भोपाल: मध्यप्रदेश में प्याज किसानों को भले ही रुलाए लेकिन बीजेपी के लिए ये सियासी दवा से कम नहीं है. मध्यप्रदेश में इन दिनों बीजेपी के विधायक जेब में प्याज लेकर घूम रहे हैं. प्याज लेकर घूमने की सलाह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दी है. बीजेपी का हर नेता इस दवा को अपने पॉकेट में लेकर घूम रहा है. 


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दरअसल मालवा निमाड़ में भीषण गर्मी पड़ रही है, पारा 40 से 42 डिग्री को पार कर रहा है. लिहाजा अपने-अपने इलाके में घूम रहे विधायकों को गर्म हवा के थपेड़ों से लू लगने का डर सता रहा है, लेकिन चुनावी साल है, इसलिए विधायकों का फील्ड में रहना जरूरी है. विधायक दौरे भी करते रहे और लू से भी बचे रहें. इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें एक पुराना नुस्खा अपनाने की सलाह दी है. शिवराज सिंह चौहान ने विधायकों से कहा है कि वो अपनी जेब में प्याज रखेंगे तो उन्हें लू नहीं लगेगी. अब हर विधायक और नेता सीएम की नसीहत पर जेब में प्याज लेकर घूम रहा है. इतना ही नहीं सीएम खुद भी इस नुस्खे को आजमा रहे हैं. अब चुनावी साल में सवाल ये है कि क्या प्याज लेकर घूमने से विधायकों के साथ बीजेपी की सेहत भी किसानों के बीच ठीक होगी. अब देखना यह है कि शिवराज का प्याज वाला फंडा कितना कामयाब होता है. 


इस बार बीजेपी की डगर मुश्किल
मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में चुनाव होने है. इस बार बीजेपी और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला है. कांग्रेस ने नेतृत्व परिवर्तन किया है. चुनाव प्रचार की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपी है. प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर पार्टी के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को काबिज किया है. देखना होगा कि कांग्रेस को इसका कितना लाभ मिलता है. 


नए चेहरे की तलाश में बीजेपी! 
मध्यप्रदेश में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शिवराज सिंह की जगह नए चेहरे को ला सकता है. पार्टी के अंदर इस पर मंथन होने की खबरें लगातार आ रही हैं. कोशिश चल रही है कि साफ छवि वाला, संघ का करीबी, सभी वर्गो और नेताओं में गहरी पैठ बनाने वाले किसी युवा चेहरे को जिम्मेदारी सौंपी जाए. पार्टी और संघ फैसला जल्दी लेने का मन बना चुका है, क्योंकि अगर देर हुई तो शिवराज के चेहरे पर ही पार्टी को अगला चुनाव लड़ना होगा. गुरुवार को सीएम शिवराज सिंह चौहान ने एक कार्यक्रम में कहा था कि 'मेरी खाली कुर्सी पर अब कोई भी बैठ सकता है' उसके मायने निकाले जा रहे हैं. पार्टी को लगता है कि नए चेहरे से कांग्रेस 15 साल का हिसाब भी नहीं मांग पाएगी और यह भी संभव है कि नया चेहरा देख जनता व्यापम से लेकर आरती घोटाले तक को भूल जाए। किसान आत्महत्याओं, किसान गोलीकांड और भावांतर के भंवर पर पर्दा डालने में भी नया चेहरा मददगार साबित हो.