर्शाता है. बहुत सी बातें जिन्हें संविधान में लिखा जाना संभव नही था, ऐसे में चित्रकारी ही एक ऐसा जरिया थी, जो उसके हर भाव को दर्शाने में मजबूत थी. लिहाजा संविधान के मुख्य पृष्ठ को सिन्हा ने ही अपने हाथों की कलाकारी से सजाया और संवारा था. उसमें कला के सुनहरे रंग भरते हुए देश के संविधान को जीवंत करने के सपने को मूर्त रूप दिया.


1935 में बन गई थी इस काम की रूपरेखा 
खास बात यह है कि संविधान को केवल शब्दों से ही नहीं बल्कि कला से भी सजाया संवारा जाना था. इसलिए इस काम की शुरूआत देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1935 में ही शुरू कर दी थी. जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और काका कालेकर जबलपुर आए. दरअसल, अंग्रेजों की हुकूमत के बीच 1925 में स्वराज संविधान का विचार आया और इस विचार को जन्म दिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने. जिन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर स्वराज संविधान पर एक साथ काम किया. 1935 में जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जबलपुर आए तो, ब्यौहार के घर ठहरे और स्वराज संविधान पर आगे काम करने का विचार बनाया. जबलपुर में ही यह बात तय की गई कि जब भारत आजाद होगा, तब उसका खुद का संविधान होगा और उसे चित्रों के माध्यम से अलंकृत किया जाएगा. 


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26 जनवरी के बाद तक चलता रहा मुख्य पृष्ठ को बनाने का काम 
संविधान का पृष्ठ बनाने में राममनोहर सिन्हा को काफी समय लगा.  इसलिए राम मनोहर सिन्हा ने अपने साथियों के साथ मिलकर संविधान अलंकरण पर काम करना शुरू कर दिया. इस बीच वह तारीख आ गई जब भारत के संविधान को लागू करना था. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया लेकिन उसके अलंकरण का काम इसके बाद भी जारी रहा. मई 1950 को भारत के संविधान को अलंकृत कर दिया गया. लेकिन मुख्य पृष्ठ को संवारने का काम आगे भी जारी रहा. 


अनोखें अंदाज में राममनोहर सिन्हा ने किए हस्ताक्षर 
कहानी सिर्फ यही खत्म नहीं होती, आपको यह जानकार हैरानी होगी की जब राममनोहर सिन्हा संविधान का पहला पृष्ठ बनाकर अपने गुरू नंदलाल बोस के पास पहुंचे तो वे इसे देखकर बेहद खुश हुए. बोस ने कहा कि यह तो बहुत बेहतरीन बना है. लेकिन मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता. क्योंकि इस पर इसे बनाने वाले के हस्ताक्षर ही नहीं है. क्योंकि कला को बनाए रखने के लिए कलाकार की पहचान होना जरुरी है. अपने गुरू के इस सवाल पर राममनोहर सिन्हा ने कहा कि यह मात्र कला नही, देश के लिए मेरा योगदान है. उसमें मेरा नाम आए, मैं यह ज़रूरी नहीं मानता. लेकिन उनके गुरु नंदलाल बोस नही मानें और कहा कि यदि आप अपने हस्ताक्षर को नहीं करेंगे तो मैं इसे स्वीकार नही करूंगा. अंततः उन्होंने अपना नाम मुख पृष्ठ के दायें निचले कोने में कुछ इस तरह चित्रित कर दिया कि डिजाईन में राम आ गया. इस तरह संविधान के मुख्य पृष्ठ में मध्य प्रदेश की संस्काधानी के नाम से मशहूर जबलपुर का भी अहम योगदान संविधान के निर्माण में जुड़ गया.


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