जन्मदिन विशेष: विश्व प्रसिद्ध ओशो को भारत में इस स्थान से था अगाध प्रेम, प्रवचन में करते थे जिक्र
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जन्मदिन विशेष: विश्व प्रसिद्ध ओशो को भारत में इस स्थान से था अगाध प्रेम, प्रवचन में करते थे जिक्र

विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो की आज जन्म जयंती है. उनका जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था. उनका बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन था, बाद में वह रजनीश के नाम से भी जाने गए. हालांकिए उनकी प्रसिद्धि ओशो नाम से ही है.

विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो. (File Photo)

विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो की आज जन्म जयंती है. उनका जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था. उनका बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन था, बाद में वह रजनीश के नाम से भी जाने गए. हालांकिए उनकी प्रसिद्धि ओशो नाम से ही है. उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और यहीं के रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी में बतौर लेक्चरर काम करने लगे.

ओशो को बचपन से ही दर्शन में रुचि पैदा हो गई थी. इसका जिक्र उन्होंने अपनी किताब ''ग्लिप्सेंस ऑफ ए गोल्डन चाइल्डहुड'' में भी किया है. लेक्चरर होने के साथ साथ ओशो ने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया, ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू कर दिया. उन्होंने लेक्चरर की नौकरी छोड़ 'नवसंन्यास आंदोलन' की शुरुआत की.  इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया.

ओशो को सबसे प्रिय था जबलपुर
ओशो को अपने बचपन के शहर जबलपुर से अतिशय प्रेम था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका पहुंचकर विश्व प्रसिद्ध होने के बाद भी वह जबलपुर को कभी नहीं भूले, इस शहर को सर्वाधिक प्रेम करते रहे. उनके एक अनुयायी ने जब ओशो से धरती पर पसंदीदा जगह के बारे में सवाल किया तो उनका जवाब जबलपुर था.  उन्होंने कहा था, ''जबलपुर मेरा पर्वत स्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ.''

भेड़ाघाट से ओशो को अगाध प्रेम
अमेरिका में ऑरेगन स्थित अपने आश्रम 'रजनीशपुरम' में उन्होंने एक प्रवचन के दौरान कहा था, ''जबलपुर में इस जगत का. इस पृथ्वी का एक सुंदरतम स्थल है, भेड़ाघाट. शायद ही पृथ्वी पर इतनी सुंदर कोई दूसरी जगह होगी. यहां नर्मदा दो मील तक संगमरमर की पहाड़ियों के बीच से बहती हैं. संगमरमर की पहाड़ी यानी जैसे हजारों ताजमहल का सौंदर्य इकट्ठा कर दिया गया हो और बीच से नर्मदा का बहाव. इससे बड़ा ही अपूर्व दृश्य उपस्थित होता है.''

प्रवचन में झलका ओशो का जबलपुर प्रेम
ओशो ने अपने इसी प्रवचन में एक जबलपुर से जुड़ी एक कहानी का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था, ''एक बार मैं दुनिया घूम चुके अपने एक वृद्ध प्रोफेसर को भेड़ाघाट दिखाने ले गया. वह शरदपूर्णिमा की रात थी. इस दिन तो नर्मदा के नैसर्गिक संगमरमरी सौंदर्य में कई गुना इजाफा हो जाता है. यही वजह थी कि जीवन में पहली बार भेड़ाघाट के अनुपम दृश्य को देखकर वह वृद्ध प्रोफेसर एकदम आवाक से रह गए. इतने आनंदित हुए की उनकी आंखों से आंसू छलकने लगे. वह भाव-विह्वल होकर रोने लगे. जब नौकाविहार शुरू हुआ तो कहने लगे कि यह जो मैं देख रहा हूं, क्या यह सब सच में है. क्योंकि मुझे लगता है, मैं कोई सपना देख रहा हूं. उन्होंने नाविक से कहा कि वह नाव को किनारे लगाए, ताकि वह संगमरमर की पहाड़ियों को छूकर महसूस कर सकें. उनको अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था, स्पर्श कर जानना चाहते थे कि क्या वह सच देख रहे हैं.''

1981 से 1985 तक अमेरिका में रहे
साल 1981 से 1985 के बीच ओशो अमेरिका में रहे. अमेरिरीकी प्रांत ऑरेगन के वास्को काउंटी में उन्होंने रजनीशपुरम नाम से आश्रम की स्थापना की. यह आश्रम 65000 एकड़ में फैला था. उनका अमेरिका प्रवास बेहद विवादास्पद रहा. अपनी लक्जरी लाइफस्टाइल के लिए वह हमेशा विवादों में रहे. फ्री सेक्स का समर्थन करते. महंगी घड़ियां पनते, रोल्स रॉयस कार से चलते और डिजाइनर कपड़े पहनते. उन पर सवाल उठते कि दार्शनिक और संन्यासी को भौतिक चीजों से इतना लगाव क्यों? लेकिन ओशो को इससे कभी फर्क नहीं पड़ा. उनकी जितनी आलोचना हुई, उतनी ही प्रसिद्धि भी मिली. ओशो के शिष्यों ने ऑरेगन में उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा. लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया.

संदिग्ध परिस्थितियों में हुई ओशो की मृत्यु
ओशो 1985 में भारत लौट आए. भारत लौटने के बाद वह पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में रहे. उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1990 में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई. ओशो का डेथ सर्टिफिकेट जारी करने वाले डॉक्टर गोकुल गोकाणी लंबे समय तक उनकी मौत के कारणों पर खामोश रहे. बाद में उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि ओशो के मृत्यु प्रमाण पत्र पर उनसे गलत जानकारी देकर दस्तखत लिए गए. अपने जन्म से मृत्यु के 59 वर्षों में ओशो ने 19 वर्ष जबलपुर में बिताए.

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