जितेंद्र कंवर/जांजगीर चांपा: छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के शिवरीनारायण में महानदी, जोक नदी और शिवनाथ नदी के त्रिवेणी संगम में बसा शिवरीनारायण मंदिर का धार्मिक महत्व आज भी है. तीन नदियों के संगम के कारण शिवरीनारायण को गुप्त प्रयाग भी कहते हैं. शबरी और नारायण के अटूट प्रेम के कारण इस स्थान का नाम शिवरीनारायण पड़ा.


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अयोध्या में बनाया जा रहा मंदिर
शिवरीनारायण के माता शबरी का मंदिर अयोध्या में बनाया जा रहा है, जिससे पूरे शिवरीनारायण में खुशी का माहौल बना हुआ है. 22 जनवरी को शिवरीनारायण को पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया जाएगा. बता दें कि जब श्री राम भगवान अपने 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे तो वे शिवरीनारायण से होते हुए गए थे. जिसको लेकर आज भी शिवरीनारायण में श्री रामचंद्र जी का चरण पादुका चिन्ह मौजूद है.


क्यों पड़ा शिवरीनारायण नाम
शबरी और नारायण के अटूट प्रेम के कारण इस स्थान का नाम शिवरीनारायण पड़ा. आज भी लोग माता शबरी के राम के प्रति स्नेह को याद करते हुए सीता राम कहकर एक-दूसरे से अभिवादन करते हैं. मान्यता है कि माता शबरी भील राजा की पुत्री थी. शबरी के विवाह में बारात में भेड़ बकरी का मांस परोसे जाने से नाराज होकर माता शबरी अपना घर छोड़कर राम भक्ति में लीन हो गई. मठ मंदिर के मुख्तियार सुखराम दास जी बताते है कि, राम लक्ष्मण का वनवास का कुछ समय शिवरीनारायण में बीता है. इसी स्थान में माता शबरी ने अपने जूठे बेर राम चंद्र जी को खिलाये थे. यहां मंदिर के सामने अक्षय कृष्ण वट वृक्ष है,जिसका हर पत्ता दोना आकृति में बना है. मान्यता ऐसी है कि इसी दोने में माता शबरी ने अपने जूठे बेर राम चंद्र जी को खिलाए.


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द्वापर से त्रेता तक शबरी ने की प्रतीक्षा
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण ने जिस कुबड़ी महिला को मथुरा में सुंदरी कहकर आवाज लगाई थी और उसे कुबड़ से मुक्ति दिलाई थी. उसी देव कन्या ने अपना प्रेम प्रकट करने के लिए कृष्ण जी से फिर मिलने की इच्छा जताई थी. जिसे भगवान कृष्ण ने राम अवतार में मिलने का वादा किया था. त्रेता युग में माता शबरी अपने अंत काल तक राम का इंतजार करती रही और रामवन गमन में माता शबरी ने अपने जूठे बेर खिलाये. राम के प्रति माता शबरी की आस्था, राम के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव राम के आने का विश्वास और इंतजार आज भी यहां देखा जाता है.