छत्तीसगढ़ की प्रचीन कलाकृतियां मोह लेंगी आपका मन
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच गोंदा बहुत प्रचलित है. लोगों का मानना है कि टैटू गुदवाने से मृत्यु के बाद पूर्वजों से जुड़ने में मदद मिलती है.
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बांस कला में माहिर हैं. वे बांस से खूबसूरत कुर्सियां, टेबल, टोकरियां, चटाई, और घरेलू सजावत का सामान बनाते हैं, जो देखते ही बनती हैं.
राज्य के बस्तर और रायगढ़ जिलों में पीतल और कांसे से बेल मेटल तैयार किया जाता है. घवा और झारा जैसी जनजातियां मुख्य रूप से इस कला का अभ्यास करती हैं.
छत्तीसगढ़ में मोतियों, कौड़ियों और पंखों से बने आभूषण आदिवासी वेशभूषा का हिस्सा हैं. इसमें सोने, चांदी, कांस्य और मिश्रित धातु के आभूषण भी शामिल हैं.
टेराकोटा मिट्टी के बर्तन राज्य में आदिवासी जीवन के रीति-रिवाजों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी भावनाओं का प्रतीक हैं.
तुम्बा बस्तर क्षेत्र में व्यापक रूप से उत्पादित एक कम ज्ञात शिल्प है, जिसकी उत्पत्ति खोखले लौकी के छिलकों के व्यापक उपयोग से हुई है.
छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध पिथोरा पेंटिंग एक सामान्य पारंपरिक कला रूप है. ये चित्र आमतौर पर विवाह, बच्चे के जन्म और मनोकामना पूरी होने पर बनाए जाते हैं.
राज्य के कुशल कारीगर शीशम, सागौन, धूड़ी, साल और कीकर के लकड़ियों का उपयोग करके सुंदर छतें, दरवाजे, लिंटेल और मूर्तियां बनाते हैं.
सूती कपड़े बस्तर के आदिवासियों द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध और आकर्षक कला में से एक हैं. ये कोसा धागे से बने होते हैं, जो जंगल में पाए जाने वाले एक प्रकार के कीड़े से बनाता है.