जब इंदिरा ने ओशो को बता दिया था `अव्यावहारिक रूप से क्रांतिकारी`, मिलने से कर दिया था मना
बच्चन जी से इसी मुलाकात के दौरान रजनीश ने इंदिरा गांधी से मिलने की इच्छा जाहिर की थी. इसके लिए हरिवंश राय बच्चन ने इंदिरा गांधी से बात भी की थी. इंदिरा जी ने आचार्य रजनीश के प्रवचनों को सुना था, उनके विचार किताबों में पढ़े थे. उन्होंने ओशो से मिलने से मना कर दिया.
जिस ओशो को दुनिया एक महान दार्शनिक के रूप में जानती है, इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए उनसे मिलने से मना कर दिया था. इस घटना का जिक्र आचार्य रजनीश उर्फ ओशो के बैचमेट रहे प्रो. कांतिकुमार जैन ने अपनी किताब ’शेक्सपियर वाया प्रो. स्वामीनाथन’ (Shakespeare via Prof Swaminathan) में किया है. बात 1972 के आसपास की है. ओशो अभिनव धर्मचक्र परिवर्तन के लिए भारत के प्रमुख शहरों में जाकर प्रवचन देने लगे थे. साधना शिवरों का आयोजन करते थे. ऐसे ही एक शिविर का आयोजन दिल्ली में हुआ था. ओशो इसमें शामिल होने के लिए राजधानी में आए हुए थे. जवाहर नगर में मोतीलाल बनारसी दास के यहां ठहरे हुए थे.
इंदिरा से मिलने के लिए बच्चन जी से लगावाई थी सिफारिश
हरिवंश राय बच्चन भी उस समय दिल्ली में ही थे. वह अपने एक प्रशंसक मित्र शिवप्रताप सिंह 'शिव' के साथ आचार्य रजनीश से मिलने आए थे. ओशो उस समय कैसे दिखते थे इस बारे में बच्चन जी ने कहीं जिक्र किया है, जिसका प्रसंग प्रो. कांतिकुमार की किताब में भी है. वह हरिवंश राय बच्चन के हवाले से लिखते हैं, ''रजनीश औसत कद, भारी काठी के थे. सिर शरीर के अनुपात में कुछ बड़ा. आंखें चमकदार, पैनी, गहराई लिए हुए. रंग सांवला, काली दाढ़ी-मूंछ मंडित चेहरा. मध्य मुंड गंजा, पीछे से लंबी घुंघराली काकली कंधों पर लहराती. उम्र 35 से 40 के बीच होगी. लुंगी बांधे, नंगे बदन बैठे थे, कंधे पर एक छोटा तौलिया डाले, जिससे बार-बार अपना मुंह पोंछते रहते.''
जन्मदिन विशेष: विश्व प्रसिद्ध ओशो को भारत में इस स्थान से था अगाध प्रेम, प्रवचन में करते थे जिक्र
इंदिरा के लिए 'अव्यावहारिक रूप से क्रांतिकारी' थे ओशो
बच्चन जी से इसी मुलाकात के दौरान रजनीश ने इंदिरा गांधी से मिलने की इच्छा जाहिर की थी. इसके लिए हरिवंश राय बच्चन ने इंदिरा गांधी से बात भी की थी. इंदिरा जी ने आचार्य रजनीश के प्रवचनों को सुना था, उनके विचार किताबों में पढ़े थे. उन्होंने बच्चन जी से यह कहकर ओशो से मिलने से मना कर दिया, ''उनके विचार अव्यावहारिक रूप से क्रांतिकारी हैं.'' जब वह इंदिरा गांधी जैसी आधुनिक महिला के लिए 'अव्यावहारिक रूप से क्रांतिकारी' थे, तो जबलपुर के लिए रजनीश को संभाल पाना कितना मुश्किल रहा होगा समझा जा सकता है.
ओशो की उपलब्धियां विवादित ही सही, उपलब्धियां तो हैं
जब उनके विचारों की क्रांति को जबलपुर संभाल नहीं पाया तो उन्होंने अपने प्रिय शहर को भारी मन से अलविदा कहने में ही भलाई समझी. वह जबलपुर से उखड़े तो बंबई में स्थापित हो गए. आचार्य रजनीश की महानता सदैव विवादास्पद रही और रहेगी. कुछ लोगों के लिए वह महान दार्शनिक तो कुछ के लिए अतिरेक से भरे विचारों वाले व्यक्ति बने रहेंगे. लेकिन एक बात तय है कि ओशो ने अपने लिए जो गंतव्य तय किया, उस तक वह पहुंचे. उनकी उपलब्धियां विवादित ही सही, उपलब्धियां तो हैं. इसे मानना पड़ेगा.
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