Mahakal corridor: मुस्लिम आक्रांताओं ने कई बार लूटा महाकाल मंदिर को, फिर भी खत्म नहीं हुई भक्ति, ये है पूरी कहानी
PM Narendra Modi Mahakal Mandir: उज्जैन (Ujjain) को देश के पवित्र शहरों में गिना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाकाल कॉरीडोर का उद्घाटन कर चुके हैं. कभी ये अवंती प्रदेश की राजधानी हुआ करता था. इस मंदिर को कई आंक्रताओं ने लूटा, लेकिन उसके बाद कई हिंदू राजाओं ने इसे संवारा.
Mahakal Mandir History: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 अक्टूबर, मंगलवार शाम को महाकाल लोक कॉरिडोर के पहले चरण को राष्ट्र को समर्पित कर दिया. ये कॉरिडोर 900 मीटर से ज्यादा लंबा रुद्र सागर झील के चारों और फैला हुआ है. उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के आसपास के क्षेत्र के पुनर्विकास की परियोजना के तहत रुद्र सागर झील को पुनर्जीवित किया गया है. भक्ति में कितनी शक्ति होती है उसका ही उदाहरण है उज्जैन का महाकाल मंदिर. गुजरात का सोमनाथ मंदिर कई बार लूटा गया, ये बात तो आपने कई बार सुनी होगी. लेकिन उज्जैन के महाकाल मंदिर को भी मुस्लिम आंक्रताओं ने कम नहीं लूटा. गजनी, इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खिलजी जैसे कई सुल्तानों ने यहां से खूब धन लूटा और मंदिर को तहस-नहस किया.
महाकाल मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए
मुस्लिम आंक्रताओं ने कई बार महाकाल मंदिर को लूटा. 11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति और 13वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इल्तुतमिश ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और भारी लूटमार की थी. उसके बाद कई राजाओं ने इसका जीर्णोद्धार करवाया. इतिहासकार बताते हैं, उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था. इस बीच हिंदुओं की 4500 सालों पुरानी धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को नष्ट करने की कई बार कोशिश की गई. जब 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला किया, उस समय यहां कई श्रद्धालुओं का कत्ल भी किया गया. वहीं मंदिर में स्थापित मूर्तियों को खंडित कर दिया गया. उस समय धार के राजा देपालदेव ने इस आक्रमण को रोकने की कोशिश की थी. हालांकि, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर को तोड़ दिया, इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. उज्जैन पर अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर का कब्जा भी हुआ. फिर अफगान सुल्तान इसके स्वामी हुए. कुछ समय ये इलाका मेवाड़ के राणाओं के अधिकार में आया. अकबर ने भी इसे अपने राज में मिलाया.
फिर शुरू हुआ स्वर्ण काल
आपको बता दें कि 22 नवंबर 1728 को मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर इसे अपने आधिपत्य में ले लिया था. बस इसके बाद से ही उज्जैन का खोया हुआ गौरव फिर लौटने लगा या यूं कहें कि उज्जैन स्वर्ण काल में फिर से प्रवेश कर रहा था. मराठाओं ने सबसे पहले अपनी राजधानी उज्जैन को बनाया. 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही. मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं. इसमें पहली महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व यानी कुंभ का मेला शुरू हुआ. सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने इस समय मंदिर का पुनर्निर्माण कराया. बाद में उन्हीं की प्रेरणा से यहां सिंहस्थ का मेला भराना शुरू हुआ. इतिहासकारों के मुताबिक, महाकाल ज्योतिर्लिंग की पूजा करीब 500 साल तक टूटी-फूटी इमारत में होती रही.
द्वापर युग से पहले का है महाकाल मंदिर
पुरातत्वविद् बताते हैं कि मंदिर पर मुस्लिम शासकों ने कई बार हमले किये और इसे तोड़ा, वहीं कई राजवंशों ने इसका दोबारा निर्माण भी करवाया. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग से पहले हुई थी. जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा के लिए आए, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया. छठी शताब्दी में बुद्धकालीन राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ करता था. इसका मतलब उस दौरान भी महाकाल उत्सव मनाया जाता था. इसका उल्लेख बाण भट्ट ने शिलालेख में किया था. गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है.
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