नई दिल्ली: 26/11 (26/11 Attack) की आज 12वीं बरसी है. 2008 में आज के ही दिन मुंबई के ताज होटल में आतंकी हमला हुआ था. समुद्री रास्ते से आए पाक आतंकियों ने 166 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. जबकि इस हमले में करीब 600 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. इस हमले में अपनी जान की बाजी लगाकर आतंकियों को ढेर करने में कुछ जांबाज बहादुर सिपाहियों और पुलिस अधिकारियों का योगदान था. ऐसे ही एक हीरो थे कैप्टन रवि धर्निधिरका (Ravi Dharnidharka) जिन्होंने उस हमले के दौरान ताज होटल में फंसे 157 लोगों की जान बचाई थी.


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कौन हैं रवि धर्निधिरका
रवि धर्निधिरका (Ravi Dharnidharka) की जड़ें भारत से जुड़ी हुई हैं. वह यूएस में रहने के दौरान भी भारत आते रहते थे. उनका परिवार मुंबई के बधवार पार्क के पास रहता है. वहीं उनके अन्य कुछ रिश्तेदार भी मुंबई में रहते हैं, जहां उनसे वह अक्सर मिलने आते रहते हैं. साल 2004 से 2008 तक रवि इराक के फालूजा शहर में तैनात रहे. इस दौरान चार साल तक वह भारत नहीं आ सके थे. इराक़ मिशन पूरा करने के बाद ही वह अपने परिवार से मिलने आए थे. वह भारत में एक तरह से छुट्टियां बिताने आया करते थे. 


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छुट्टियां बिताने आते थे मुंबई
2008 में लंबे अर्से बाद वह एक फिर मुंबई आए. घर में कुछ दिन बिताने के वह मुंबई के मशहूर ताज होटल में डिनर करने का मन पहुंचे. अपने चचेरे भाई और अंकल के साथ रात को डिनर के लिए ताज होटल पहुंचे तो उन्हें हर बार की तरह माहौल खुशनुमा लगा. भारतीय एवं विदेशी लोग अपने परिवार के साथ व्यंजनों का आनंद ले रहे थे.


ले रहे थे डिनर का आनंद, होने लगे धमाके
रवि धर्निधिरका ने अपने रिश्तेदारों के साथ होटल ताज के 20वें माले पर लेबनानी रेस्टां ‘सुक’ में पहंचे. यहां वो भोजन का आनंद ले रहे थे. तभी अचानक होटल के नीचे के हिस्से से गोलियों और चीख़पुकार शुरू हो गई. बाकी लोग इसी सोच में डूबे थे कि आखिर क्या हो रहा है. उनके चेहरों पर एक उलझन थी.


लोगों के लिए बन गए थे ढाल
रवि कुछ समझते इससे पहले उनके दूसरे चचेरे भाई का फोन आया कि ताज होटल में आतंकियों ने हमला बोल दिया है. रवि के लिए यह मंजर कोई नया नहीं था. इसलिए उन्होंने बड़ी सूझबूझ से काम लेने की सोची. वह वहां मौजूद लोगों को बताने लगे कि अब उन्हें खुद बचकर निकलना होगा. तभी उनकी नज़र रेस्टोरेंट के एक दरवाजे पर पड़ी. दरवाजा कांच का बना हुआ था, दरवाजे के दूसरी तरफ से आतंकवादी लोगों पर ग्रेनेड फेंक सकते थे. रवि ने वहां मौजूद सभी लोगों को दूसरे हॉल में चलने के लिए कहा. रवि तेजी से लोगों को लेकर हॉल में घुस गए. हॉल का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया गया. दरवाजे पर सोफे भी लगा दिए गए. जिससे कोई आतंकी घुस न सके. 


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लोगों से कहा-पीछे की सीढ़ियों से भागना होगा
वह बाहर के हालातों को समझने के लिए बार-बार खिड़की से झांकने की कोशिश कर रहे थे. कुछ ही देर में होटल की छठी मंजिल पर दो धमाके हुए. वहां बुरी तरह से आग लग चुकी थी. रवि ने सोचा कि अगर ये लोग यहीं फंसे रह गए तो हो सकता है कि शॉट सर्किट हो जाए और 20वीं मंजिल पर भी आग लग जाए. रवि कोई गलत फैसला नहीं लेना चाहते थे. इसलिए उन्होंने वहां मौजूद लोगों से कहा कि सेना उन्हें बचाने आ रही है. रवि ने आगे कहा, नीचे आग लग चुकी है. हमें पीछे की सीढ़ियों से भागना होगा. 


बंद करवा दिए थे सभी के फोन, उतरवा दिए थे जूते
इसी दौरान रवि ने पूर्व सेना के कुछ अधिकारियों से आगे चलने को कहा ताकि वह इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों और महिलाओं को कई खतरा न हो. ऐसा ही हुआ. सबसे आगे पूर्व अधिकारी फिर पुरुष और महिलाएं और बच्चे. हॉल पूरी तरह से खाली हो चुका था. पीछे की सीढ़ियों से होकर 157 लोग नीचे भाग रहे थे. उन सभी लोगों को खासतौर से रवि ने कहा था कि जूतें उतार कर भागें और अपने मोबाइल फोन भी बंद कर लें. ऐसा ही हो रहा था. हॉल में आखिर में रवि अकेले बचे थे.


बुजुर्ग महिला के लिए दोबारा दांव पर लगा थी जिंदगी
वह भी अब नीचे जाने को तैयार थे. तभी उन्होंने देखा कि हॉल के कोने में एक बुजुर्ग महिला व्हीलचेयर पर बैठी हुई थी. रवि ने कहा कि आपको नीचे चलना होगा. इस पर बुजुर्ग महिला ने जवाब दिया कि तुम मुझे छोड़कर चले जाओ जो होगा देखा जाएगा. लेकिन रवि उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकते थे. उन्होंने उस बुजुर्ग महिला को अपनी गोद में उठा लिया और तेजी से नीचे उतरने लगे. 20 मंजिल से किसी महिला को अपनी गोद में लेकर उतरना आसान नहीं था. लेकिन रवि ने हार नहीं मानी. जो लोग सुरक्षित नीचे आ चुके थे उनकी निगाहें अपने हीरो पर थीं. तभी रवि बुजुर्ग महिला को गोद में उठाए सीढ़ियों से तेजी से उतरते ही नीचे आ रहे थे. वह नीचे उतर गए. लोगों की आंखों में आंसू थे, वह रवि को रीयल हीरो कहकर पुकार रहे थे. 


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