Gallantry Award: शहीद लांस नायक (Lance Naik) गोपाल सिंह भदौरिया (Gopal Singh Bhadoriya,) के माता-पिता ने डाक द्वारा भेजे 'शौर्य चक्र' (Shaurya Chakra) वीरता पुरस्कार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. परिजनों ने इसे अपने शहीद बेटे की शहादत का ‘अपमान’ बताया. जम्मू-कश्मीर में पांच साल पहले आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में भदौरिया ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.


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भदौरिया के पिता मुनीम सिंह ने पांच सितंबर को डाक से भेजे गये 'शौर्य चक्र' वीरता पुरस्कार को लौटा दिया. उनके बेटे के फरवरी 2017 में शहीद होने के एक साल बाद मरणोपरांत यह पुरस्कार दिया गया था. भदौरिया 33 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए थे.


मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता
सिंह ने कहा कि कि ‘‘सेना डाक के माध्यम से पदक नहीं भेज सकती है. यह न केवल प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, बल्कि एक शहीद और उसके परिवार का भी अपमान है. इसलिए मैंने पदक वाले पार्सल को स्वीकार नहीं किया और यह कहते हुए इसे वापस कर दिया कि मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता.’’


राष्ट्रपति भवन में सौंपा जाए वीरता पुरस्कार
अहमदाबाद शहर के बापूनगर इलाके में रहने वाले सिंह ने मांग की कि देश का तीसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में परिवार को सौंपा जाए.


भदौरिया को इससे पहले 2008 में मुंबई आतंकी हमले के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) कमांडो समूह का हिस्सा होने के लिए "विशिष्ट सेवा पदक" से सम्मानित किया गया था. एनएसजी को आतंकवादियों के चंगुल से ताज होटल को छुड़ाने का काम सौंपा गया था.


इसलिए हुई पदक सौंपने में देरी
भदौरिया 2011 में अपनी पत्नी से अलग हो गए थे. दोनों के व्यस्त रहने के कारण साल 2013 में अदालत ने शादी तोड़ने की याचिका भी खारिज कर दी थी. हालांकि जब 2017 में गोपाल सिंह शहीद हो गए तो 2018 में उन्हें शौर्य चक्र के लिए चुना गया.


मुनीम सिंह ने 2018 में शहर की एक सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया ताकि बहू को पुरस्कार के साथ-साथ सेवा लाभों पर दावा करने से रोका जा सके. सिंह ने कहा, "चूंकि शहर की सिविल कोर्ट ने (मामले की कार्यवाही पर) रोक लगा दी थी, इन सभी वर्षों में पदक प्रदान नहीं किया गया. फिर सितंबर 2021 में,  हमने कानूनी लड़ाई जीती, जब अदालत ने फैसला सुनाया कि पदक और अन्य सभी सेवा लाभ सैनिक के माता-पिता को सौंपे जाएं और उसकी अलग हो चुकी पत्नी को नहीं."


सिंह ने कहा, "हमने तब सेना के अधिकारियों और रक्षा मंत्री के कार्यालय को अदालत के आदेश के बारे में सूचित किया और उनसे पदक और लाभ हमें सौंपने का अनुरोध किया. हालांकि, हमें समारोह में (राष्ट्रपति भवन में) बुलाने के बजाय, पदक डाक द्वारा भेजा गया.”


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