पीएम मोदी ने साकार किया महात्मा गांधी का सपना, 241 साल बाद काशी का जीर्णोद्धार
काशी विश्वनाथ मन्दिर का ये विस्तार 241 वर्षों के बाद हुआ है. सोचिए, जिस मन्दिर को मुगल शासक औरंगजेब ने तोड़ा, उस मन्दिर के विस्तार के लिए लगभग 250 वर्षों का इंतजार करना पड़ा.
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया है. इस कॉरिडोर के बनने के बाद अब आप सीधे गंगा घाट से काशी विश्वनाथ मन्दिर के मुख्य भाग तक जा सकेंगे. आज के विश्लेषण में हम आपको गंगा घाट से इस मन्दिर को जोड़ने वाले नए मार्ग के बारे में बताएंगे.
क्या है काशी कॉरिडोर प्रोजेक्ट?
काशी विश्वनाथ मन्दिर का ये विस्तार 241 वर्षों के बाद हुआ है. सोचिए, जिस मन्दिर को मुगल शासक औरंगजेब ने तोड़ा, उस मन्दिर के विस्तार के लिए लगभग 250 वर्षों का इंतजार करना पड़ा. इससे पहले वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने इस मन्दिर का पुननिर्माण कराया था. इसलिए सबसे पहले हम आपको इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने 8 मार्च 2019 को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की नींव रखी थी. इसके तहत मन्दिर के मुख्य भाग में चार बड़े-बड़े गेट लगाए गए हैं. मन्दिर का जो परिक्रमा मार्ग है, वहां संगमरमर के 22 शिलालेख लगाए गए हैं, जिन पर काशी की महिमा का वर्णन किया गया है. ये कॉरिडोर ललिता घाट से शुरू होकर मन्दिर के मुख्य भाग तक जाता है और इस पूरे कॉरिडोर में कुल 24 भवनों का निर्माण किया गया है.
खर्च होंगे 800 करोड़ रुपये
इन भवनों में मुख्य मन्दिर परिसर है, मन्दिर चौक है, सुविधा केन्द्र है, जलपान केन्द्र और शॉपिंग कॉम्पलेक्स भी है. इसके अलावा मन्दिर की भव्यता को दर्शाने के लिए इस कॉरिडोर में 5 हजार लाइटें लगाई गई हैं. इस पूरे प्रोजेक्ट का अनुमानित खर्च 800 करोड़ रुपये है. हालांकि इसमें भी अभी पहले चरण का ही काम हुआ है, जिस पर लगभग 400 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं.
इसके अलावा इस पूरे कॉरिडोर को लगभग 50 हजार वर्ग मीटर के एक बड़े परिसर में बनाया गया है. इसके लिए लगभग 300 सम्पत्तियों का अधिग्रहण किया गया और 1400 लोगों को दूसरी जगह बसाया गया है.
महात्मा गांधी ने कही थी ये बात
वर्ष 1903 में जब महात्मा गांधी पहली बार काशी विश्वनाथ मन्दिर गए थे, तब उनका अनुभव कुछ अच्छा नहीं था. उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि इस मन्दिर के चारों तरफ उन्होंने गंदगी, मक्खियां और बदबू देखी थी. 13 वर्षों के बाद जब वो वर्ष 1916 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए फिर से वारणसी गए, तब भी हालात ज्यादा नहीं बदले थे.
उस समय महात्मा गांधी ने हैरानी जताते हुए कहा था कि जिस मन्दिर की महिमा इतनी विशाल है और जो इतना पवित्र है, उसके आसपास की ये गन्दगी उन्हें खूब परेशान करती है. सोचने वाली बात ये है कि इस देश में महात्मा गांधी और उनके विचारों को आधार बनाकर कई नेताओं ने चुनाव लड़े और अपनी सरकारें भी बनाई लेकिन इनमें से किसी भी सरकार ने उनकी चिंता और पीड़ा को नहीं समझा. बल्कि पहले इस तरह के विषयों को साम्प्रदायिक राजनीति से जोड़ दिया जाता था.
मंदिर पर कई बार हुए हमले
काशी विश्वनाथ मन्दिर, भारत के उन मन्दिरों में से एक है, जिस पर मुस्लिम शासकों ने कई बार हमले किए और इसे नष्ट करने की कोशिश की. ये मन्दिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है. लेकिन भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही इस मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी यहां पूजा-पाठ होता रहा.
वर्ष 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते थे. लेकिन वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई. ये वही औरंगज़ेब है, जिसके कार्यकाल में 46 लाख हिन्दुओं का दमन हुआ. उन्हें इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया गया और सैकड़ों मन्दिरों को निशाना बनाया गया. लेकिन इसके बावजूद आज भी हमारे देश में औरंगजेब के नाम पर 177 जगहों के नाम हैं.
फिर लौटा पूजा स्थलों का सम्मान
आज काशी विश्वनाथ मन्दिर का विस्तारीकरण बताता है कि भारत में धीरे-धीरे नष्ट और खंडित किए गए पूजा स्थलों का सम्मान लौट रहा है, जिसका जिक्र आज प्रधानमंत्री मोदी ने भी किया. प्रधानमंत्री मोदी ने आज गंगा में डुबकी लगाकर कहीं ना कहीं राहुल गांधी के उस हमले का जवाब दिया है, जिसमें उन्होंने हिन्दू और हिंदुत्व को अलग बताया था और कहा था कि हिंदुत्ववादी लोग नफरत से भरे होते हैं जबकि हिंदू सत्य की खोज में कभी नहीं झुकता है.
भारत में ये बहस बहुत पुरानी है कि हिंदुत्व को हिन्दू धर्म से जोड़ कर देखा जाए या इसे एक राजनीतिक विचार तक सीमित माना जाए. कहा जाता है कि हिंदुत्व शब्द का पहली बार इस्तेमाल वर्ष 1892 में बंगाल के मशहूर साहित्यकार चंद्रनाथ बसु ने अपनी एक पुस्तक में किया था और इसे हिन्दू धर्म के सांस्कृतिक महत्व से जोड़ कर बताया था. उनके बाद वर्ष 1923 में स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर ने इस शब्द को लोकप्रिय बनाया और हिंदुत्व नाम से एक पुस्तक भी लिखी.
हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी की बहस
हमारे देश का एक खास वर्ग शायद हिंदुत्व शब्द से इसीलिए नफरत करता है क्योंकि वो वीर सावरकर को पसंद नहीं करता. लेकिन आज राहुल गांधी चाहें तो वो वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई एक टिप्पणी से हिन्दू धर्म और हिंदुत्व का महत्व समझ सकते हैं. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व जीवन व्यतीत करने की एक पद्धति है और इसकी तुलना कट्टरता से करना एक मिथ्या या दोष होगा.
कोर्ट ने ये भी कहा था कि इसके विपरीत, हिन्दुत्व शब्द का प्रयोग मत-निरपेक्षता को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाना चाहिए. लेकिन राहुल गांधी हिंदुत्व को नफरत का एक विचार बता देते हैं. सोचिए, क्या आपने कभी किसी हिंदुत्ववादी संगठन या व्यक्ति को आत्मघाती हमले करते देखा है? या आतंकवादियों की तरह आम लोगों की जान लेते हुए देखा है. आपने ऐसा कभी नहीं देखा होगा, लेकिन इसके बावजूद भारत में हिंदू और हिंदुत्व को बदनाम करने के लिए एक मुहिम चलाई जाती है.