नई दिल्ली: मणिपुर सरकार (Manipur Government) की तरफ से एक सर्कुलर जारी किया गया है, जिसमें सभी जिलों के स्वास्थ्य अधिकारियों, अस्पतालों और एम्बुलेंस संचालकों से एम्बुलेंस के सायरन (Ambulance Siren) को बंद करने को कहा गया है. सरकार का कहना है कि एम्बुलेंस के सायरन से लोगों में डर बढ़ रहा है, और सामाजिक चिंता व्याप्त हो रही है.


सड़क जाम होने पर ही बजाएं सायरन


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इस सर्कुलर में लिखा है कि अगर कोई एम्बुलेंस किसी मरीज को लेकर अस्पताल जा रही है, तो इस स्थिति में एम्बुलेंस का सायरन तभी बजाया जाए जब सड़कों पर ट्रैफिक जाम हो. अगर सड़कें खाली हैं तो एम्बुलेंस का सायरन बजाने की कोई आवश्यकता नहीं है. मणिपुर सरकार के इस आदेश की अब पूरे देश में चर्चा हो रही है, और लोग कह रहे हैं कि ये फैसला दूसरे राज्यों में भी लागू होना चाहिए.


एम्बुलेंस के सायरन को लेकर कानून क्या कहता है?


एम्बुलेंस इमरजेंसी व्हीकल की श्रेणी में आती है और इस श्रेणी में आने वाले वाहनों को कानून के तहत सायरन बजाने की अनुमति होती है. सायरन बजाने का मकसद एक ही होता है और वो ये कि सड़क पर एम्बुलेंस को आसानी से रास्ता मिल सके. अगर कोई व्यक्ति एम्बुलेंस सायरन सुनने के बाद भी उसे रास्ता नहीं देता है या उसे ओवरटैक करता है तो उस पर मोटर व्हीकल एक्ट 2019 के तहत 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है. ये जुर्माना सभी इमरजेंसी व्हीकल के लिए है.


Lockdown में सड़कें खाली तो सायरन क्यों बजाना


यानी एम्बुलेंस का सायरन बजाने का एक ही मकसद है- वो ये कि मरीज ट्रैफिक जाम में ना फंसे और एम्बुलेंस उसे समय पर अस्पताल पहुंचा सके. अब कोरोना काल में जब कई राज्यों में लॉकडाउन लगा हुआ है और सड़कें खाली हैं, तब एम्बुलेंस का सायरन बजाने का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता. मतलब सोचिए अगर सड़क खाली हैं तो फिर एम्बुलेंस का सायरन क्यों बजाना है? इसी आधार को देखते हुए मणिपुर सरकार के फैसले की काफी चर्चा हो रही है. मणिपुर सरकार ने काफी चर्चा के बाद ये माना कि एम्बुलेंस के सायरन से वो लोग मानसिक दबाव में चले जाते हैं, जिनका इससे कोई लेना देना नहीं है. इस समय कुछ ऐसा ही हो रहा है.


एम्बुलेंस के सायरन से बढ़ सकता है ब्लड प्रेशर


आज कल आप देखते होंगे कि जब आप किसी जरूरी काम के लिए घर से बाहर निकलते हैं तो एक ना एक एम्बुलेंस दिखी ही जाती है, और घर में रहते हुए भी एम्बुलेंस की आवाज आप तक पहुंच ही जाती है. एक स्टडी के मुताबिक 70 डेसिबल से ऊंची आवाज इंसानों के अन्दर मानसिक बदलाव ला सकती है, और ये हमारे शरीर की धमनियों में खून के प्रवाह को भी बढ़ा सकती है. कई मामलों में इससे आपका ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) भी हाई हो सकता है. अब समझने वाली वाली बात ये है कि एम्बुलेंस के सायरन की आवाज 110 से 120 डेसिबल होती है, और इतना शोर स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता.


ऊंची आवाज लगातार सुनने से हो सकती हैं ये बीमारी


एम्बुलेंस का सायरन सिर्फ सड़क पर चल रहे लोगों के लिए ही नहीं बल्कि एम्बुलेंस के ड्राइवर, उसमें बैठे मरीज और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भी हानिकारक होता है. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ के अनुसार, अगर दो वर्षों तक लगातार 90 डेसिबल से ऊंची आवाज सुनी जाए तो इससे सुनने की शक्ति आप खो सकते हैं. इसके अलावा इससे Tinnitus नाम की बीमारी भी हो सकती है. इस बीमारी में मरीज को लगता है कि उसके कानों में लगातार कोई आवाज गूंज रही है.


सायरन की आवाज से हो सकती है मानसिक परेशानी


एक अध्ययन के मुताबिक इमरजेंसी रेस्पोंस व्हीकल जैसे एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और पुलिस की पीसीआर वैन में लंबे समय तक काम करने वाले 26 प्रतिशत लोगों में ये बीमारी पाई जाती है. एक बड़ी बात ये है कि एम्बुलेंस के सायरन की आवाज लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है. इस समय जब चारों तरफ मृत्यु का माहौल है, तब लगातार एम्बुलेंस के सायरन की आवाज सुनना आपको तनाव में भी डाल सकता है. कई राज्यों में लोगों ने इसकी शिकायत भी की है और मणिपुर में इसी को देखते हुए ये फैसला लिया गया है. 


क्यों बनाया गया एम्बुलेंस पर सायरन का कानून?


हालांकि ऐसा नहीं है कि एम्बुलेंस का सायरन जानबूझकर लोगों को डराने के लिए बजाया जाता है. एक रिसर्च के मुताबिक भारत में 10 में से एक मरीज की मौत इसलिए हो जाती है क्योंकि एम्बुलेंस मरीज के पास देर से पहुंचती है, और इस देरी का सबसे बड़ा कारण है ट्रैफिक जाम. इसी ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए एम्बुलेंस को सायरन बजाने की छूट कानून देता है. यानी ये कानून लोगों की जान बचाने के लिए ही है.


एम्बुलेंस की देरी से अबतक कई लोगों ने गंवाई जान


इसके अलावा एक रिसर्च के मुताबिक, 2016 में सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 46 हजार 133 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें से 30 प्रतिशत लोग इसलिए मर गए क्योंकि दुर्घटना के बाद एम्बुलेंस समय पर उनके पास नहीं पहुंच पाई. कहने का मतलब यही है कि एम्बुलेंस का सायरन जरूरी है, लेकिन तभी जब सड़कों पर ट्रैफिक जाम है. अगर सड़कें खाली हैं तो बिना सायरन बजाए भी एम्बुलेंस मरीज को अस्पताल लेकर पहुंच सकती है.


दूसरे राज्यों को भी मणिपुर जैसी सोच की जरूरत


विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का भी यही मानना है. WHO के मुताबिक, 50 डेसिबल से ऊंची आवाज एम्बुलेंस में जाने वाले मरीजों के लिए भी खतरनाक होती है, और हमारे देश में एम्बुलेंस साउंड प्रूफ नहीं होती. इसलिए आज जो फैसला मणिपुर की सरकार ने लिया है, उस पर दूसरे राज्यों को भी सोचने की जरूरत है. क्योंकि हमारा मानना है कि कोरोना से भी बड़ी महामारी डर के संक्रमण की है, और डर इंसान को जीवित रहते हुए ही मार देता हैं. 


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