भोपाल: मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने शनिवार (26 दिसंबर) को लव जेहाद के खिलाफ 'धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2020' को कैबिनेट बैठक में मंजूरी दे दी. इससे पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार 'लव जेहाद' के खिलाफ 'यूपी विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020' ला चुकी है. तुलनात्मक रूप से देखें तो शिवराज कैबिनेट से पास हुआ बिल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश से ज्यादा सख्त नजर आ रहा है. आखिर उत्तर प्रदेश से कितना अलग है मध्य प्रदेश का लव जेहाद के खिलाफ शिवराज कैबिनेट से पास हुआ विधेयक, आइए जानते हैं इस टेबल में....


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'मप्र धर्म स्वतंत्रता विधेयक 2020' में प्रावधान'


  एमपी का 'लव जेहाद' बिल
 
यूपी का 'लव जेहाद' अध्यादेश
1.  अपना धर्म छिपाकर कानून के प्रावधानों के खिलाफ धर्म परिवर्तन करने पर कम से कम 3 साल और अधिकतम 10 साल की सजा व ₹50000 जुर्माने का प्रावधान. जबरन या कोई प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन अपराध होगा. ऐसे मामलों में 1 से 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया है.  
2. प्रलोभन, धमकी, कपट, षड़यंत्र से या धर्म छिपाकर विवाह करने पर विवाह को शून्य माना जाएगा. कानून के प्रावधानों के विरुद्ध धर्म परिवर्तन किए जाने पर कम से कम 1 साल और अधिकतम 5 साल का कारावास होगा. विवाह के जरिए एक से दूसरे धर्म में परिवर्तन भी कठोर अपराध की श्रेणी में होगा. यह अपराध गैरजमानती होगा.
3. कानून के प्रावधानों के खिलाफ महिला, नाबालिग, SC-ST के धर्म परिवर्तन किए जाने पर कम से कम 2 साल और अधिकतम 10 साल की सजा और 50 हजार का जुर्माना होगा. सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में शामिल संबंधित सामाजिक संगठनों का पंजीकरण निरस्त कर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी. 
4. दो या दो से अधिक लोगों का एक ही समय में धर्म परिवर्तन पर कम से कम 5 साल और अधिकतम 10 साल की सजा और कम से कम 1 लाख रुपए के अर्थदंड का प्रावधान है.  जबरन धर्म परिवर्तन के मामलों में साक्ष्य देने का भार भी आरोपित पर होगा. यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में होगा और गैर जमानती होगा. 
5. एक से अधिक बार कानून का उल्लंघन पर 5 से 10 साल की सजा का प्रावधान है. कानून के दायरे में आने के बाद विवाह शून्य घोषित करने का भी प्रावधान है. पैतृक (मूल) धर्म  में वापसी को धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा. अभियोग का विचारण प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की कोर्ट में होगा. यदि किसी लड़की का धर्म परिवर्तन एक मात्र प्रयोजन विवाह के लिए किया गया तो विवाह शून्य घोषित किया जा सकेगा.
6. धर्म परिवर्तन करने पर परिजन की शिकायत को कानून में जरूरी किया जाएगा. इस अधिनियम के तहत दर्ज अपराध संज्ञेय और गैरजमानती होंगे, जिसकी सुनवाई सेशन कोर्ट या फिर विशेष अदालत में होगी. प्रावधान में निर्दोष होने के सबूत पेश करने की बाध्यता अभियुक्त पर रखी गयी है. पीड़िता या पीड़ित के अलावा उसके माता-पिता, भाई-बहन या रक्त संबंधी भी मामले में रिपोर्ट दर्ज करा सकेंगे.
7. विवाह शून्य करने का फैसला परिवार न्यायलय में लिया जाएगा. प्रावधान के मुताबिक पीड़ित महिला और पैदा हुए बच्चे को भरण-पोषण हासिल करने का अधिकार दिया जाएगा. अध्यादेश में छल-कपट से, प्रलोभन देकर, बल पूर्वक या विवाह के लिए धर्म परिवर्तन के सामान्य मामले में कम से कम 1 वर्ष तथा अधिकतम 5 वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा कम से कम 15 हजार रुपये तक जुर्माना होगा.
8.  पैदा हुए बच्चे को अपने पिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी के रूप में दावा करने की स्वतंत्रता होगी. अधिनियम के तहत दर्ज मामले में धर्म परिवर्तन कराने वाली संस्थाएं और लोग भी आरोपी के बराबर कार्यवाही के दायरे में आएंगे. साथ ही ऐसी संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन रद्द होगा. नाबालिग लड़की, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिला का जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने के मामले में कम से कम 2 वर्ष तथा अधिकतम 10 वर्ष तक का कारावास तथा कम से कम 25 हजार रुपये जुर्माना होगा.
9. धर्म परिवर्तन कराने के पहले कलेक्टर को 2 महीने पूर्व सूचना देना जरूरी होगा. सूचना नहीं देने पर 3 से 5 साल तक की सजा और ₹50000 जुर्माने का प्रावधान.  सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में कम से कम 3 वर्ष तथा अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा और कम से कम 50 हजार रुपये जुर्माना होगा.

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