नई दिल्ली: कोनराड संगमा मेघालय के नए मुख्यमंत्री होंगे और 6 मार्च को वह सीएम पद की शपथ लेंगे. इसी के साथ मेघालय में सरकार बनाने की कांग्रेस की उम्मीदें धूमल हो गई हैं. पार्टी को शनिवार को आए चुनाव नतीजे में 21 सीटें मिली थी और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं जुटा पाई.


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कांग्रेस ने गोवा में की गई अपनी गलती से सबक लेते आनन-फानन में वरिष्ठ पार्टी नेता अहमद पटेल और कमलनाथ को मेघालय सरकार बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए भेजा था लेकिन वह कुछ खास नहीं कर सके. इस तरह से पार्टी के हाथ से मेघालय भी निकल गया है. जैसी ही मेघालय का खंडित जनादेश आया था, तभी से ये अंदेशा जताया जा रहा था कि कांग्रेस की सरकार बनना मुश्किल है. अंत में वही हुआ. 


मेघालय के घटनाक्रम से पिछले वर्ष के गोवा के घटनाक्रम की याद ताजा हो गई. अजीब संयोग ये है कि पिछले वर्ष मार्च के महीने में ही गोवा में कुछ इसी तरह का सियासी ड्रामा हुआ था जिसमें कांग्रेस के मुंह की खानी पड़ी थी और वह सरकार नहीं बना पाई थी. याद करें तो 11 मार्च को आए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सदस्यीय विधानसभा में 17 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी की झोली में 13 सीटें आई थीं. इसके अलावा जीपीएफ और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) को 4-4 सीटें तथा दो निर्दलीय विधायकों को जीत मिली थी.


कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए अन्य पार्टियों से समर्थन की दरकार थी. सरकार बनाने का जिम्मा दिग्विजय सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत को सौंपा गया था लेकिन वे सफल नहीं हुए. बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने सियासी गोटी फिटकरके मनोहर पर्रिकर को सीएम बनवा दिया था. 


कांग्रेस रणनीतिकारों पर भारी पड़े हेमंत बिस्वा सरमा
पिछले साल हुए चुनाव में मणिपुर में भी त्रिशंकु विधानसभा बनी थी, लेकिन बीजेपी ने छोटे दलों और निर्दलीयों की मदद से सरकार बना ली थी. कांग्रेस पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले नेता अहमद पटेल ने दावा दिया था कि गोवा और मणिपुर की पुनरावृत्ति नहीं होने दी जाएगी. कमलनाथ ने भी कहा था "हम सरकार बनाएंगे. मेघालय के लोगों की इच्छा हमारी कांग्रेस सरकार में दिखेगी. हम हर किसी के संपर्क में हैं. हर कोई हमारे संपर्क में है." लेकिन ये दावे धरे रह गए. महज दो सीटे जीतने वाली बीजेपी की ओर से हेमंत बिस्वा सरमा ने अहम भूमिका निभाते हुए कांग्रेस के सरकार बनाने के सपने को चकनाचूर कर दिया. 


गठबंधन सरकार चलाना आसान नहीं
नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) प्रमुख कोनराड संगमा ने 34 विधायकों का समर्थन होने का दावा किया है. एनपीपी नेता पूर्व लोकसभा अध्यक्ष दिवंगत पी ए संगमा के सबसे छोटे बेटे हैं. कोनराड अपने पिता के निधन के बाद तुरा सीट के उपचुनाव में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. गठबंधन सरकार चलाने की चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था, ‘‘यह आसान काम नहीं है.लेकिन हमारा समर्थन कर रहे दल लोगों एवं राज्य के कल्याण के लिए काम करने की खातिर प्रतिबद्ध हैं. हम एक समान एजेंडे पर काम करेंगे."  एनपीपी 19 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी. एनपीपी केंद्र एवं मणिपुर में भाजपा की सहयोगी है. संगमा ने दावा किया है कि उन्हें एनपीपी के 19, यूनाईटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) के छह, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के चार, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी) एवं भाजपा के दो-दो विधायक और एक निदर्लीय विधायक का समर्थन मिला है.