शिंजो आबे जापान में लाए बड़ा बदलाव! चीन को मानते थे बड़ा खतरा
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने अपनी सेना के विदेशों में लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था. जापान के इस कदम को असैन्यीकरण के तौर पर देखा गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने अमेरिका के साथ एक संधि की थी, जिसके बाद से अमेरिका की सेना जापान की रक्षा में तैनात है.
नई दिल्लीः जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का निधन हो गया है. आबे को आज सुबह ही जापान के नारा शहर में एक हमलावर ने गोलियां मार दी थी. जिसके बाद शिंजो आबे गंभीर रूप से घायल हो गए थे.इलाज के दौरान शिंजो आबे की मौत हो गई. शिंजो आबे जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले नेता थे. शिंजो आबे को एक ऐसे नेता के तौर पर भी याद किया जाता है, जिसने जापान को फिर से सैन्य महाशक्ति बनाने की कोशिशें की. आबे जापान की सैन्य नीति में बड़ा बदलाव लेकर आए.
जापान को क्यों सैन्य तौर पर मजबूत बनाना चाहते थे शिंजो आबे
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने अपनी सेना के विदेशों में लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था. जापान के इस कदम को असैन्यीकरण के तौर पर देखा गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने अमेरिका के साथ एक संधि की थी, जिसके बाद से अमेरिका की सेना जापान की रक्षा में तैनात है. हालांकि शिंजो आबे ने बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए इस बैन को खत्म कर दिया था. साथ ही शिंजो आबे ने जापान की सेना को मजबूत और आधुनिक बनाने पर भी जोर दिया था.
दरअसल चीन के खतरे को देखते हुए शिंजो आबे ने यह बदलाव किया था. बता दें कि जापान और चीन के बीच दुश्मनी का लंबा इतिहास है. इसके अलावा जापान के सेनकाकू द्वीप को लेकर भी दोनों देशों के बीच तनाव है. दरअसल इस द्वीप पर चीन भी अपना दावा करता है. बीते दिनों चीन और जापान के बीच तनाव काफी बढ़ गया था. यही वजह रही कि चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को देखते हुए शिंजो आबे ने भी जापान को सैन्य तौर पर मजबूत करने पर जोर दिया था.
क्वाड के गठन में निभाई अहम भूमिका
प्रशांत हिंद महासागर में चीन को काउंटर करने में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड का गठन किया था. माना जाता है कि क्वाड के गठन में तत्कालीन जापानी पीएम शिंजो आबे की अहम भूमिका थी. साथ ही उत्तर कोरिया की बढ़ती सैन्य ताकत से भी जापान की सुरक्षा को खतरा पैदा हो रहा है. यही वजह है कि जब आज शिंजो आबे इस दुनिया में नहीं है तो उन्हें ऐसे नेता के तौर पर याद किया जा रहा है, जिसने जापान की सैन्य नीति में बड़ा बदलाव किया.