दोस्ती के नायक थे कर्ण, काल देखकर भी नहीं छोड़ा था दुर्योधन का साथ
Abhinaw Tripathi
May 16, 2024
Mahabharata Story
हमारे जीवन में दोस्तों का काफी ज्यादा महत्व होता है. दुनिया में कई लोगों की दोस्ती मिसाल बन गई है. हालांकि हम आपको बताने जा रहें हैं कर्ण और दुर्योधन के दोस्ती के बारे में. महाभारत से पहले दुर्योधन को कृष्ण लाख समझाने की कोशिश की कि कर्ण से दोस्ती तोड़ दो लेकिन कर्ण ने इसलिए ऐसा नहीं किया.
कृष्ण की कूटनीति
महाभारत से पहले कृष्ण ने कर्ण को लाख समझाने की कोशिश की. कई तरह की कूटनीति की लेकिन असफल रहें.
पांडव दल
कृष्ण ने अपने रथ पर कर्ण को बैठाने के बाद कहा कि तुम पांडवों के भाई हो और पांडवों के दल में चलो.
महाभारत युद्ध
जब तक तुम दुर्योधन के साथ हो तब तक दुर्योधन युद्ध से मुंह नहीं मोड़ेगा. इसलिए तुम उसका साथ छोड़ दो.
कर्ण की दोस्ती
कृष्ण के समझाने के बाद कर्ण ने कहा कि अगर मैं दुर्योधन का साथ छोड़ दिया तो सारा संसार मुझपर थूकेगा.
कायर कहलाऊंगा
दुर्योधन के साथ रहकर हमने अपना जीवन गुजारा है. अब घनघोर युद्ध होने वाला है और अगर मैं इस समय पीछे हट जाऊंगा तो कायर कहलाऊंगा.
उसे नहीं छोड़ूंगा
कर्ण ने कृष्ण से कहा कि मेरा- तन मन सब दुर्योधन का है, मेरा रोम- रोम उसका ऋणी हूं. साथ ही साथ आगे कहा कि हे केशव मैं सुरपुर से अपना मुख नहीं मोड़ूंगा मैं उसे नहीं छोड़ूंगा.
वापस नहीं लौटूंगा
आगे बोलते हुए कर्ण ने कहा कि अब नौका तट छोड़कर चली गई है पता नहीं किस ओर गई है. चाहे ये धार मुझे लील ले लेकिन मैं कर्ण को छोड़कर वापस नहीं जाऊंगा.
स्वयं मर जाऊंगा
साथ ही साथ कर्ण ने कहा कि जिस दोस्त की छांव में रहा उसको अपने जीते जी मैं बचाऊंगा, या फिर स्वयं ही मैं मर जाऊंगा.